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नंद चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान : नंद बाबू राजनीतिक सोच और कविता को जोड़कर लिखते थे

nand-chaturvedi : जिस उम्र में व्यक्ति अध्यात्म की शरण में जाते हैं उसमें भी नंद बाबू इस दुनिया में रहे. दुनिया की समस्या में रहे उनमें डूबे और लिखा.नंद बाबू नेतृत्वक सोच और कविता को जोड़कर लिखते हैं जो एक बड़ी साहित्यिक चुनौती है. नागरिक के रूप में कविता लिखते,वे जीवन में कभी थके नहीं. उक्त बातें ‘हमारे समय में लेखन’ विषय पर नंद चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान में प्रख्यात कवि, कथाकार विष्णु नागर ने कही. कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ दिव्यप्रभा नागर ने की . कार्यक्रम में नंद चतुर्वेदी की कविताओं के बांग्ला अनुवाद ‘शिशिरेइ सेइ दिन’ का विमोचन भी हुआ.…

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nand-chaturvedi : जिस उम्र में व्यक्ति अध्यात्म की शरण में जाते हैं उसमें भी नंद बाबू इस दुनिया में रहे. दुनिया की समस्या में रहे उनमें डूबे और लिखा.नंद बाबू नेतृत्वक सोच और कविता को जोड़कर लिखते हैं जो एक बड़ी साहित्यिक चुनौती है. नागरिक के रूप में कविता लिखते,वे जीवन में कभी थके नहीं. उक्त बातें ‘हमारे समय में लेखन’ विषय पर नंद चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान में प्रख्यात कवि, कथाकार विष्णु नागर ने कही. कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ दिव्यप्रभा नागर ने की . कार्यक्रम में नंद चतुर्वेदी की कविताओं के बांग्ला अनुवाद ‘शिशिरेइ सेइ दिन’ का विमोचन भी हुआ.

विष्णु नागर ने कहा कि नंद बाबू ऐसे कवि थे जो केवल कविता के लिए कविता नहीं करते, समाज के लिए करते थे. समता -न्याय उनकी कविता के केंद्र में था जो सवाल उनके नेतृत्वक चिंतन के केंद्र में थे वे ही उनकी कविता के केंद्र में भी थे. नागर जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आधुनिक हिंदुस्तान के इतिहास का काला अध्याय पिछला समय है, लेखक का ऐसे समय में कर्तव्य और बढ़ गया है. आर्थिक उदारीकारण ने लोगों की सोचने -समझने की शक्ति समाप्त कर दी. इसने व्यक्ति को संगठनों से दूर कर दिया.

नागर जी की चिंता है कि हिंदी लेखन में अधिकांश केवल साहित्यिक लिखा जाता है, मौलिक लेखन बंद हो गया है. हिन्दी में साहित्येतर कार्य बंद हो गया है. दूसरी चिंता यह है कि कुछ भी लिखा जाए तो कहीं भी किसी की भावना आहत हो जाए. आज के हिंदी लेखक समाज की उथल -पुथल से बिल्कुल विमुख है वे आज भी वाल्मीकि युग में जी रहे है. हिंदी का लेखक आज के युग में डरा है, पर उपलब्धि है कि हिंदी लेखक का जनतांत्रिकीकरण हो रहा है स्त्रीएं, दलित व आदिवासी लेखक पहले से अधिक नज़र आते है. यह हिन्दी लेखन की उपलब्धि है.

डॉ माधव हाड़ा ने अपने वक्तव्य में कहा कि सत्ता को मनुष्य के जीवन मे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. हाड़ा के अनुसार नन्द बाबू गंभीर विचारपरक लेखक थे, उन्हें कविता पर भरोसा था, नन्द बाबू के मन में कविता को लेकर द्वन्द्व नहीं था. प्रो दिव्याप्रभा नागर ने आज के साहित्य की पीड़ा और भटकाव के प्रति अपनी चिंता प्रकट की.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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