Women Empowerment: झारखंड की उप राजधानी दुमका के सुदूर गांवों की वे स्त्रीएं जिन्हें कभी चूल्हे-चौके और पर्दे की सीमाओं तक ही बांध दिया गया था. इन्होंने आज समय के साथ न सिर्फ अपनी सोच बदली, बल्कि अपने गांव और परिवार की तस्वीर भी बदल डाली. इनके हाथों में अब सिर्फ सिलाई या बेलन नहीं, बल्कि व्यापार का तराजू, हिसाब की डायरी और आत्मविश्वास की चाबी भी है. इस लेख में आगे आप ऐसी ही कुछ स्त्रीओं के बारे में पढ़ेंगे, जिन्हें दीदी की दुकानदार योजना का लाभ मिल रहा है.
स्त्रीओं को मिला सपनों को जीने का हौसला
बता दें कि झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा शुरू की गयी दीदी की दुकान योजना ने इन्हें केवल कमाई का जरिया नहीं दिया. बल्कि पहचान, सम्मान और सपनों को जीने का हौसला भी दिया. आज ये ग्रामीण स्त्रीएं जो कभी दूसरों पर निर्भर थीं, अब खुद स्वरोजगार की मिसाल बन चुकी हैं. दीदी की दुकान केवल एक व्यवसायिक पहल नहीं, बल्कि यह सामाजिक बदलाव की एक जीवंत तस्वीर है. जहां जो स्त्रीयें पहले निर्णयों से दूर थीं, आज वही स्त्रीयें आर्थिक फैसलों की अगुवा बन गयी है.
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आंदोलन का रूप ले रहा बदलाव
यह बदलाव धीरे-धीरे पूरे दुमका जिले में एक आंदोलन का रूप ले रहा है. यह एक ऐसी क्रांति है, जिसमें न कोई शोर है, न कोई झंडा, सिर्फ आत्मबल, संगठन और संघर्ष है. ये स्त्रीएं न सिर्फ खुद को आर्थिक रूप से सशक्त कर रही हैं. बल्कि अपने जैसी दूसरी स्त्रीओं को भी संगठन के साथ जोड़ रही हैं. वे साबित कर रही हैं कि आत्मनिर्भरता कोई सपना नहीं. बल्कि संगठन, संसाधन और साहस से बुना हुआ एक सशक्त यथार्थ है.
नारी सामर्थ्य का प्रतीक बनी दीदी की दुकान
बताया जाता है कि दीदी की दुकान आज गांव-गांव में नारी सामर्थ्य और ग्रामीण उद्यमिता का प्रतीक बन चुकी है. एक ऐसी उड़ान जो चौखट से शुरू होकर अब आर्थिक स्वतंत्रता और सामाजिक प्रतिष्ठा के आकाश को छू रही है. वर्तमान में दुमका जिले की 3000 से ज्यादा दीदियां अपने दुकान से न केवल अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं. इसके साथ ही समाज को संदेश भी दे रही हैं कि ईमानदार प्रयास और खुद पर विश्वास के साथ सपनों को हकीकत में बदला जा सकता है.
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खुशबू देवी : मां मनसा स्त्री मंडल दलदली
खुशबू देवी की कहानी एक साधारण स्त्री की असाधारण उपलब्धि है. उन्होंने मनसा स्त्री मंडल से जुड़कर सीआइएफ, सीसीएल लोन के जरिए 40,000 रुपये से अपनी दीदी की दुकान शुरू की. फिर, धीरे-धीरे दुकान का विस्तार किया. दूसरी बार कर्ज लेकर पूंजी बढ़ाई और आज उनकी दुकान में राशन, स्टेशनरी, कपड़े, ब्यूटी प्रोडक्ट्स सब कुछ मिलता है. खुशबू अब सालाना लगभग सवा लाख से अधिक की आमदनी कर रही हैं. इसके साथ ही वह अपने जैसी अन्य स्त्रीओं को जोड़कर उन्हें भी इस ओर कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
रबजान बीबी : लक्ष्मी स्त्री मंडल, कालाझर
कभी दूसरों से उधार मांगकर गुजारा करने वाली रबजान बीबी ने लक्ष्मी स्त्री मंडल से जुड़कर नयी राह पकड़ी. उन्होंने 45,000 का लोन लेकर गांव में एक जनरल स्टोर खोला, जिसमें रोजमर्रा की चीजें रखी. आज वह न केवल अच्छी आमदनी कर रही हैं, बल्कि अपने बच्चों की शिक्षा, घर की जरूरत और सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरे आत्मविश्वास से निभा रही हैं. समूह ने उन्हें आर्थिक रूप से ही नहीं, मानसिक रूप से भी मजबूत बना दिया है.
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बबीता : मां वैष्णवी स्त्री मंडल, शंकरा
बबीता ने अपने आत्मबल और मेहनत से यह साबित किया कि गांव की सीमाएं सपनों की उड़ान को रोक नहीं सकती. जब उन्होंने समूह से 30,000 रुपये का कर्ज लेकर राशन की दुकान खोली, तो शुरुआत में संकोच था. पर धीरे-धीरे उन्होंने दुकान में सब्जी, मसाले, सर्फ, बिस्किट, बच्चों की चीजें भी जोड़ी. आज उनकी मासिक आय 10 हजार रुपये तक है. अब वह न सिर्फ अपने परिवार की रीढ़ बनी है, बल्कि अन्य स्त्रीओं को भी प्रेरित करती है.
आमना : चंपा फूल स्त्री मंडल, दुबइडीह
गांव की दीदी जिन्होंने आत्मनिर्भरता को जीवन मंत्र बनाया. माइनॉरिटी परिवेश से आने वाली आमना खातून कभी खेती-मजदूरी से अपना जीवन चला रही थी. चंपा फूल स्त्री मंडल से जुड़कर उन्होंने 40,000 रुपये का पहला लोन लिया और किराने की छोटी दुकान शुरू की. ग्राहकों का भरोसा बढ़ा तो दूसरा लोन लेकर दुकान में सामान बढ़ाये. आज वह एक लाख सालाना कमाती है और स्त्री मंडल की सक्रिय सदस्य भी हैं. उनका सपना है कि हर घर से एक आत्मनिर्भर दीदी निकले.
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