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एआई युग में शिक्षकों की भूमिका 

नया विचार न्यूज़21वीं सदी के तीसरे दशक में, जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) तेज़ी से शिक्षा प्रणाली में प्रवेश कर रही है, तब यह आवश्यक हो गया है कि हम शिक्षकों की पारंपरिक भूमिका पर पुनर्विचार करें। पहले जहाँ शिक्षक ज्ञान का प्रमुख स्रोत माने जाते थे, अब वह भूमिका तकनीक विशेष रूप से एआई आधारित टूल्स द्वारा साझा की जा रही है। छात्रों के पास अब स्मार्टफोन और लैपटॉप जैसे उपकरण हैं जिनमें वे एक क्लिक पर दुनिया भर की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। एआई टूल्स जैसे कि चैटबॉट्स, भाषा अनुवादक, वर्चुअल ट्यूटर, और ऑटोमैटिक असेसमेंट सिस्टम छात्रों को व्यक्तिगत और त्वरित सहायता प्रदान कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या शिक्षकों की भूमिका अब केवल तकनीकी सहायकों तक सीमित रह जाएगी?

इस बदलते परिदृश्य में शिक्षकों की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण और बहुआयामी हो गई है। एआई सूचना दे सकता है, लेकिन समझ, मूल्य, नैतिकता और सामाजिक बौद्धिक विकास जैसे पहलुओं में मानव शिक्षक की भूमिका अपरिहार्य है। शिक्षक अब केवल जानकारी देने वाले नहीं, बल्कि मॉडरेटर, मेंटर, मोटिवेटर और नैतिक मार्गदर्शक बनते जा रहे हैं। जब कोई छात्र एक एआई टूल से उत्तर प्राप्त करता है, तब उसे यह समझाने वाला चाहिए कि उस उत्तर का वास्तविक दुनिया में क्या महत्व है, क्या सीमाएं हैं, और उसमें क्या भावनात्मक या सामाजिक पहलू जुड़े हो सकते हैं। यह काम केवल एक संवेदनशील और प्रशिक्षित शिक्षक ही कर सकता है।

इसके अलावा, हर छात्र की सीखने की प्रक्रिया अलग होती है। भले ही एआई “पर्सनलाइज़्ड लर्निंग” का दावा करता हो, परंतु मानवीय संवेदनाओं, रुचियों और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों को समझने की जो क्षमता एक शिक्षक में होती है, वह किसी भी मशीन में नहीं हो सकती। शिक्षक छात्रों में सहानुभूति, सहयोग, नेतृत्व और आलोचनात्मक सोच जैसे गुणों का विकास करते हैं। वे क्लासरूम को केवल ज्ञान का केंद्र नहीं, बल्कि एक सामाजिक संवाद का मंच भी बनाते हैं।

हालांकि, यह भी सच है कि शिक्षकों को एआई के साथ सहयोग करना सीखना होगा, न कि उससे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए। शिक्षक यदि एआई टूल्स को अपनी शिक्षण पद्धति में एक सहायक उपकरण के रूप में अपनाएं, तो न केवल छात्रों को बेहतर अनुभव मिल सकता है, बल्कि शिक्षकों का कार्यभार भी कम हो सकता है। उदाहरण के लिए, असाइनमेंट की जांच, उपस्थिति दर्ज करना, या प्रारंभिक मूल्यांकन जैसे काम एआई कर सकता है, जिससे शिक्षक छात्रों के साथ अधिक गुणवत्तापूर्ण संवाद और मार्गदर्शन में समय दे सकें।

प्रशासन और शिक्षा नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे शिक्षकों को एआई साक्षर बनाएं। उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए कि वे तकनीकी टूल्स का प्रभावी उपयोग कैसे करें और उनकी सीमाओं को कैसे समझें। साथ ही, स्कूल और कॉलेजों में ऐसी शिक्षण संस्कृति विकसित की जाए जहाँ शिक्षक और तकनीक मिलकर छात्रों की संपूर्ण शिक्षा का आधार बनें।

निष्कर्षत, एआई युग में शिक्षक की भूमिका समाप्त नहीं हो रही, बल्कि और भी महत्वपूर्ण होती जा रही है। जहाँ तकनीक “क्या” और “कैसे” सिखा सकती है, वहीं शिक्षक यह सिखाते हैं कि “क्यों” सीखना ज़रूरी है। भविष्य की शिक्षा प्रणाली एक ऐसे मॉडल की माँग करती है जहाँ शिक्षक और एआई साथ मिलकर एक नई पीढ़ी को तैयार करें जो न केवल ज्ञानवान हो, बल्कि विवेकशील, संवेदनशील और समाज के प्रति उत्तरदायी भी हो।

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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