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ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट शुरू होने से प्लेटलेट्स व प्लाजमा की मिलेगी सुविधा 

नया विचार समस्तीपुर– समस्तीपुर में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट को सौगात मिलेगी। जिसके याद मरीजों को प्लाजमा, प्लेटलेट्स के लिए पटना के ब्लड बैंकों को दौड़ नहीं लगानी होगी। अभी एक यूनिट खून से सिर्फ एक जिंदगी बचाने का काम होता है. लेकिन अब वह दिन दूर नहीं जब एक यूनिट ब्लड से चार जिंदगी बचाई जा सकेंगी। रेड क्रास स्थित रक्त संग्रह केंद्र में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट शुरू होने की उम्मीद है। इसके लिए जरूरी तैयारी शुरू कर दी गई है। मशीन इंस्टाल होने के उपरांत लाइसेंस लेने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। सदर अस्पताल को सीएसआर के तहत हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन ने 25.75 लाख रुपये का कंपोनेंट सेपरेशन मशीन दिया है। हालांकि, सिविल सर्जन ने रेड क्रास ब्लड बैंक को संचालन के लिए सौंप दिया है। इसमें 23 उपकरण शामिल है। इसमें ब्लड बैंक रेफ्रिजरेटर, डोनर कोच, मोटोराइज्ड, ब्लड कलेक्शन मानिटर, ट्यूब स्टीपर, ट्यूब सेलर, प्लाज्मा थोइंग बाथ, ब्लड बैंक सेंट्रीफ्यूज, प्लेटलेट्स इंक्यूबेटर, प्लेटलेट्स, एजिएटर, डीप फ्रीजर, नौडल डिस्ट्रायर, प्लाज्मा एक्सप्रेशर सहित अन्य सामान शामिल है। इससे उम्मीद है कि अब जल्द ही ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन इकाई की स्थापना होने के साथ ही सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी।

ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट की विशेषता ब्लड कंपोनेंट मशीन खून में शामिल तत्वों को अलग-अलग कर देती है। यह मशीन लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी), श्वेत रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी), प्लेटलेट्स, प्लाज्मा और फ्रेश फ्रोजन प्लाज्मा (एफएफपी) को अलग-अलग कर देती है। थैलेसीमिया के मरीजों को आरबीसी, डेंगू के मरीजों को प्लेटलेट्स, जले मरीजों को प्लाज्मा, एफएफपी और एड्स के मरीजों को डब्ल्यूबीसी की जरूरत पड़ती है। ऐसी स्थिति में मरीज को पूरी बोतल खून चढ़ाने की जगह आवश्यक तत्व ही चढ़ाए जाते हैं। एक बोतल खून से तीन अलग अलग मरीजों की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।

मरीजों की जेब होती है ढीली

सदर अस्पताल में ब्लड सेपरेशन यूनिट नहीं है। इससे डेंगू, जले हुए, एनीमिक और हीमोफीलिया पीड़ितों को त्वरित उपचार नहीं मिल पाता है। उपरोक्त मरीजों को बेहतर इलाज के लिए प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे मरीजों की जेब ढीली होती है।

प्रसव के समय सर्वाधिक खून की पड़ती जरूरत

ब्लड बैंक के आंकड़ों पर गौर करें तो खून की सबसे अधिक जरूरत गर्भवती स्त्रीओं को रहती है। प्रसूताओं में 90 प्रतिशत गंभीर एनिमिक होती है। 70 प्रतिशत से अधिक खून सिर्फ गर्भवती स्त्रीओं के लिए ही जाता है. इसके बाद 20 प्रतिशत खुद थैलेसिमिया, एचआईवी और अन्य बीमारी के मरीजों को दिया जाता है। सबसे कम मामलों में दुर्घटना में घायल लोगों को खून दिया जाता है।

 

ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट की शुरुआत की जा रही है। इससे मरीजों प्लाज्मा व प्लेटलेट्स की सुविधा मिलेगी। मरीज इसके लिए बहुत परेशान होते रहे हैं अब उन्हें लाभ मिलेगा। डा. एसके चौधरी, सिविल सर्जन समस्तीपुर।

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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