नया विचार न्यूज़ समस्तीपुर/पटना: एक महत्वपूर्ण एवं संवैधानिक निर्णय में, पटना उच्च न्यायालय ने शनिवार को डॉ. गीता कुमारी, सहायक प्राध्यापक, विभाग माइक्रोबायोलॉजी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के स्थानांतरण को रद्द कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय के कुलपति को RPCAU अधिनियम, 2016 के तहत शिक्षण कर्मचारियों के स्थानांतरण का कोई संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहॉ है। यह निर्णय माननीय न्यायाधीश हरिश कुमार द्वारा नागरिक लेखा क्षेत्राधिकार याचिका संख्या 11716/2025 में सुनाया गया।
माननीय न्यायालय ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 के प्रावधानों का गहराई से परीक्षण किया। न्यायालय ने विशेष रूप से यह रेखांकित किया कि निरस्त किए गए बिहार कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 1987 के विपरीत, 2016 का अधिनियम कुलपति को स्थानांतरण करने का स्पष्ट अधिकार नहीं देता। स्थानांतरण और अनुशासनात्मक शक्तियाँ केवल बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट के पास ही निहित हैं, जब तक कि विधिक प्रावधान द्वारा स्पष्ट रूप से अधिकार आवंटित न किया गया हो।
डॉ. गीता कुमारी ने उच्च न्यायालय का रुख इस आधार पर किया कि कार्यालय आदेश संख्या 76 दिनांक 18 मई 2025 एवं कार्यमुक्ति आदेश दिनांक 28 मई 2025 के तहत उन्हें माइक्रोबायोलॉजी विभाग पूसा कैंपस से केले अनुसंधान केन्द्र, गोरौल में स्थानांतरित किया गया था। याचिकाकर्त्री ने यह भी प्रस्तुत किया कि यह स्थानांतरण पूर्णतः मनमाना, द्वेषपूर्ण, विधि-विपरीत एवं M.Sc. एवं Ph.D. छात्र-पर्यवेक्षण पर गंभीर रूप से प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला था।
माननीय न्यायालय ने कहा कि केवल प्रशासनिक प्रथा का लंबे समय तक चलना संवैधानिक प्रावधानों की जगह नहीं ले सकता। कुलपति को ऐसा स्थानांतरण आदेश देने का कोई अधिकार नहीं प्राप्त है जब तक अधिनियम द्वारा स्पष्ट रूप से या वैध रूप से ऐसा अधिकार नहीं सौंपा गया हो। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनधिकृत स्थानांतरण का गैरकानूनीपन अस्थायी पद ग्रहण करने से वैध नहीं हो जाता।
निष्पक्ष एवं स्पष्ट निर्णय में, न्यायालय ने प्रतिवादी आदेश को अल्ट्रा वायर्स मानते हुए खारिज कर दिया। इसलिए, पटना उच्च न्यायालय ने संबंधित विश्वविद्यालय प्रशासन को निर्देशित किया कि डॉ. गीता कुमारी को तत्क्षण उनके मूल पद – सहायक प्राध्यापक, विभाग माइक्रोबायोलॉजी पूसा कैंपस में बहाल किया जाए। यह निर्णय इस संवैधानिक सिद्धांत को पुनः पुष्ट करता है कि सभी प्रशासनिक कार्यवाही, विशेष रूप से स्थानांतरण, केवल विधायिका द्वारा निर्धारित संवैधानिक ढांचे के तहत होनी चाहिए।