Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता जीवन के संघर्षों में दिशा दिखाने वाला दिव्य ग्रंथ है. यह भय, भ्रम और तनाव की स्थिति में आत्मिक शांति, कर्तव्य और संयम का मार्ग सिखाती है. गीता निष्काम कर्म, मोह और अहंकार से मुक्त जीवन का संदेश देती है. यह आत्मचिंतन, विश्वास और संतुलन की प्रेरणा देती है. भगवद्गीता में “कर्मयोग” एक अत्यंत महत्वपूर्ण उपदेश है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्धभूमि में दिया. इसका तात्पर्य है कि कर्म करते हुए भी आसक्ति और फल की इच्छा से मुक्त रहना है. इसका मतलब है कि व्यक्ति अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाए, लेकिन उस कर्म के फल की चिंता न करें. ऐसे में आइए जानते हैं कर्मयोग का सिद्धांत क्या कहता है.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
इस श्लोक के जरिए भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है, उस कर्म के फलों से कोई सरोकार नहीं है. इसलिए कर्मों के फल का कारण न बने और न ही अपने कर्म करने में आसक्त हो.
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कर्मयोग के मुख्य सिद्धांत
निष्काम कर्म
बिना फल की कामना किए कर्म करना.
कर्तव्यपालन
अपने धर्म या कर्तव्य को निभाना ही सर्वोच्च योग है, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो.
आसक्ति का त्याग
कर्म से आसक्ति को छोड़ना और मन को समभाव में रखना.
योगः कर्मसु कौशलम्
कुशलता से, संतुलन बनाए रखते हुए कर्म करना ही योग है.
कर्मयोग का उद्देश्य
कर्मयोग आत्मा को शुद्ध करता है, मन को एकाग्र करता है और अंततः ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग बनता है. यह मनुष्य को कर्म के अहंकार से मुक्त करता है.
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