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पीएम मोदी का मॉरीशस में बिहारी गीत-गवई से स्वागत- ‘राजा के सोभे ला माथे, सैकड़ों साल पुरानी परंपरा में जीवित संस्कृति

PM Modi In Mauritius: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मॉरीशस यात्रा के दौरान बिहार के पारंपरिक भोजपुरी गीत गवई से स्वागत किया गया. मॉरीशस की औरतों ने बहुत ही खूबसूरती के साथ गीत-गवई गाकर पीएम मोदी का स्वागत किया और इस अवसर पर दोनों देशों के मधुर संबंधों को गीत द्वारा भी बताया. पीएम नरेंद्र मोदी भी इस अवसर पर बहुत उत्साहित दिखे और उन्होंने उन स्त्रीओं के गीत का पूरा आनंद उठाया. अंग्रेजों ने बिहार और उत्तर प्रदेश के जिन लोगों को 19 शताब्दी में मजदूर बनाकर वहां भेजा था, वे आज भी अपने जड़ों से प्रेम करते हैं और उसकी यादों को अपनी संस्कृति के रूप में संजो कर रखे हैं.

क्या है गीत गवई?

गीत गवई बिहार के पारंपरिक भोजपुरी लोकगीत को कहते हैं. गीत-गवई विशेष रूप से शादी विवाह और अन्य शुभ अवसरों पर गाया जाता है. गीत-गवई को स्त्रीएं सामूहिक तौर पर गाती हैं और इस गान के दौरान पारंपरिक वाद्ययंत्र भी बजाए जाते हैं. गीत-गवई के दौरान जिन वाद्ययंत्रों का प्रयोग किया जाता है उनमें ढोलक सबसे प्रमुख वाद्ययंत्र है. इसके अलावा मंजिरा, हारमोनियम, खंजरी और झांझ जैसे वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है. इन वाद्ययंत्रों की मदद गीत-गवई का प्रस्तुतिकरण और बेहतरीन हो जाता है. ये मुख्यत: ताल देने के लिए बजाए जाते हैं.  

गीत गवई के प्रमुख वाद्ययंत्र

ढोलक : गीत गवई के प्रमुख वाद्ययंत्रों में ढोलक का नाम सबसे ऊपर आता है. इसे सुर-ताल निर्धारित करने के लिए हाथों से बजाया जाता है. इसकी ध्वनि सुनने वाले का मन मोह लेती है.

मंजिरा : मंजिरा पीतल के छोटे-छोटे झांझ होते हैं, जिन्हें बजाकर ताल दिया जाता है.

हारमोनियम : हारमोनियम के जरिए गीतों के सुर तैयार किए जाते हैं और गीत गाए जाते हैं. 

खंजरी : छोटे ढोलक को खंजरी कह सकते हैं, इसे भी हाथों से बजाया जाता है और इसकी ध्वनि बहुत अच्छी होती है.

झांझ : झांझ भी धातु का बना एक प्रकार का वाद्ययंत्र ही है, जिसे ताल देने के लिए आपस में टकराकर हाथों से बजाया जाता है. इसके अलावा ढपली और शहनाई जैसे वाद्ययंत्रों का प्रयोग भी लोकगीतों को सुमधुर और कर्णप्रिय बनाने के लिए किया जाता है.

बिहार और मॉरीशस के गीत-गवई में क्या है फर्क

बिहार में जो गीत-गवई गाए जाते हैं, वे शादी-विवाह और शुभ अवसर पर गाए जाते हैं. गीत-गवई सिर्फ गायनशैली नहीं हैं बल्कि यह संस्कृति का हिस्सा है, जो सैकड़ों वर्षों से इस इलाके के लोगों की जिंदगी का हिस्सा है. हिंदुस्तान में लोकगीतों की भाषा भोजपुरी, मैथिली, अंगिका या मगही होती है, जबकि मॉरीशस में कुछ अन्य विदेशी भाषाओं का असर भी गीत-गवई में दिखता है. मॉरीशस के गीत गन्ने के खेतों में काम करने के दौरान गाए जाते हैं, जिनका विषय गिरमिटिया मजदूरों का संघर्ष, पुरानी यादें, हिंदुस्तान के प्रति उनके प्रेम और गन्ने के खेतों में काम करने का संघर्ष नजर आता है. हिंदुस्तान के लोकगीतों में भगवान उनकी लीलाएं और परंपराओं का जिक्र होता है. इसके अलावा धुन और वाद्ययंत्रों में भी विभिन्नता नजर आती है, बावजूद इसके गीत-गवई दोनों देशों की जड़ों से जुड़ी है और यहां के लोगों के लिए बहुत खास है. मशहूर लोकगायिका चंदन तिवारी बताती हैं कि दोनों देशों में गीत-गवई की परंपरा है. लेकिन मॉरीशस के गीतों में धुन अलग होता है और वाद्ययंत्र भी अलग बजाए जाते हैं. लेकिन जड़ें दोनों की एक ही हैं.

बिहार के लोगों का मॉरीशस से संबंध

19 शताब्दी में जब हिंदुस्तान पर अंग्रेजों का शासन था ब्रिटिश प्रशासन ने गिरमिटिया प्रथा के जरिए हिंदुस्तानीयों को गन्ने के खेतों में काम करने के लिए मॉरीशस भेजा था. इन मजदूरों को गिरमिट एग्रीमेंट के तहत वहां भेजा गया था, इसी वजह से इन मजदूरों को गिरमिटिया कहा जाता है. इन मजदूरों को पहली बार 1834 में वहां भेजा गया था. ये लोग मजदूरी करने तो वहां चले गए, लेकिन अपनी सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखा. हिंदुस्तान के पर्व-त्योहार मॉरीशस में उसी शान से मनाये जाते हैं, जैसे हिंदुस्तान में. 

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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