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”इमरजेंसी” से पहले ही ‘अघोषित आपातकाल’ जैसे हालात थे : पार्थ घोष

अमित शर्मा, कोलकाता

अब तक हिंदुस्तान में तीन बार आपातकाल (इमरजेंसी) लागू हो चुका है. वर्ष 1962, 1971 तथा 1975 में हिंदुस्तानीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रीय आपातकाल लगाया गया था. 25 जून, 1975 को देश में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में विवादास्पद परिस्थितियों में ‘आंतरिक गड़बड़ी’ के आधार पर आपातकाल लागू किया गया. यह घोषणा इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये एक फैसले के बाद की गयी, जिसमें 1971 के आम चुनाव में रायबरेली से प्रधानमंत्री के चुनाव को रद्द कर दिया गया था. इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करने की सिफारिश की, जिसके बाद 25 जून, 1975 को इसे लागू कर दिया गया, जो 21 मार्च, 1977 तक प्रभाव में रहा. इस वर्ष 25 जून बुधवार को 1975 में लगाये गये आपातकाल के 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं. यह दिन देश में ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है. इसे लेकर केंद्र प्रशासन ने पिछले दिनों एक अधिसूचना जारी की थी. वर्ष 1975 में लगाये गये आपातकाल को लेकर वरिष्ठ वामपंथी नेता पार्थ घोष से बातचीत हुई और उन्होंने अपना अनुभव साझा किया. घोष का कहना है कि 1975 में इमरजेंसी लागू करने से पहले ही देश में ‘अघोषित आपातकाल’ के हालात बन गये थे. तत्कालीन केंद्र प्रशासन के जनविरोधी, श्रम विरोधी व लोकतंत्र विरोधी नीतियों के खिलाफ पश्चिम बंगाल समेत पूरे देश में आंदोलन तेज हो गया था. तत्कालीन प्रशासन आंदोलन को दबाने के प्रयास में जुट गयी थी और इस क्रम में आंदोलन में शामिल लोगों को गिरफ्तार करने का सिलसिला पहले ही शुरू कर दिया गया था.

घोष ने आगे कहा: मुझे और मेरे कई साथियों को इमरजेंसी की घोषणा से पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था. इस दौरान आंदोलनकारियों पर तरह-तरह के अत्याचार किये गये. अलग-अलग जेलों में उन्हें कई दिन व रातें काटनी पड़ीं, लेकिन ‘जन-आंदोलन’ के आगे लोकतंत्र विरोधी ताकतों को झुकना ही पड़ा. आपातकाल समाप्त होने पर देश में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा और जनता पार्टी की प्रशासन बनी. मेरा मानना है कि संविधान ने देश में जो लोकतांत्रिक अधिकार दिये हैं, इमरजेंसी ने उस अधिकार को छीना, और ऐसा संविधान को व्यवहार करके ही किया गया. संविधान की विशेष धारा का प्रयोग करके ऐसा किया गया. इमरजेंसी लगायी गयी. लोगों की जबरन नसबंदी की गयी. बुलडोजर से मकान ढहा दिये गये. आंदोलनकारियों पर व्यापक अत्याचार व हमला किया गया. लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन करने वालों के खिलाफ जन आंदोलन जारी रहा. नतीजतन, आपातकाल समाप्त होने के बाद देश में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. मौजूदा समय में भी देश में ‘अघोषित आपातकाल’ जैसे हालत हैं. इसके खिलाफ जन आंदोलन आज भी जारी है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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