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आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाती बुजुर्ग महिलाएं

Women Empowerment : वह सतासी साल की हैं. नाम है शीला घोष. कोलकाता में रहती हैं. इस उम्र में मनुष्य अपनी बीमारियों को झेलते हुए अंतिम दिन की आस में रहता है. शीला इसके उलट हैं. वह कोलकाता की सड़क पर फ्राइड स्नैक्स बेचती हैं. दिनभर बैठी रहती हैं. ग्राहक आते-जाते रहते हैं. अच्छी-खासी आमदनी होती है. उनका कहना है कि पेट मेहनत करने से भरता है, किसी पर बोझ बनने से नहीं. एक और स्त्री हैं मीनाक्षी शाह.

अड़तालीस की उम्र में उनके पति का निधन हो गया था. दो बेटियों का पालन-पोषण उन्हीं के जिम्मे था. उन्होंने मेहनत कर बच्चियों को पाला. पढ़ाया-लिखाया. जब वह सड़सठ वर्ष की हुईं, तो कोविड महामारी फैल गयी. क्या करें, कैसे घर चले, समझ में नहीं आता था. तब बेटी के साथ उन्होंने बिना मैदा के उपयोग से बने खाद्य पदार्थों का व्यापार शुरू किया. नाम दिया-‘मैदा फ्री स्नैक्स’. उनका काम चल निकला. अब वह बहत्तर साल की हैं. करोड़ों का व्यवसाय कर चुकी हैं. बारह स्त्रीएं उनके यहां काम करती हैं. यानी वह खुद ही सक्षम नहीं बनीं, बारह स्त्रीओं को भी अपने पांवों पर खड़ा किया.

ऐसी ही एक पचासी वर्ष की स्त्री साड़ियां काढ़ती हैं. इस उम्र में भी वह अपने काम में लगी रहती हैं. उनकी साड़ियां बहुत महंगे दामों पर बिकती हैं. स्त्रीएं उन्हें खूब पसंद करती हैं. बहुत-सी स्त्रीएं इन दिनों खाने का काम कर रही हैं. वे टिफिन सर्विसेज चला रही हैं. घर में बेकरी खोलकर बिस्कुट और तरह-तरह की चीजें बना रही हैं. इन्हें बेचने के लिए स्विगी और जोमैटो जैसे प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर रही हैं. निशा मधुलिका यूट्यूब पर ऑनलाइन व्यंजन बनाना सिखाती हैं. हर त्योहार से पहले वह उससे संबंधित व्यंजन लेकर हाजिर हो जाती हैं.

अपने पेशे में वह बहुत सफल हैं और उनकी आमदनी करोड़ों में पहुंच चुकी है. स्वेटर बनाना, सिलाई करना, मोमबत्ती और साबुन बनाना भी स्त्रीएं ऑनलाइन सिखा रही हैं और अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं. कुछ बुजुर्ग स्त्रीएं बच्चों की देखभाल के लिए डे केयर सेंटर चलाती हैं. कई स्त्रीएं उन बुजुर्गों की देखभाल करती हैं, जिनके बच्चों के पास उनकी देखभाल का समय नहीं है.

बहुत-सी पढ़ी-लिखी बुजुर्ग स्त्रीएं, जिनमें से कुछ अध्यापिका भी रह चुकी हैं, बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रही हैं. कोचिंग सेंटर्स चला रही हैं. इनमें से कई का कहना है कि एक समय था, जब वक्त काटे नहीं कटता था. लेकिन अब बिल्कुल फुर्सत नहीं है. एक हैं आशा पुरी. वह अम्मा जी नाम से बुनाई का ऑनलाइन केंद्र चलाती हैं. दूसरी हैं हेमलता पाल, जो क्रॉस स्टिच सिखाती हैं. वीना मल्होत्रा नाम की स्त्री ने चौंसठ साल की उम्र में बालों में लगाने वाले तेल का व्यवसाय शुरू किया, जो काफी सफल है. इन सबकी सफलता में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स का बड़ा हाथ है, जहां वे बिना किसी संपर्क और जान-पहचान के लोगों और ग्राहकों तक पहुंच सकती हैं. सफलता पा सकती हैं. पैसे कमा सकती हैं और किसी के भरोसे नहीं हैं.

वे दिन लद चुके हैं, जब स्त्रीओं से उम्मीद की जाती थी कि वे जैसे-तैसे अपने परिवारजनों की मदद और दया के सहारे बाकी का जीवन काट देंगी. अब वे अपने पांवों पर खुद की मेहनत से खड़ी हो रही हैं और दूसरों को रास्ता भी दिखा रही हैं. वे इस कथन को साबित कर रही हैं कि किसी भी नयी शुरुआत के लिए उम्र का कोई महत्व नहीं है. बस लगन, धैर्य और परिश्रम चाहिए. साथ में ऐसा कोई हुनर भी, जिसके जरिये आप अपना काम शुरू कर सकें. ठीक है कि इन्हें भी सफलता रातोंरात नहीं मिल गयी होगी. इसके लिए हाड़-तोड़ मेहनत करनी पड़ी होगी. मगर मेहनत ही है, जो कामयाबी दिलाती है.

अपने देश में ये उदाहरण इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यहां तो तीस वर्ष की होते-होते स्त्री पर बूढ़ी हो जाने का टैग लगाने का चलन रहा है. आज जब तमाम चिकित्सकीय आविष्कारों के कारण मनुष्य की औसत उम्र बढ़ गयी है, तब क्यों कोई हाथ पर हाथ धरे बैठा रहे! उम्र यदि कोई बाधा बन भी रही हो, तो वे उसे पार कर लेंगी. वे उन लोगों की परवाह कतई नहीं करेंगी, जो किसी बुजुर्ग को काम करते देख कहते हैं, ‘अब इस उम्र में क्या हाय माया लगा रखी है? नाती-पोतों को खिलाओ और भगवान का नाम लो’. ठीक है, परिवार भी जरूरी है, लेकिन आत्मनिर्भरता और स्वाधीनता भी जरूरी है.

दुनिया में पराश्रित होने से अधिक बड़ा दुख दूसरा नहीं है. इस सोच से निकलकर ही ये स्त्रीएं आगे बढ़ी होंगी, जिनका जिक्र ऊपर किया गया है. इन स्त्रीओं ने अपना रास्ता तो खुद बनाया ही, दूसरी अनेक स्त्रीओं के लिए वे प्रेरणास्रोत बनीं. इंदौर की स्त्री डॉक्टर भक्ति यादव का इक्यानबे वर्ष की उम्र में निधन हुआ. वह अंतिम समय तक मरीजों को देखती रही थीं. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र की स्त्रीओं के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया. वह बड़ी संख्या में मरीजों का मुफ्त इलाज करती थीं. पेज थ्री की स्त्रीओं के बजाय, जिन्हें अक्सर हमारा रोल मॉडल बताया जाता है, ये स्त्रियां ही वास्तव में रोल मॉडल्स हैं. इनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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