बढते प्रदूषण से पर्यावरण पर उत्पन्न हो रहा गहरा संकटअवैध वृक्ष कटाई, प्लास्टिक कचरा व ईंट भट्ठों से पर्यावरण को हो रहा बडा नुकसान सहरसा बढ़ते प्रदूषण के कारण पर्यावरण पर खतरा उत्पन्न हो गया है. लोगों की जागरूकता एवं अंधाधुंध वृक्षों की कटाई से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है. जनसंख्या वृद्धि भी पर्यावरण प्रदूषण के लिए खासा जिम्मेवार है. प्लस्टिक के बढते उपयोग व इसके कचड़े भी प्रदूषण बढोत्तरी में अहम भूमिका निभा रहे हैं. वर्तमान समय में पर्यावरण अपने कठिन दौर से गुजर रहा है. इसके संरक्षण के लिए प्रशासन द्वारा भी कई तरह के उपाय किए जा रहे हैं. लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है. अब यह जरूरी हो गया है कि हम सभी आमने-सामने बैठकर परिचर्चा के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के पक्ष में कार्य करें. नहीं तो आने वाला समय काफी दुखदायी होगा. वन, कृषि, जल, जमीन, वायु पर ही संरक्षण का संकट है जो पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है. पर्यावरण की दृष्टि से जिले में कोई भी वन क्षेत्र नहीं है. लेकिन सडकों, नदियों, प्रशासनी जगहों पर वृक्षारोपण कर वन विभाग द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को कम करने का प्रयास किया जा रहा है. वन विभाग वन के प्रति लोगों में जागरूकत करने का प्रयास कर रहा है. प्रशासन लोगों को निशुल्क पौधे व इसके रख रखाव के लिए भी अनुदान दे रही है. कृषकों को बगीचे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. प्रशासनी विद्यालय, महाविद्यालय, निजी विद्यालयों में वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण कराया जा रहा है. जल जीवन हरियाली के तहत भी पौधरोपण किया जा रहा है. लेकिन यह तब ही सफल होगा जब सभी इसकी महत्ता को समझेंगे. वृक्षों की हो रही अंधाधुंध कटाई आज भी लोग पर्यावरण की सुरक्षा को नहीं समझ पा रहे हैं. अपने लाभ के खातिर अंधाधुंध वनों की कटाई कर रहे हैं. पूर्वजों द्वारा वन संरक्षण एवं पर्यावरण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लगाए गये पेड़ पौधे रूपयों के लोभ में काटे जा रहे हैं. प्रशासन द्वारा पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई गयी है. लेकिन यह नाकाफी है. जिले में बढ़ते आरा मिलों की संख्या एवं ऐशो आराम के लिए वृक्षों की कटाई धड़ल्ले से जारी है. पर्यावरण सुरक्षा को लेकर आम जनमानस कहीं से भी चिंतित नहीं दिख रहा है. लोगों में जागरूकता लाना आवश्यक हो गया है. नहीं तो आने वाली पीढी को इस संकट से रूबरू होना पडेगा. इसके लिए सम्मिलित प्रयास की बडी जरूरत है. प्रदूषण में प्लास्टिक कचो से बढी परेशानी शहरी क्षेत्र ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी धड़ल्ले से प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है. प्रशासन द्वारा प्लास्टिक के थैलों एवं कचरों पर प्रतिबंध लगाया गया है. लेकिन इस प्रतिबंध का असर जिले में कहीं दिखाई नहीं देता है. बाजारों में धड़ल्ले से प्लास्टिक के थैले से लेकर अन्य सामान की बिक्री की जा रही है. किसी तरह के जांच या पकड़-धकड़ नहीं होने से प्लास्टिक कचड़े से लोग अनभिज्ञ हैं. पर्यावरण प्रदूषण में प्लास्टिक कचो की बड़ी भूमिका है. जागरूकता के कमी के कारण लोग प्लास्टिक कचरे को ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं. ध्वनि प्रदूषण से पर्यावरण पर प्रभाव पर्यावरण प्रदूषण में ध्वनि प्रदूषण का काफी महत्वपूर्ण योगदान है. बढ़ते वाहनों की संख्या ध्वनि प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं. साथ ही वाहनों के धुएं वायु को जहरीला बना रहे हैं. वाहनों में लगे तरह-तरह के हार्न भी प्रदूषण फैलाने में कम नहीं है. इन पर रोक के