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इंदिरा गांधी के चुनाव को कब किया गया था अवैध घोषित, जो बना इमरजेंसी की बड़ी वजह

50 Years of Emergency : 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी या आपातकाल लागू हुआ था, इसके पहले देश में एक बड़ी घटना हुई थी जिसने ना सिर्फ पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था, बल्कि एक तरह से पूरे देश में सनसनी पैदा कर दी थी. वह घटना थी इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द करना. आजाद हिंदुस्तान में यह पहली घटना थी जब किसी प्रधानमंत्री का चुनाव अवैध घोषित किया गया था. कोर्ट में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से दो दिनों तक बहस की गई थी और यह एक अभूतपूर्व घटना थी.

इंदिरा गांधी के चुनाव को कोर्ट ने क्यों कहा था अवैध

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को जब इंदिरा गांधी के 1971 के रायबरेली लोकसभा चुनाव को अवैध ठहराया, तो इसके पीछे कोर्ट के पास ठोस और संवैधानिक कारण थे. कोर्ट ने यह पाया कि 1971 के चुनाव में चुनाव आचार संहिता और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act, 1951) का उल्लंघन किया है. इंदिरा गांधी ने प्रशासनी मशीनरियों का दुरुपयोग किया और प्रशासनी कर्मचारियों को जिनमें यशपाल कपूर का नाम काफी चर्चा में रहा था, उन्हें अपने चुनाव प्रचार में लगाया. इतना ही नहीं प्रशासनी संसाधनों का भी दुरुपयोग हुआ, जिनमें प्रशासनी अधिकारी, हेलीकाॅप्टर और अन्य संसाधन शामिल थे. साथ ही इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव प्रचार में कई अन्य अनुचित तरीकों का प्रयोग किया, जिससे विपक्ष को नुकसान हुआ. इसी वजह से कोर्ट ने 1971 के चुनाव को रद्द किया और छह साल तक उनके चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था.

1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े थे राजनारायण

1971 में इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले नेता राजनारायण एक समाजवादी नेता थे. उन्होंने 1971 में संयुक्त समाजवादी पार्टी की टिकट पर इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. वे इंदिरा गांधी के कट्टर विरोधी थे और जब वे चुनाव हार गए, तो उन्होंने 1971 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया और उनके चुनाव को रद्द करने की मांग की. उन्होंने कोर्ट में प्रधानमंत्री पर यह आरोप लगाया कि उन्होंने प्रशासनी संसाधनों का दुरुपयोग किया और भ्रष्ट आचरण से चुनाव जीता.

कोर्ट के फैसले का क्या हुआ प्रभाव

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया, तो उनका पद खतरे में पड़ गया. उस वक्त देश में जेपी का आंदोलन भी चल रहा था, हालांकि इस आंदोलन से इंदिरा गांधी के पद को खतरा नहीं था, लेकिन जब कोर्ट ने उनके चुनाव को अवैध ठहराया, तो आंदोलन से भी यह मांग उठने लगी कि इंदिरा गांधी अपने पद से इस्तीफा दें. 12 जून 1975 के कोर्ट के फैसले के बाद तो यह मांग और तेज हो गई थी. कोर्ट के फैसले और 1975 के माहौल के बारे में बात करते हुए 1974 के आंदोलन में भाग लेने वाले नेतृत्वक और सामाजिक कार्यकर्ता सत्यनारायण मदन ने बताया कि 12 जून को जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने अपना फैसला सुनाया, तो पूरे से देश में सनसनी फैल गई. विपक्षी नेता भी स्तब्ध थे, क्योंकि किसी प्रधानमंत्री वो भी इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत के चुनाव को अवैध ठहराने का फैसला कोर्ट ने सुनाया था. जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से तो इंदिरा गांधी हिल ही चुकीं थीं, लेकिन चुनाव रद्द होने के बाद उनकी स्थिति बहुत ही खराब हो गई और इसके बाद ही उन्होंने देश में आपातकाल लागू किया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि आपातकाल लागू करवाने में संजय गांधी की भूमिका बहुत अहम थी, लेकिन इंदिरा गांधी पद पर थीं और जो फैसला हुआ, उसके लिए वो निश्चित तौर पर जिम्मेदार मानी जाएंगी.

कोर्ट के फैसले से जेपी के आंदोलन को मिला था बल

संपूर्ण क्रांति आंदोलन के सक्रिय भागीदार और वरिष्ठ पत्रकार श्रीनिवास बताते हैं कि इंदिरा गांधी के खिलाफ जब फैसला आया, तो आंदोलन को बड़ी मजबूती मिली. विपक्ष ने उनसे इस्तीफे की मांग शुरू कर दी. इंदिरा गांधी इस फैसले से बहुत परेशान हो गई थीं. हाईकोर्ट ने उन्हें आगे अपील करने की मोहलत तो दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें पूर्ण राहत नहीं मिली. जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने इंदिरा गांधी की सदस्यता तो बरकरार रखी,लेकिन संसद में बहस करने और वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया था, जिसके बाद विपक्ष ने उनकी प्रशासन को अवैध ठहराना शुरू कर दिया था और अंतत: 25 जून की रात को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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