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पश्चिम एशिया में गहराता संकट

ईरान और इस्राइल के बीच शुरु हुए युद्ध से सिर्फ पश्चिम एशिया नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए जोखिम कहीं ज्यादा बढ़ गया है. ईरान के परमाणु कार्यक्रम से चौकन्ने इस्राइल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर हमला कर भारी नुकसान किया, तो ईरान ने भी जवाबी कार्रवाई की, लेकिन यह इन दो देशों की लड़ाई भर नहीं है. इस्राइल की पीठ पर अमेरिका का हाथ है, जो ईरान के साथ परमाणु कार्यक्रम पर वार्ता करना चाहता है, लेकिन इस्राइल की आक्रामकता के बाद अब ईरान न सिर्फ अमेरिका से वार्ता का इच्छुक नहीं है, बल्कि उसने अमेरिका के साथ-साथ ब्रिटेन और फ्रांस को भी चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने ईरान की मिसाइल और ड्रोन हमलों को रोकने की कोशिश की, तो उनके सैन्य ठिकानों और जहाजों को भी निशाना बनाया जायेगा. पिछले साल गाजा में संघर्ष के दौरान ईरान ने इस्राइल पर मिसाइल और ड्रोन दागे थे, जिसका इस्राइल ने भी जवाब दिया, लेकिन अब जो हो रहा है, वह ज्यादा खतरनाक है और दुनिया का बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित हो सकता है.

इस्राइल ताकतवर देश है और अमेरिका उसके साथ है लेकिन ईरान को निशाना बनाने के कारण इस्राइल अब हमास, हिजबुल्ला और हूथी जैसे आतंकी संगठनों के निशाने पर आ सकता है. हिंदुस्तान ने ईरान पर इस्राइली हमले की निंदा करने वाले शंघाई सहयोग संगठन के बयान से खुद को अलग रखा है, लेकिन वह चाहता है कि बातचीत और कूटनीति के जरिये इस्राइल और ईरान के बीच तनाव कम करने की दिशा में काम किया जाये. एससीओ के प्रस्ताव से खुद को अलग रखने का कारण इस्राइल से दोस्ती नहीं है. आखिर हिंदुस्तान ब्रिक्स के मंच से इस्राइल की आलोचना कर ही चुका है, लेकिन हिंदुस्तान नहीं चाहता कि इस्राइल की आलोचना करते हुए वह उस पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखे, जो एससीओ का सदस्य देश है. यह जंग न रुकी, तो पश्चिम एशिया में स्थिति और गंभीर हो सकती है और हिंदुस्तान के लिए भी मुश्किलें बढ़ने की आशंका है. इससे इस्राइल और ईरान में हमारा निर्यात तो प्रभावित होगा ही, कच्चे तेल की आपूर्ति और कीमत पर भी असर पड़ने की आशंका है, जिससे न केवल तेल बिल बढ़ेगा, बल्कि कम हो चुकी महंगाई बढ़ने लगेगी. ईरान में पढ़ाई कर रहे हिंदुस्तानीय छात्र भी इस जंग से प्रभावित हो सकते हैं. ऐसे में, मानवता का तकाजा तो यही है कि जितनी जल्दी हो सके, यह युद्ध रुके.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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