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दिल्ली में 26 साल पहले प्याज-ड्रॉप्सी से ड्रॉप हुई थी भाजपा, आप’दा को हराकर आई वापस

Delhi Assembly Election: दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड जीत मिली है. आज से 26 साल पहले साल 1998 के दौरान दिल्ली में प्याज की बढ़ती कीमतों और ड्रॉप्सी नामक बीमारी की वजह से भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था. 1998 में इन्हीं दो कारणों से कांग्रेस ने भाजपा को हराकर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नेतृत्व में प्रशासन बनाई थी. उसके बाद से भाजपा हमेशा विपक्ष में ही बैठती रही. 26 साल बाद 2025 में भाजपा ने आप’दा (आम आदमी पार्टी) को हराकर दिल्ली की सत्ता में वापसी की है.

1998 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में जीती थी कांग्रेस

1998 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में जबरदस्त जीत हासिल की थी. उस समय भाजपा प्रशासन के खिलाफ जनता में नाराजगी थी, जिसका एक बड़ा कारण प्याज की बढ़ती कीमतें और ड्रॉप्सी नामक बीमारी का फैलना था.

प्याज की कीमतों ने बदला चुनावी गणित

1998 में दिल्ली में प्याज की कीमतें 50-60 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई थीं, जो उस समय बहुत ज्यादा थी. प्याज आम आदमी की रोजमर्रा की जरूरतों में शामिल होता है और इसकी कीमतें बढ़ने से जनता में भाजपा प्रशासन के प्रति असंतोष बढ़ गया.

सरसों तेल में मिलावट से दिल्ली में फैली थी ड्रॉप्सी की बीमारी

ड्रॉप्सी एक खाद्य विषाक्तता (Food Poisoning) से जुड़ी बीमारी थी, जो मिलावटी सरसों के तेल के कारण फैली थी. दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में इस बीमारी से सैकड़ों लोग बीमार पड़ गए थे और कई मौतें भी हुई थीं. इस मुद्दे ने भी भाजपा प्रशासन की छवि को नुकसान पहुंचाया था.

शीला दीक्षित की ऐतिहासिक जीत

इन दोनों बड़े मुद्दों के चलते भाजपा को भारी नुकसान हुआ और कांग्रेस ने 70 में से 52 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया. शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं और लगातार 15 साल (1998-2013) तक सत्ता में रहीं.

2025 में भाजपा को जीत कैसे मिली

  • पीएम मोदी की लोकप्रियता का लाभ: 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 26 साल बाद सत्ता में वापसी की, जो नेतृत्वक रूप से ऐतिहासिक जीत मानी जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र प्रशासन की नीतियों ने भाजपा को मजबूत समर्थन दिलाया. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत के बाद दिल्ली में भी पार्टी को इसका सीधा फायदा मिला.
  • अरविंद केजरीवाल और आप के खिलाफ नाराजगी: दिल्ली में भाजपा की प्रचंड जीत के पीछे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के खिलाफ मतदाताओं की नाराजगी अहम कारण है. आम आदमी पार्टी की प्रशासन पर शराब नीति में घोटाले के आरोप लगे, जिससे जनता में नकारात्मक माहौल बना. कई आप नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और कुछ को गिरफ्तार भी किया गया. इसका भाजपा ने चुनाव प्रचार में जोरदार इस्तेमाल किया. पहले जिन योजनाओं (फ्री बिजली-पानी, मोहल्ला क्लीनिक, शिक्षा मॉडल) से आप को समर्थन मिलता था, उन पर भी सवाल उठे.
  • हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की लहर: भाजपा ने चुनाव प्रचार में राम मंदिर, कश्मीर और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी. इससे मतदाता खासकर शहरी और मध्यम वर्ग भाजपा की ओर झुका.
  • कांग्रेस का कमजोर प्रदर्शन: कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने में असफल रही और 70 में से 67 सीटों पर उनके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. इससे भाजपा को विपक्ष-विहीन माहौल मिला और एंटी-आप वोट भाजपा में शिफ्ट हो गया.

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  • आप कमजोर रणनीति और गवर्नेंस पर सवाल: पूरे चुनाव के दौरान भाजपा ने यह प्रचार किया कि आम आदमी पार्टी मुफ्त योजनाओं से सिर्फ वोटबैंक की नेतृत्व कर रही है, जबकि भाजपा ने ‘विकास’ और ‘सशक्तिकरण’ की बात की. पार्टी के कई नेता असंतुष्ट थे, जिससे चुनाव में भाजपा को फायदा मिला.
  • भाजपा का आक्रामक चुनाव प्रचार: भाजपा ने दिल्ली में फुल कैंपेनिंग मशीनरी लगाई. इसमें प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े नेता लगातार रैलियां कर रहे थे. उनके ‘डोर-टू-डोर’ कैंपेन और सोशल मीडिया रणनीति भी जबरदस्त रही.
  • मतदाताओं का ध्रुवीकरण: भाजपा ने खासकर पूर्वांचली, पंजाबी, बनिया और गुजराती मतदाताओं को एकजुट किया, जो दिल्ली में बड़ा वोट बैंक हैं. शाहीन बाग और सीएए जैसे मुद्दों पर जोर दिया, जिससे कुछ खास वर्गों का समर्थन भाजपा को मिला.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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