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Ayatollah Khamenei : इजरायल-ईरान के बीच जारी जंग के दौरान इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनई की हत्या के बाद दोनों देशों के बीच जारी जंग समाप्त हो जाएगा. उन्होंने ईरान पर इजरायल द्वारा किए जा रहे हमले का भी बचाव करते हुए कहा कि यह सही दिशा में किया जा रहा प्रयास है और खामेनई की हत्या से समस्या का समाधान हो जाएगा. नेतन्याहू ने यह बयान तब दिया है जब डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता को निशाना बनाने की योजना को रोकने की बात कही है. अमेरिका का यह कहना है कि ईरान ने किसी अमेरिकी को नहीं मारा है, इसलिए हम उनके किसी सर्वोच्च नेता को निशाना बनाने की बात नहीं कर सकते हैं.
कौन हैं अयातुल्ला खामेनेई
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई बहुत की ताकतवर धार्मिक और नेतृत्वक हस्ती हैं. इस्लामी दुनिया में उनकी तूती बोलती है. उनकी उम्र 86 वर्ष है, लेकिन उनका रुतबा अबतक कायम है. वे शिया मुसलमान हैं और 1989 से ईरान के सर्वोच्च नेता के पद पर आसीन हैं. खामेनेई 1981 से 1989 तक ईरान के राष्ट्रपति पद पर रहे हैं. अयातुल्ला खामेनेई ईरानी क्रांति के नेता रहे अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी के बहुत करीबी रहे थे. ईरान की इस्लामी क्रांति 1979 में हुई थी. इस क्रांति के बाद ईरान में शरिया कानून लागू हुआ और वे ‘विलायत ए फकीह’ व्यवस्था के तहत ईरान के सर्वोच्च नेता का पद मिला था. उस वक्त अयातुल्ला खामेनेई दूसरे सबसे बड़े नेता थे. 1989 में जब अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी की मृत्यु हुई तो अयातुल्ला खामेनेई उनकी जगह ईरान के सर्वोच्च नेता बने.
अयातुल्ला खामेनेई और खुमैनी के बीच क्या था संबंध
अयातुल्ला खामेनेई और खुमैनी के बीच खून का कोई संबंध नहीं था. ये दोनों एक दूसरे से गुरु-शिष्य के संबंध में बंधे थे. खुमैनी जहां इस्लामी क्रांति के नेता थे खामेनेई उनके सबसे विश्वसनीय सिपाही थे. खुमैनी आध्यात्मिक गुरु थे, तो खामेनेई उनके नेतृत्वक उत्तराधिकारी. खुमैनी जहां धर्मशास्त्री और विचारक थे, खामेनेई धर्मशास्त्री और रणनीतिकार हैं.
क्या है ‘विलायत ए फकीह’ व्यवस्था
ईरान में ‘विलायत ए फकीह’ व्यवस्था की शुरुआत अयातुल्ला खुमैनी ने की थी. यह ईरान की इस्लामी शासन व्यवस्था का मूल सिद्धांत है, इसका अर्थ है- इस्लामी विद्वान का शासन. फकीह का अर्थ होता है विद्वान. इस शासन व्यवस्था का मूल यह है कि जब तक शिया मुसलमानों के 12वें इमाम मुहम्मद अल-महदी अदृश्य अवस्था में हैं, तब तक समाज का मार्गदर्शन और देश का शासन एक योग्य इस्लामी फकीह यानी विद्वान के हाथों में होना चाहिए. इस शासन व्यवस्था में शरीयत के अनुसार शासन किया जाता है. इसमें जिस विद्वान के हाथों में देश सौंपा जाता है वह ईरान का सर्वोच्च धार्मिक और नेतृत्वक नेता माना जाता है. सर्वोच्च नेता ही सेना, गुप्तचर, मीडिया, न्यायपालिका और धार्मिक मामलों के अंतिम निर्णयकर्ता होते हैं और उनके अधीन ही सभी प्रमुख अधिकारी और संस्थाएं काम करती हैं. मजलिस (संसद) कानून बनाती है लेकिन उन्हें सुप्रीम लीडर या गार्डियन काउंसिल अस्वीकार कर सकते हैं. गार्डियन काउंसिल भी सर्वोच्च नेता के अधीन ही होता है. इसका काम शरीयत के अनुसार देश चल रहा है या नहीं इसपर निगरानी रखना है. अयातुल्ला एक उपाधि है जिसका अर्थ होता है- ईश्वर का प्रतीक.
इजरायल के विरोधी क्यों हैं ईरान के सर्वोच्च नेता

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई इजरायल के कट्टर विरोधी है और इसके पीछे ईरान का इस्लाम में विश्वास करना और इजरायल का एक यहूदी देश होना है, प्रमुख कारण है. इसके अलावा नेतृत्वक, वैचारिक और रणनीति कारण भी हैं. ईरान का मानना है कि फिलिस्तीन की जमीन पर इजरायल का नाजायज कब्जा है, जिसकी वजह से वे इजरायल के खिलाफ हमास और हिज्बुल्लाह का समर्थन करते हैं. इजरायल की अमेरिका से नजदीकी है उसकी वजह से भी ईरान और इजरायल का विरोध रहता है.
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