रांची, आनंद मोहन-झारखंड विधानसभा में बुधवार को पहली पाली में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के एक कार्यपालक अभियंता (एग्जीक्यूटिव इंजीनियर) और अन्य अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग को लेकर खूब शोर-गुल हुआ. सत्ता पक्ष के विधायकों ने कार्यपालक अभियंता प्रभात कुमार पर घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की. रांची में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की स्वर्णरेखा परियोजना के तहत एक काम में फर्जी एकाउंट खोल कर करोड़ों रुपये की अवैध निकासी की गयी. रोकड़पाल संतोष कुमार ने अपने खाते में 30 करोड़ जमा कर लिये. इस मामले में कार्यपालक अभियंता प्रभात कुमार निकासी सह व्ययन पदाधिकारी यानी डीडीओ की जिम्मेवारी में थे, पर प्राथमिकी रोकड़पाल पर दर्ज की गयी. सत्ता पक्ष का कहना था कि इस काम में कार्यपालक अभियंता सहित अन्य अधिकारी शामिल हैं. मंत्री योगेंद्र महतो का कहना था कि प्रशासन जांच करा रही है. जांच रिपोर्ट आने दीजिये. कठोर से कठोर कार्रवाई करेंगे.
मंत्री के जवाब से संतुष्ट नहीं था सत्ता पक्ष
सत्ता पक्ष मंत्री के जवाब से संतुष्ट नहीं था. सदन में यह मामला कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने उठाया था. उनका कहना था कि करोड़ों की राशि की बंदरबांट हुई है. इस मामले में कार्यपालक अभियंता भी शामिल हैं. सत्ता पक्ष के विधायक स्टीफन मरांडी, रामेश्वर उरांव, हेमलाल मुर्मू और मथुरा प्रसाद महतो भी कार्यपालक अभियंता पर कार्रवाई के पक्ष में थे. सत्ता पक्ष के इन विधायकों का कहना था कि कार्यपालक अभियंता पर कार्रवाई कीजिये. हर हाल में प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए. विभागीय जांच चल रही है, तो इसका मतलब है कि वह दोषी हैं. विधायकों का कहना था कि कार्यपालक अभियंता को बचाने की साजिश चल रही है.
जब प्रदीप यादव प्राथमिकी को लेकर अड़ गये
प्रदीप यादव सदन में प्राथमिकी को लेकर अड़ गये. उन्होंने कहा कि प्रशासन किसी की हो, भ्रष्टाचार से समझौता नहीं हो सकता है. यह न्याय नहीं है. हम लोग सदन में क्यों आते हैं? कार्रवाई नहीं हुई, तो धरना पर बैठ जाऊंगा. इस मामले में स्पीकर रबींद्र नाथ महतो ने कहा कि इस मामले में सदन का 27 मिनट गुजर गया है. इतनी देर से बहस हो रही है. सबकुछ क्लियर है. कुछ छिपा नहीं है. सदन की भावना समझिये. आसन गंभीर है, ऐसा ना हो कि नियमन देना पड़े.
प्रश्नकर्ता प्रदीप यादव की दलील
पैसा एल एंड टी के खाते में नहीं भेज कर रोकड़पाल के खाते में गया. कार्यपालक अभियंता डीडीओ थे. विपत्र में लिखा होता है कि गड़बड़ी के लिए हस्ताक्षरकर्ता दोषी होगा. कार्यपालक अभियंता दोषी नहीं है, तो विभागीय कार्रवाई क्यों चल रही है? ऐसे में प्राथमिकी दर्ज करने में क्या दिक्कत है? वित्त विभाग ने भी जांच की है. गड़बड़ी की है. खुद प्रशासन मान रही है कि दोषी है, फिर बहलाने-फुसलाने का काम क्यों हो रहा है?
किस विधायक ने क्या कहा?
स्टीफन मरांडी : कार्यपालक अभियंता को बचाने की साजिश चल रही है. रोकड़पाल ही दोषी क्यों? प्रशासन का जवाब सही नहीं है.
रामेश्वर उरांव : किसी को बचाने की कोशिश नहीं हो. एसीबी जांच की बात कही जा रही है. तीन तरह के केस होते हैं. एक होता है-फंसा दो, दूसरा होता है- ध्वस्त कर दो, ढंक दो और तीसरा दूध का दूध, पानी का पानी. पुलिस अफसर रहा हूं. अनुभव से बात कह रहा हूं.
मथुरा महतो : निचले तबके पर कार्रवाई हो गयी. कठोर से कठोर कार्रवाई क्या होती है. फांसी तो नहीं दीजियेगा. एफआइआर कीजिये.
हेमलाल मुर्मू : सबकुछ रोकड़पाल नहीं कर सकता है. मंत्री की नीयत सही नहीं है. कार्रवाई कीजिये, प्रशासन का नाम होगा.
एक सप्ताह का समय दीजिये, दोषी होगा तो कार्रवाई होगी : मंत्री
मंत्री योगेंद्र महतो की दलील थी कि रोकड़पाल पर प्राथमिकी दर्ज हुई है. जेल में है. एसीबी को केस टेक-ओवर करने के लिए लिखा गया है. रोकड़पाल ने फर्जी हस्ताक्षर कर गबन किया था. कार्यपालक अभियंता पर मामला बनता नहीं दिख रहा है. फिर भी जांच करा रहे हैं. दोषी होगा, तो बख्शा नहीं जायेगा. खुद विभाग ने गलती पकड़ी है. एक सप्ताह का समय दीजिये, कार्रवाई होगी.
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