लिए प्रशासन की ओर से भी नियम बनाए गये हैं. लेकिन कड़ाई से इसका पालन नहीं होने से ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है. वहीं आजकल शादी विवाह एवं अन्य शुभ कार्यों में डीजे का प्रचलन बढ़ा है. जो निसंदेह ध्वनि प्रदूषण का एक बड़ा कारक बन गया है. जिसपर प्रतिबंध तो लगाया गया है. लेकिन इसपर और सख्ती की जरूरत है. लोगों को इसके लिए जागरूक करने की जरूरत है. ईट भट्ठे भी प्रदूषण के हैं बडे कारक अंधाधुन घरों के निर्माण में हो रहे ईट के उपयोग के लिए प्रतिदिन नयी-नयी चिमनियां स्थापित हो रही है. जो पर्यावरण प्रदूषण ने अहम भूमिका निभा रही है. इन चिमनियों से निकलने वाले धुएं जहां वायु प्रदूषण फैला रहे हैं. वही मिट्टी कटाई से जमीन भी बंजर हो रही है. चिमनियों के आसपास के उपजाऊ जमीन भी बेकार हो रहे हैं. आज इसका दुष्परिणाम दिखाई तो दे रहा है. लेकिन सभी अनिभिज्ञ बने हैं. जो कहीं न कहीं खतरे की घंटी है. बढते रसायनिक प्रयोग से भी हो रहा प्रदूषण घरों से लेकर खेतों तक में रासायनिक पदार्थों का उपयोग काफी बढ़ गया है. जो कहीं ना कहीं पर्यावरण प्रदूषण में सहायक है. रासायनिक प्रयोग से जहां जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो गयी है. वहीं आम जीवन में भी रासायनिक प्रयोग बढ़ गये हैं. विभिन्न तरह के कीटनाशक रसायन पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है. जागरूकता के कमी के कारण लोग अभी भी इसे समझ नहीं पा रहे हैं. इन रसायनों के कारण आने वाली पीढी को भुगतना पड़ सकता है. शौचालय की आनिवार्यता खुले में शौच भी पर्यावरण प्रदूषण के जिम्मेवार हैं. प्रशासन ने खुले में शौच से मुक्ति के लिए कई कदम उठाए हैं. लोगों को जागरूक करने से लेकर शौचालय निर्माण तक कराया जा रहा है. हालांकि इस दिशा में प्रशासन के प्रयास से थोड़ी कमी तो आयी है. लेकिन इस दिशा में अभी भी जागरूकता की जरूरत है. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह चुनौती बनी हुई है. खुले में शौच से जहां पर्यावरण प्रदूषित होता है. वही इससे आम लोगों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. प्रदूषण से बढ़ रही बीमारियां वरिष्ठ जेनरल फिजिशियन डॉ विनय कुमार सिंह ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा से स्वस्थ्य जीवन का लाभ मिलेगा. लोग बीमारी की चपेट में कम आयेंगे एवं लंबी आयु जी सकेंगे. आज पर्यावरण प्रदूषण के कारण शिशु से लेकर युवा एवं बुजुर्ग लगातार चिकित्सकों के शरण में जाने को विवश हैं. एक स्वस्थ वातावरण बीमारियों से बचाता है एवं जीवन रक्षा के लिए आवश्यक होता है. पर्यावरण की रक्षा से जल एवं खाद्य संसाधनों को संरक्षित किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि प्रदूषण के कारण हर उम्र के लोग सांस संबंधित बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. प्रदूषण से बचाव के लिए जरूरी है कि खानपान एवं बाहर निकलते समय सावधानी बरतें. उन्होंने बताया कि प्रदूषण के कारण स्ट्रोक के 34 प्रतिशत, हृदय रोग के 26 प्रतिशत, फेफड़े के कैंसर छह प्रतिशत एवं अन्य कारणों से 28 प्रतिशत मौत प्रदूषण के कारण होती है. प्रदूषण बच्चों की स्मरण शक्ति पर भी असर डालता है. उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण से बचाव के लिए घर से बाहर निकलते वक्त हमेशा मुंह पर मास्क का उपयोग करें. इसके अलावा आंखों पर चश्मा भी लगायें. घर से बाहर टहलने के लिए तब निकलें जब पर्यावरण में प्रदूषण का स्तर कम हो. खाना खाने के बाद थोड़ा सा गुड़ जरूर खायें. तुलसी प्रदूषण से आपकी रक्षा करती है. रोजाना तुलसी के पत्तों का पानी पीने से आप स्वस्थ बने रहेंगे. ठंडे पानी की जगह गर्म पानी का सेवन करना शुरू कर दें.
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