GAZI MIYA: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ प्रशासन ने बहराइच ज़िले में सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर आयोजित होने वाले प्रसिद्ध ‘जेठ मेला’ पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है. इस निर्णय को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने भी वैध ठहराया है, जिससे राज्य प्रशासन को नैतिक और कानूनी दोनों आधारों पर मजबूती मिली है.
यह निर्णय प्रदेश प्रशासन के उन प्रयासों का हिस्सा बताया जा रहा है, जिनका उद्देश्य हिंदुस्तान की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करना और गुलामी के प्रतीकों को समाप्त करना है. इस फैसले का कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने जोरदार समर्थन करते हुए इसे एक ऐतिहासिक कदम करार दिया है.
सैयद सालार मसूद: आक्रांता या श्रद्धा का पात्र?
कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर ने स्पष्ट किया कि सैयद सालार मसूद गाजी इतिहास में एक आक्रांता के रूप में जाना जाता है, जिसने 11वीं शताब्दी में हिंदुस्तान पर आक्रमण कर अनेक मंदिरों को ध्वस्त किया था. उन्होंने कहा कि मसूद ने सोमनाथ मंदिर के साथ-साथ बहराइच के प्राचीन सूर्य मंदिर को भी तोड़ा था, और उसे महाराजा सुहेलदेव ने युद्ध में पराजित कर वीरगति प्रदान की थी.
इसके बावजूद, उसके सम्मान में आयोजित होने वाले मेले को राजभर ने जनभावनाओं के विरुद्ध बताया. उन्होंने कहा, “जिस व्यक्ति ने हमारी संस्कृति पर हमला किया, उसे श्रद्धा का पात्र बनाकर सम्मानित करना ऐतिहासिक तथ्यों और देश की अस्मिता का अपमान है.”
महाराजा सुहेलदेव की गौरवगाथा और जनआंदोलन
महाराजा सुहेलदेव को उत्तर हिंदुस्तान में एक राष्ट्रनायक और सनातन संस्कृति के रक्षक के रूप में जाना जाता है. उनके अनुयायियों और समाज के अनेक वर्गों की यह वर्षों पुरानी मांग रही है कि ऐसे किसी भी आयोजन पर रोक लगे जो उनके शत्रु के नाम पर हो.
अनिल राजभर ने बताया कि यह मेला वर्षों से ‘गाजी मियां का मेला’ नाम से आयोजित होता रहा, जिसे अब समाप्त करके जनभावनाओं को सम्मान दिया गया है. उन्होंने कहा, “यह निर्णय महाराजा सुहेलदेव के प्रति श्रद्धा रखने वाले करोड़ों लोगों की अपेक्षाओं को पूरा करता है.”
‘पंचप्रण’ के संकल्प को साकार करता निर्णय
राजभर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित ‘पंचप्रण’ का उल्लेख करते हुए कहा कि यह प्रतिबंध उस संकल्प का मूर्त रूप है, जिसमें हिंदुस्तान को गुलामी की मानसिकता और प्रतीकों से मुक्त करने का स्पष्ट आह्वान किया गया है.
उन्होंने कहा, “योगी आदित्यनाथ जी की प्रशासन ‘पंचप्रण’ के हर बिंदु को साकार करने में अग्रणी भूमिका निभा रही है. जेठ मेला पर प्रतिबंध उसी दिशा में एक मजबूत और साहसिक पहल है.”
हाईकोर्ट की मुहर: निर्णय को न्यायिक समर्थन
इस पूरे प्रकरण में महत्वपूर्ण बात यह रही कि जब इस प्रतिबंध के विरुद्ध जनहित याचिका दायर की गई, तो हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने राज्य प्रशासन के निर्णय में हस्तक्षेप करने से साफ इनकार कर दिया. अदालत ने माना कि यह निर्णय जनहित और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा की दृष्टि से उचित है. अनिल राजभर ने न्यायपालिका के इस निर्णय की सराहना करते हुए कहा कि यह प्रशासन की मंशा और संवैधानिक मूल्यों की पुष्टि करता है.
बदायूं के बाद अब बहराइच में भी रोक
राजभर ने बताया कि इससे पहले बदायूं में भी सालार मसूद के नाम पर लगने वाले मेले पर प्रतिबंध लगाया गया था. अब बहराइच में भी यह निर्णय लागू होने से स्पष्ट हो गया है कि प्रशासन किसी भी ऐसे आयोजन को अनुमति नहीं देगी, जो आक्रांताओं को महिमामंडित करता हो.
संस्कृति की रक्षा की दिशा में निर्णायक कदम
इस निर्णय को केवल एक धार्मिक या प्रशासनिक कदम कहना उचित नहीं होगा. यह हिंदुस्तानीय संस्कृति और इतिहास के सम्मान की दिशा में उठाया गया एक नीतिगत और नैतिक कदम है. राजभर ने कहा, “यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदेश है कि अब हिंदुस्तान अपने गौरवशाली अतीत को न केवल याद रखेगा, बल्कि उसे अपमानित करने वाले प्रतीकों को समाप्त भी करेगा. यह सांस्कृतिक पुनरुद्धार की शुरुआत है. ”बहराइच के ‘जेठ मेला’ पर प्रतिबंध केवल एक परंपरा को विराम देने का निर्णय नहीं, बल्कि हिंदुस्तान की सांस्कृतिक अस्मिता और ऐतिहासिक न्याय की पुनर्स्थापना की दिशा में एक बड़ा और साहसिक कदम है. यह निर्णय प्रशासन की राष्ट्रीय सोच, जनभावनाओं का सम्मान और ऐतिहासिक तथ्यों की पुनःस्थापना का परिचायक है.
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