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पाई-पाई को मोहताज पाकिस्तान, जंग के लिए तैयार! स्कूलों में न पानी, न टॉयलेट, न क्लासरूम; रिपोर्ट ने खो पोल 

Pakistan Education Crisis: पाकिस्तान में शिक्षा व्यवस्था खुद बदहाल है, फिर भी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ से लेकर फील्ड मार्शल मुनीर तक, हर कोई अफगानिस्तान से जंग लड़ने को लेकर बेचैन है. हाल ही में देश के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ भी शेखी बघारते नजर आए. आसिफ ने सीधे तौर पर हिंदुस्तान पर तालिबान के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ जंग छेड़ने का आरोप लगाया. आसिफ ने कहा कि वह दोनों मोर्चों पर लड़ने के लिए तैयार हैं.

पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, जून के अंत तक पाकिस्तान के पास 14.5 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा थी. यह पैसा ज्यादातर पुराने कर्ज को चुकाने, पुराने कर्ज को बढ़ाने और नए कर्ज लेने से आया है. इसका मतलब है कि पाकिस्तान अब दूसरे देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर ज्यादा निर्भर हो गया है. आर्थिक मामलों के मंत्रालय, स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान और वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त साल 2024-25 में पाकिस्तान ने कुल 26.7 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज लिया. इसमें से सिर्फ 13% यानी करीब 3.4 अरब डॉलर का इस्तेमाल खास प्रोजेक्ट्स के लिए हुआ.

लेकिन यह सिक्के का एक पहलू है, दूसरा यह है कि वहां की राजधानी इस्लामाबाद में हालात इतने खराब हैं कि बच्चों के स्कूल जाने की जगह किसी संघर्ष-क्षेत्र जैसी हो गई है. एक तरफ प्रशासनी स्कूलों में न पानी है, न टॉयलेट, न पढ़ने लायक क्लासरूम; दूसरी तरफ प्राइवेट स्कूलों में फीस के नाम पर लूट का खुला स्पोर्ट्स चल रहा है. डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान की नेशनल असेंबली की स्थायी समिति ने शुक्रवार को इस्लामाबाद की शिक्षा व्यवस्था पर जमकर गुस्सा निकाला. समिति की अध्यक्ष सांसद शाजिया सोबिया असलम सूमरो ने साफ कहा कि शिक्षा अब देश में “अधिकार” नहीं, बल्कि “अमीरों का कारोबार” बन चुकी है.

Pakistan Education Crisis: बिना पानी, बिना टॉयलेट, बिना क्लासरूम

बैठक में सांसदों ने बताया कि इस्लामाबाद के कई प्रशासनी स्कूलों में आज भी बच्चों के लिए पीने का साफ पानी नहीं है. कई जगह शौचालय या तो बंद पड़े हैं या बिल्कुल टूटे हुए हैं. क्लासरूम इतने जर्जर हैं कि उनमें पढ़ाई की जगह डर लगता है. प्रशासन ने “एफडीई के तहत आईसीटी के शैक्षणिक संस्थानों में बुनियादी शिक्षा सुविधाओं का प्रावधान” नामक एक परियोजना शुरू की है. इसके तहत 167 स्कूलों का नवीनीकरण किया जा रहा है. इनमें से 71 स्कूलों का काम लगभग पूरा हो चुका है, 27 स्कूल पहले ही सौंपे जा चुके हैं, और 400 नई कक्षाएं बनाई जा रही हैं. पूरी परियोजना साल के अंत तक पूरी होने की उम्मीद है. हालांकि, समिति ने पाया कि जिन स्कूलों का उन्होंने खुद दौरा किया था, वे इस परियोजना में शामिल ही नहीं हैं. यानी कई स्कूल अब भी उसी बदहाली में हैं, जिनके नाम पर योजनाएं बनाई जा रही हैं.

फीस में लूट और अभिभावकों का शोषण

बैठक में सबसे बड़ा हमला निजी स्कूलों की लूट पर हुआ. प्राइवेट शैक्षणिक संस्थान नियामक प्राधिकरण यानी पेइरा (PEIRA) पर सांसदों ने सवाल उठाए. नियमों के मुताबिक, स्कूल हर साल सिर्फ 5 प्रतिशत तक या उच्च प्रदर्शन वाले संस्थानों के लिए अधिकतम 8 प्रतिशत तक फीस बढ़ा सकते हैं. लेकिन असलियत यह है कि कई निजी स्कूल इन नियमों को धत्ता बता कर मनमाने तरीके से फीस बढ़ा रहे हैं. इससे अभिभावकों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ रहा है. समिति ने कहा कि पेइरा अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम रहा है. अब उसे एक पारदर्शी और निष्पक्ष फीस नीति तैयार करने का आदेश दिया गया है. समिति ने साफ कहा कि शिक्षा को कुछ अमीर घरानों का “विशेषाधिकार” नहीं, बल्कि हर नागरिक का “सार्वजनिक अधिकार” बनाकर रखना होगा.

स्कूलों में नया खतरा 

रिपोर्ट में एक और डराने वाला पहलू सामने आया. सांसदों ने स्कूलों में बाल दुर्व्यवहार और नशीली दवाओं के इस्तेमाल के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई. हालांकि, प्रशासनी स्कूलों में बाल संरक्षण समितियां बनाई गई हैं, लेकिन सांसदों के मुताबिक इन समितियों की कोई निगरानी नहीं है. न कोई फॉलो-अप, न जवाबदेही. समिति ने ऐसे सभी मामलों पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पाकिस्तान के स्कूल बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान बने रहें, न कि डर और खतरे की जगह. समिति की चेतावनी साफ है कि अगर जवाबदेही और पारदर्शिता नहीं लाई गई, तो पाकिस्तान की शिक्षा व्यवस्था आने वाले समय में एक राष्ट्रीय संकट में बदल सकती है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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