Saudi Arabia-Pakistan Defence Agreement: पाकिस्तान और सऊदी अरब ने पिछले महीने एकरणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता (स्ट्रैटेजिक म्युचुअल डिफेंस एग्रीमेंट) पर सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए. इसके तहत यह माना गया कि दोनों में से किसी भी देश पर हुआ हमला दूसरे के खिलाफ भी हमला माना जाएगा. दोनों के बीच हुए इस समझौते में कॉमन ग्राउंड एक दूसरे का पूरक होना माना जा रहा है. जहां सऊदी एक आर्थिक शक्ति है, तो वहीं पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार है, जो उसे सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित करता है. इस एग्रीमेंट पर कई तरह के बयान और टिप्पणियां आईं. हालांकि अमेरिकी अमेरिकी विदेश नीति विश्लेषक स्कॉट हॉर्टन के अनुसार यह समझौता किसी बड़े बदलाव का संकेत नहीं देता, क्योंकि दोनों देशों के बीच पहले से ही एक डि फैक्टो (de facto) यानी अनौपचारिक गठबंधन मौजूद रहा है.
एएनआई से बातचीत में हॉर्टन ने कहा कि पाकिस्तान के सऊदी अरब को परमाणु हथियार देने की अटकलें वर्षों से चल रही हैं, क्योंकि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है, जो परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से बाहर है. उन्होंने कहा, “जहां तक पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुए इस समझौते की बात है, मेरी समझ यह है कि उनके बीच हमेशा से एक डि फैक्टो गठबंधन रहा है, भले ही वह औपचारिक न हो. हमेशा यह सवाल रहा है कि क्या पाकिस्तान सऊदी अरब को परमाणु हथियार उपलब्ध कराएगा. आखिरकार, पाकिस्तान एक ऐसा परमाणु-संपन्न देश है जो एनपीटी से बाहर है.”
ईराक में चले युद्ध के बाद सऊदी को महसूस हुई जरूरत
हॉर्टन ने आगे कहा कि सऊदी अरब क्षेत्रीय तनावों के चलते परमाणु हथियार हासिल करने पर विचार कर सकता है, खासकर सुन्नी-शिया संघर्ष के कारण, हार्टन ने कहा कि यह संघर्ष 2003 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश द्वारा इराक पर हमले के बाद शुरू हुआ. उन्होंने कहा, “2003 में डब्ल्यू बुश द्वारा छेड़े गए इस तथाकथित सुन्नी-शिया गृहयुद्ध को वास्तव में रियाद-तेहरान प्रभुत्व संघर्ष कहा जा सकता है. इस संघर्ष ने यह सवाल खड़ा कर दिया था कि क्या सऊदी अरब को अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार की जरूरत पड़ेगी. तब से ही यह विचार चला आ रहा है कि अगर ऐसी स्थिति आई तो सऊदी अरब पाकिस्तान से मदद मांगेगा और क्या पाकिस्तान उसे एक परमाणु हथियार देगा. यह चर्चा कई वर्षों से होती आ रही है. मुझे नहीं लगता कि यह नया समझौता किसी बड़े बदलाव का संकेत देता है.”
पश्चिमी एशिया में अमेरिका सुनिश्चित करता है क्षेत्रीय सुरक्षा
क्षेत्रीय संदर्भ पर चर्चा करते हुए हॉर्टन ने कहा कि अमेरिका की खाड़ी क्षेत्र में मजबूत सैन्य उपस्थिति है.
उन्होंने बताया, “अमेरिका का मध्य पूर्व में सबसे बड़ा सैन्य अड्डा कतर में है. अल-उदीद एयर बेस, सेंट्रल कमांड (CENTCOM) का मुख्यालय भी है. यह हमारे कुवैत स्थित आर्मी बेस, बहरीन स्थित नेवी बेस और सऊदी अरब, यूएई और मोरक्को के एयरफोर्स बेसों से भी बड़ा है.” उन्होंने यह भी बताया कि कतर उन सुन्नी खाड़ी देशों में से एक है जिनके ईरान से सबसे करीबी संबंध हैं, क्योंकि दोनों देश फारस की खाड़ी के नीचे एक विशाल गैस क्षेत्र साझा करते हैं. हॉर्टन ने कहा, “उनके बीच दशकों पुराना आर्थिक रिश्ता है. कई बार कतर ईरान से बातचीत के लिए एक बैक चैनल की तरह काम करता है, क्योंकि वह बहरीन या सऊदी अरब की तुलना में ईरान के करीब है.”
क्या है सऊदी अरब-पाकिस्तान स्ट्रैटेजिक म्युचुअल डिफेंस एग्रीमेंट
सितंबर में, सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक स्ट्रैटेजिक म्युचुअल डिफेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत दोनों देशों ने यह वादा किया कि किसी एक पर भी किया गया हमला दोनों पर किया गया हमला माना जाएगा. यह समझौता पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की 17 सितंबर को रियाद यात्रा के दौरान साइन किया गया था, जो सऊदी क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद के निमंत्रण पर की गई थी.
यात्रा के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच लगभग आठ दशकों से चली आ रही ऐतिहासिक साझेदारी, भाईचारे और इस्लामी एकजुटता के बंधन, साझा रणनीतिक हितों और घनिष्ठ रक्षा सहयोग के आधार पर, क्राउन प्रिंस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने एक स्ट्रैटेजिक म्युचुअल डिफेंस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए. बयान में यह भी कहा गया कि यह समझौता दोनों देशों की सुरक्षा को मजबूत करने, क्षेत्र और विश्व में शांति और स्थिरता लाने, तथा किसी भी हमले के खिलाफ संयुक्त प्रतिरोध को बढ़ाने की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इस समझौते के तहत किसी एक देश पर किया गया आक्रमण दोनों पर किया गया आक्रमण माना जाएगा.”
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