डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार अमेरिका की सत्ता संभालते ही ऐसी तबाही ला दी है कि क्या दोस्त और क्या दुश्मन, सभी के छक्के छूट गये हैं. उनके टैरिफ युद्ध की शुरुआत के साथ सारी दुनिया के व्यापारिक और उत्पादन जगत में भारी गिरावट आ गयी है. शेयर बाजार ध्वस्त हो चुके हैं. हिंदुस्तान समेत दुनियाभर के शेयर बाजारों में आयी गिरावट से निवेशकों को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ. इसे न केवल ‘ब्लैक मंडे’ का नाम दिया जा रहा है, बल्कि वैश्विक मंदी की आहट के रूप में भी देखा जा रहा है. दरअसल ट्रंप के टैरिफ वॉर से यह डर फैल गया है कि वैश्विक वित्तीय स्थिति धीमी पड़ सकती है. इससे सहमे हुए निवेशकों ने शेयर बेचने शुरू कर दिये. जाहिर है, इससे अमेरिकी वित्तीय स्थिति को लेकर भी अनिश्चितता बढ़ गयी है.
कुल मिलाकर, चारों ओर कोहराम मचा हुआ है और किसी की भी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. मंदी के एक दौर के कयास लगाये जा रहे हैं. उधर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देखने को मिल रही है. आने वाले दिनों में अगर अमेरिका में मंदी की घंटी बज गयी, तो कच्चे तेल की कीमत में और भी गिरावट देखने को मिल सकती है. इस समय कच्चे तेल की मांग घट गयी है और दो बड़े उपभोगकर्ता चीन और हिंदुस्तान भी कम तेल खरीद रहे हैं. चीन ने तो बड़े पैमाने पर बिजली से चलने वाले वाहन बनाना शुरू कर दिया है और वहां परंपरागत वाहनों की बिक्री घटती जा रही है, जिससे तेल की मांग काफी घटी है.
इस संदर्भ में याद किया जाना चाहिए कि पिछले साल यानी 2024 में पूरी दुनिया में कच्चे तेल की मांग कम रही, क्योंकि आर्थिक मंदी जैसे हालात बनते जा रहे थे. हर देश ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की खोज कर रहा था और अब भी कर रहा है. हिंदुस्तान भी इसमें शामिल है और यहां बिजली से चलने वाले वाहनों पर जोर दिया जा रहा है. इससे कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय मांग घट गयी है. नतीजतन उत्पादक देशों के पास सरप्लस तेल हो गया है, जिससे उन्हें छुटकारा पाना ही होगा. इसके अलावा ओपेक के कई देशों ने तेल उत्पादन में जो कटौती की थी, उसे वापस करना शुरू किया है और वे कहीं ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं. हालत यह है कि इस समय दुनिया भर के तेल उत्पादक देश कुल मिलाकर हर रोज 10 करोड़ बैरल तेल का उत्पादन कर रहे हैं. इसके अलावा उनके पास 50 लाख बैरल तेल और उत्पादित करने की क्षमता है. यह अतिरिक्त क्षमता ओपेक के देशों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि तेल की अंतरराष्ट्रीय मांग इस समय लगातार घटती जा रही है. इसके बावजूद ओपेक के शीर्ष तेल उत्पादक देश अपना उत्पादन बढ़ा ही रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों से दुनियाभर के देशों में कारखानों के पहिये धीमे पड़ गये हैं और उनसे ज्यादा कच्चा तेल खरीदने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. इसका नतीजा यह है कि तेल के दाम लगातार गिरते जा रहे हैं और वे कोविड महामारी काल के करीब जा पहुंचे हैं. अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतों में पिछले हफ्ते शुक्रवार को सात फीसदी की गिरावट हुई और आने वाले दिनों में इसमें और गिरावट आने की आशंका है, क्योंकि मांग और आपूर्ति में कोई मेल नहीं है. ट्रंप के छेड़े हुए ट्रेड वॉर के तुरंत शांत होने की संभावना नहीं दिखती है, जिसका असर दुनिया भर में कारखानों में उत्पादन पर पड़ेगा.
हिंदुस्तान को फिर इसका लाभ मिलेगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमत घटेगी. वैसे तो हिंदुस्तान ने बड़े पैमाने पर रूस से कम दामों में तेल खरीदा है, लेकिन अगर सभी तेल उत्पादक देशों में दाम गिर जाये, तो बात ही क्या है! इसका फायदा देश में ग्राहकों को मिल सकता है. केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने आशा जतायी है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें इसी तरह दबी रहीं, तो पेट्रोल, डीजल की कीमतों में कटौती होगी. उन्होंने जिस विश्वास से यह कहा है, उससे लगता है कि थोड़े समय में पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटायी जायेंगी. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के कुछ पहले पेट्रोल की कीमतें घटायी गयी थीं. उससे पहले मई, 2022 में भी पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटायी गयी थीं. केंद्र प्रशासन ने उस समय तेल पर उत्पाद शुल्क घटा दिया था.
यूक्रेन युद्ध के समय कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर पर थी, जो कि गिरकर 70 डॉलर प्रति बैरल पर जा चुकी है और इसमें आगे भी गिरावट दिख रही है. ओपेक देश, जो तेल की आपूर्ति नियंत्रित करने के लिए उत्पादन में कटौती करते रहे हैं, इस समय उत्पादन बढ़ा रहे हैं. इसका असर साफ दिख रहा है, लेकिन वे पीछे हटने वाले नहीं है. इससे भविष्य में कच्चे तेल की कीमत और गिर सकती है. ऐसे में देखना यह है कि हिंदुस्तान में तेल कंपनियां कब पेट्रोल-डीजल की कीमतें घटाती हैं और जनता को लाभ मिलता है. देर-सबेर तो यह होना ही है. तब तक इंतजार करना होगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)
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