Mahashivratri 2025 Kalsarpdosh nivaran: महाशिवरात्रि का पर्व पंचांग के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की मान्यता है. यद्यपि हर महीने महाशिवरात्रि का आयोजन होता है, फाल्गुन माह की महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है. शिवभक्त इस पर्व को बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाते हैं. दक्षिण पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि माघ कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है, जबकि उत्तर हिंदुस्तान के पंचांग में इसे फाल्गुन माह के कृष्णपक्ष में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. सभी शिव मंदिरों में भगवान शिव की पूजा विभिन्न विधियों से की जाती है. इस दिन भगवान शिव को बेलपत्र, दूध, भांग और धतूरा चढ़ाकर पूरे परिवार के साथ पूजा की जाती है.
महाशिवरात्रि कब है
- महाशिवरात्रि का पर्व 26 फरवरी 2025 दिन बुधवार को मनाया जायेगा.
- चतुर्दशी तिथि का आरंभ 26 फरवरी 2025 दोपहर 01:11 मिनट
- चतुर्दशी तिथि का समाप्त 27 फरवरी 2025 सुबह 08 :01 मिनट तक
महाशिवरात्रि का पारण
27 फरवरी 2025 समय 08:01 सुबह के बाद
कालसर्प दोष का निवारण उपाय
यदि आप कालसर्प दोष से ग्रसित हैं, तो महाशिवरात्रि के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार, चांदी या तांबे के नाग और नागिन के जोड़े को किसी मंदिर या बहते जल में प्रवाहित करें. इस क्रिया से आपको कालसर्प दोष से मुक्ति प्राप्त होगी और जीवन की अनेक समस्याओं से भी छुटकारा मिलेगा. लेकिन इस उपाय को करने से पूर्व सुबह पवित्र स्नान करना आवश्यक है.
स्नान के जल में काले तिल अवश्य मिलाएं. इसके बाद विधिपूर्वक शिव पूजन करें और फिर उस नाग-नागिन के जोड़े को भगवान शिव को अर्पित करें. भगवान भोलेनाथ से अपने दोष के निवारण के लिए मन से प्रार्थना करें. इससे आपको निश्चित रूप से राहत मिलेगी.
महाशिवरात्रि पर क्या है शिव पूजन का महत्व
महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की पूजा का अत्यधिक विशेष महत्व है. सनातन धर्म में भगवान शिव को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे महादेव, शम्भू, नीलकंठ, रुद्र, और हरेश्वर. भगवान शिव की पूजा केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं, बल्कि असुरों द्वारा भी की जाती थी, और वे इनके उपासक रहे हैं. भगवान शिव का स्वभाव अत्यंत सरल है, जिससे वे शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. उनकी पूजा के लिए किसी विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं होती; जल और बेलपत्र तथा फूलों से की गई पूजा से वे संतुष्ट हो जाते हैं.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार महाशिवरात्रि का महत्व
भगवान शिव चतुर्दशी तिथि के स्वामी माने जाते हैं, इसलिए प्रत्येक महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि का व्रत और पूजन किया जाता है, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चतुर्दशी तिथि पर चंद्रमा की स्थिति कमजोर होती है, इसलिए भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया है. महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और वह निरोग रहता है. जन्मकुंडली में उपस्थित अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी कम होता है.
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा से जन्मकुंडली में कालसर्प दोष, दुर्योग या चंद्रमा की कमजोरी को दूर किया जा सकता है. भगवान शिव का अभिषेक दूध, दही, शक्कर, शहद और घी से करने पर वह प्रसन्न होते हैं और सभी दोष समाप्त होते हैं. ध्यान रहे कि सभी वस्तुओं को एक साथ नहीं चढ़ाना चाहिए, बल्कि एक-एक वस्तु को अलग-अलग भगवान को अर्पित करना चाहिए. महाशिवरात्रि के दिन मंदिर में चावल और दूध का भी विशेष महत्व है.
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ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847
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