नारायणपुर. भगवान के भजन से मनुष्य को मुक्ति प्रदान होता है. इंसान भले ही जीवन में कितने पाप कर्म किए हों, लेकिन जब उसके अंदर का ज्ञान जागृत हो और वह प्रभु का स्मरण करे तो अंत समय में भी भगवान का नाम सुमिरन करने से मुक्ति मिल जाती है. उक्त बातें पंडित सत्यनारायण तिवारी ने श्री श्री 1008 संकट मोचन हनुमान मंदिर बड़बहाल घाटी में चल रहे नवाह परायण कथा सत्र में शनिवार को कही. उन्होंने जानकी की विदाई प्रसंग को जगत की बेटी की विदाई से जोड़ते हुए बहुत ही करुण तथा मर्मस्पर्शी शब्दों से चित्रण किया. उन्होंने पिता और पुत्री के संबंध को सबसे पवित्र बताते हुए जानकी की विदाई के दौरान महाराज जनक और सुनैना की दशा का वर्णन किया. यह वर्णन सुन श्रोताओं के नेत्रों से आंसुओं की धारा बह निकली. उन्होंने कहा कि जानकी की विदाई में पशु, पक्षी रोने लगे. गुरु वशिष्ट के परामर्श पर हिंदुस्तान का विवाह मांडवी से, उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से और श्रुति कीर्ति का विवाह शत्रुघ्न के साथ एक ही मंडप में कराया गया. महाराज दशरथ गुरु से आज्ञा लेकर राम को युवराज बनाने की घोषणा करते हैं, पूरे अयोध्या में खुशी छा जाती है. इधर कैकेयी कोपभवन में चली जाती है और दशरथ से दो वरदान मांगती है कि भरत को राजगद्दी और राम को चौदह साल का वनवास. राजा दशरथ अचेत हो जाते हैं. रामजी लक्ष्मण और सीता के साथ वन को चले जाते हैं. श्री राम वन गमन का वर्णन सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए. मौके पर मुख्य यजमान भगलू रवानी, यजमान छोटू गोस्वामी, नरेश तिवारी, चंदन तिवारी, डेगन गोस्वामी, भागीरथ रवानी, नूनलाल रवानी, आनंद मोहन तिवारी, गौतम ओझा, मुरारी रवानी आदि थे.
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