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कुरसेला का अनुपम अद्वितीय है मां सरस्वती मंदिर

कुरसेला इस वर्ष हाेने वाली मां सरस्वती की पूजा की तैयारी अंतिम चरण में है. नगर पंचायत कुरसेला गांव में अवस्थित सरस्वती मंदिर में पूजा के साथ विविध कार्यक्रमों की तैयारी को अमलीजामा दिया जा रहा है. विद्या की अधिष्ठात्री शक्ति पीठ के रुप में प्रतिष्ठापित कुरसेला ग्राम स्थित पौराणिक सार्वजनिक सरस्वती मंदिर अनुपम, अद्वितीय बनकर जन आस्था का केन्द्र बना हुआ है. मंदिर का स्थापना काल खुद में एक मिशाल है. गांव के पूर्वजों से लेकर वर्तमान पिढ़ी मंदिर के आस्था को संजोये हुए है. प्रतिवर्ष बसंत पंचमी के पावन अवसर पर सरस्वती पूजनोउत्सव पर मंदिर की भव्यता श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बन जाती है. मंदिर में भव्य प्रतिमा की स्थापना व धार्मिक आयोजन को यहां तक खींच लाती है. सरस्वती पूजा पर मंदिर परिसर में भव्य मेले लगता है. गांव के ग्रामीण सरस्वती मंदिर को तीन सौ वर्ष से भी पुराना मानते हैं. ऐतहासिक रूप में मंदिर की स्थापना तीन स्थानों और तीन स्वरूपों में हुआ है. कभी यह मंदिर गंगा नदी किनारे दियारा में स्थापित हुआ करता था. मंदिर का स्थापना काल वर्तमान पीढ़ी के लिए इतिहास बन चुका है. ग्रामीणो के अनुसार तकरीबन तीन सौ वर्ष पूर्व यह मंदिर गंगा किनारे खटियाहा बांध में हुआ करता था. उसी खटियाहा बांध में गांव के पूर्वजों ने सरस्वती मंदिर की स्थापना की थी. कटाव से खटियाहा गांव गंगा के कोख में समा जाने के बाद ग्रामीण सरस्वती मंदिर के आस्था को साथ लेकर पुरानी बाजार कुरसेला में आकर बस गये थे. यहां आकर मंदिर का पूजा आस्था कायम बना रहा. वर्ष 1872 में रेल लाइन व स्टेशन के निर्माण से गांव के अस्तित्व पर संकट आ गया. ग्रामीण इस जगह को छोड़ कुरसेला गांव आ गये. उस समय से ग्रामीण और सरस्वती मंदिर की आस्था यहीं आकर बसी हुई है. स्थान परिवर्तन के साथ बदला मंदिर का स्वरूप स्थान परिवर्तन के साथ मंदिर का स्वरूप भी बदलता चला गया. वर्ष 1875 से कुरसेला बस्ती लाये गये. उस समय से इस सरस्वती मंदिर की आस्था यहीं विराजमान है. खटियाहा बांध में मंदिर का स्वरूप झोपड़ी नुमा था. कुरसेला बस्ती आने पर मंदिर का कच्चे भवन में था. ग्रामीणों ने बताया कि गांव में सरस्वती मंदिर के बढते आस्था ने ग्रामीणों को मंदिर विकास के लिए उन्मुख किया. ग्रामीणों में मंदिर को नया स्वरूप देने की सोंचे पैदा हुई. लोग सहभागी सहयोग देने के लिये तत्पर हुए. मंदिर को नया स्वरूप देने के लिये वर्ष 1998 में निर्माण समिति का गठन किया. निर्माण समिति व ग्रामीणो के सहयोग से मंदिर को तीसरा आर्कषक स्वरूप देने की कवायद प्रारम्भ हुआ. जनसहयोग से तकरीबन दस लाख से अधिक राशि मंदिर के निमार्ण पर खर्च की जा चुकी है. ग्रामीणों का मानना है कि मंदिर को पूर्ण रुप से निर्माण कार्य पुरा करने में तकरीबन पन्द्रह लाख से अधिक की राशि राशि खर्च होने के अनुमान है. मदिर परिसर में शीतला माता का मंदिर है. मंदिर के नाम है जमीन सार्वजनिक सरस्वती मंदिर परिसर के अधिनस्थ कुल 31 डिसमिल भूमि बताया जाता हैं. इसके आलावा कुरसेला रेल ढाला के पीछे एक एकड़ और रेल स्टेशन के पीछे नौ कट्ठा जमीन मंदिर के नाम है. जमीन के फसलों के राशि मंदिर के पूजा और विकास कार्य में लगाया जाता है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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