जिस छत्तीसगढ़ को हाल के वर्षों तक देश में सर्वाधिक नक्सल प्रभावित राज्य बताया जाता रहा है, वहां पिछले कुछ समय से सुरक्षाबलों के सघन अभियानों के साथ योजनाबद्ध विकास कार्यक्रमों ने नक्सलियों को लगभग हाशिये पर ला दिया है. अगले साल मार्च तक देश को नक्सल मुक्त करने की मुहिम के तहत फिलहाल छत्तीसगढ़ के बस्तर रेंज को नक्सल मुक्त करने पर जोर दिखाई देता है. इस सदी के पहले दशक में नक्सलियों की ताकत का व्यापक विस्तार हुआ था, लेकिन अब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की अनुमानित संख्या चार-पांच हजार के आसपास सिमट गयी हो, तो आश्चर्य नहीं. तथ्य यह है कि प्रशासनी सक्रियता से नक्सलियों का आंकड़ा सिमटने के साथ-साथ स्थानीय लोग भी उनके भय से मुक्त हुए हैं.
सिर्फ इस साल की बात करें, तो नौ फरवरी, 20 मार्च और 30 मार्च को छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के खिलाफ तीन ऑपरेशन किये गये, जिनमें 79 नक्सली मारे गये. इस साल अभी तक कुल मिलाकर 135 नक्सली मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं. विगत 30 मार्च को सुकमा में सुरक्षाबलों के ऑपरेशन में 18 नक्सली मारे गये, जिनमें 11 स्त्रीएं थीं. उसके अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छत्तीसगढ़ दौरे से ठीक पहले बीजापुर में 50 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें 10 स्त्रीएं थीं. सिर्फ यही नहीं कि इतनी बड़ी संख्या में नक्सलियों के आत्मसमर्पण करने की यह विरल घटना है, बल्कि हथियार सौंपने वालों में अनेक नक्सली शीर्ष स्तर के थे. जबकि अभी तक ज्यादातर निचले स्तर के नक्सली ही आत्मसमर्पण का रास्ता चुनते थे.
प्रशासन की नीति है कि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों का पुनर्वास कर उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा. सुरक्षा बलों का ऑपरेशन कितना व्यापक है, इसका पता इसी से चलता है कि शनिवार को सुकमा में हुए ऑपरेशन के दो दिन बाद ही बस्तर रेंज में 25 लाख के इनाम वाली एक स्त्री नक्सली मुठभेड़ में मारी गयी. निश्चित रूप से सुरक्षा बलों की कार्रवाई ज्यादा बड़ी और अनवरत है. लेकिन नक्सल प्रभावित इलाकों में बड़े पैमाने पर विकास कार्य भी किए जा रहे हैं. ऐसे अनेक गांव हैं, जहां कई दशकों के बाद बिजली और सड़क पहुंची है. वैसे दूरस्थ और दुर्गम इलाकों में दूरसंचार और बैंकिंग व्यवस्था भी मजबूत की जा रही है. इससे भी स्थानीय लोगों का प्रशासन पर भरोसा बढ़ा है.
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