प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 120वें एपिसोड में लोकगीत ‘फगवा चौताल’ का जिक्र किया. उन्होंने न केवल सूरीनाम के ‘चौताल’ का ऑडियो सुनाया बल्कि बताया कि दुनिया भर में हिंदुस्तानीय संस्कृति अपने पांव पसार रही है. वाराणसी के अथर्व कपूर, मुंबई के आर्यश लीखा और अत्रेय मान के संदेशों का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा, “इन्होंने मेरी हाल की मॉरिशस यात्रा पर अपनी भावनाएं लिखकर भेजी हैं. उन्होंने बताया कि इस यात्रा के दौरान ‘गीत गवई’ (पारंपरिक भोजपुरी संगीत समूह) की प्रस्तुति से उन्हें बहुत आनंद आया. ऐसे में हम आपको बताएंगे कि आखिर ये फगवा चौताल क्या है और इसका बिहार से क्या रिश्ता है.

क्या होता है फगवा चौताल?
फगवा चौताल एक पारंपरिक लोकगीत है जो बिहार, झारखारंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फगवा या होली के त्योहार के दौरान गाया जाता है. यह गीत फगवा के त्योहार की खुशी और उत्साह को व्यक्त करता है. कुल मिलाकर, फगवा चौताल एक महत्वपूर्ण लोकगीत है जो बिहार, झारखारंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है.
फगवा चौताल की विशेषताएं:
1. पारंपरिक गीत: फगवा चौताल एक पारंपरिक लोकगीत है जो पीढ़ियों से गाया जा रहा है.
2. फगवा के त्योहार से जुड़ा: यह गीत फगवा के त्योहार के दौरान गाया जाता है और इसके शब्दों में त्योहार की खुशी और उत्साह को व्यक्त किया जाता है.
3. लोक संगीत: फगवा चौताल लोक संगीत की एक विशेष शैली है जो बिहार, झारखारंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में प्रचलित है.
4. समुदायिक गायन: फगवा चौताल को अक्सर समुदायिक रूप से गाया जाता है, जहां लोग एक साथ इकट्ठा होकर इस गीत को गाते हैं.
फगवा चौताल का महत्व:
1. सांस्कृतिक महत्व: फगवा चौताल बिहार, झारखारंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
2. समुदायिक एकता: फगवा चौताल को समुदायिक रूप से गाने से लोगों में एकता और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने में मदद मिलती है.
3. पारंपरिक ज्ञान: फगवा चौताल के शब्दों और संगीत में पारंपरिक ज्ञान और लोकप्रिय परंपराएं शामिल हैं.
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गिरमिटिया मजदूरों ने बनाई अपनी पहचान
गिरमिटिया मजदूरों का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा, “जब हम जड़ से जुड़े रहते हैं, तो कितना ही बड़ा तूफान आए, वो हमें उखाड़ नहीं पाता. करीब 200 साल पहले हिंदुस्तान से कई लोग गिरमिटिया मजदूर के रूप में मॉरिशस गए थे. किसी को नहीं पता था कि आगे क्या होगा, लेकिन समय के साथ वे वहां बस गए और अपनी एक पहचान बनाई. उन्होंने अपनी विरासत को सहेज कर रखा और जड़ों से जुड़े रहे. मॉरिशस ऐसा अकेला उदाहरण नहीं है; पिछले साल जब मैं गुयाना गया था, तो वहां की ‘चौताल’ प्रस्तुति ने मुझे बहुत प्रभावित किया.“
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