Hindi Poetry By Anamika Anu : बिहार की धरती मुजफ्फरपुर में जन्मी युवा कवयित्री अनामिका अनु इन दिनों साहित्य जगत का जाना-पहचाना नाम हैं. हिंदी पट्टी से दूर केरल में रहते हुए भी इन्होंने अपनी कवितागोई नहीं छोड़ी और हिंदी साहित्य में अपना नाम बखूबी अंकित करवाया. साल 2020 में डाॅ अनामिका अनु को हिंदुस्तान भूषण अग्रवाल पुरस्कार से नवाजा गया. राजस्थान पत्रिका वार्षिक सृजनात्मक पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ कवि, प्रथम पुरस्कार, 2021) और रज़ा फेलोशिप (2022) भी इन्हें प्राप्त है. इनके प्रकाशित काव्यसंग्रह का नाम है ‘इंजीकरी’. इसके अलावा अनामिका अनु ने ‘यारेख : प्रेमपत्रों का संकलन’ (पेंगुइन रैंडम हाउस,हिन्द पॉकेट बुक्स)का संपादन किया है. उनकी रचनाओं का अनुवाद पंजाबी,मलयालम, तेलुगू मराठी,नेपाली,उड़िया,गुजराती, असमिया,अंग्रेज़ी,कन्नड़ और बांग्ला में हो चुका है. यहां पढ़ें उनकी पांच बेहतरीन कविताएं.
राजस्थान
मैं सच कहती हूँ तिरु
मेरा कोई सुख छिपा है राजस्थान में
मुझे उस विराने की भी किकोल और पुकार सुनाई पड़ती है जहां जन्म नहीं लेते हैं शिशु
और जहां कोई नहीं झगड़ता किसी से
तिरु! जरूर कोई गुलाबी नगरी में ऐसा होगा
जिसकी आंखों के कटोरे का दूध भात हूं मैं
सिरोही में होगा कोई जिसकी केले के छिम्मियों जैसी होंगी उंगलियां
होगा कांकरोली में कोई जो सबसे सुंदर लिखता होगा
होगा चुरु में कोई जो सुबह में उठकर बीज चुगता होगा
फूल लिखता होगा
जड़ को नीर पिलाता होगा
होगा अजमेर में कोई पांच वक़्त का नमाजी
जो मेरे लिए सुंदर नज़्म लिखता होगा
पुष्कर में कोई है
जिसकी आंखें भुकभुकाती हैं
टार्च की तरह
दौसा में सांगवान का पेड़ है
चश्मा लगाता है
झुंझुनूं-सीकर-बूंदी से होकर वह कौन लौटा है
जो अपनी किताब के किनारे में अना लिखकर
रोता है
पाली,भीलवाड़ा मैं तुम्हारे लिए लिखती हूं
भरतपुर और अलवर में कोई पढ़ता है मेरी कविता
टोंक शहर की सनोवर काज़मी कहती है:
जब तक लिखोगी
तभी तक जिओगी लड़की…
देखना तिरु
लीची शहर की इस लड़की को जो कभी
प्रेम हुआ किसी से
तो वह या तो अंधा गूंगा बहरा निरुपाय कोई व्यक्ति होगा या राजस्थान का कोई कवि होगा।
मैं हर बार तुम्हें बचा लूंगी लज्जा से
मैं एक पत्र लिखना चाहती हूं तुम्हें
बिल्कुल तुम्हारी तरह डरा और सशंकित होगा वह पत्र भी
मैं उस पत्र में कामना को उद्देश्य लिखूंगी
या बादल या कोई इंक़लाबी नारा
मैं उस पत्र में मीठे और गीले संवाद को पानी ,नहर ,विमर्श या धार्मिक अनुष्ठान लिखूंगी
मैं उस पत्र में चुंबन को भंवरा लिखूंगी
स्पर्श को आकाश
संवाद को पतंग
रूदन को धुंआ
अपने ओंठों को खिड़की
और तुम्हारे ओंठों को पर्दा
मैं हर बार तुम्हें बचा लूंगी
उस लज्जा से
जो तुम्हें प्रेम करते वक्त आई
यह रात उसे कविताओं के साथ गुज़ारनी है
उसकी आंखें कविताओं से भारी हैं
उसके कंठ कविताओं से भरे हैं
उसके ओंठ कविताओं से हल्के गुलाबी
उसका देह कविताओं के लिए तत्पर और तैयार है
उसकी सांसों में कविताओं की गमक है
मैंने उसे गर्मजोशी के साथ अलविदा कहा
यह रात उसे कविताओं के साथ गुज़ारनी है
जना दासी का असली प्रेमी
जो मेरी कविता को
अपनी हथेली पर लिखकर बैकुंठ धाम ले जाएगा
जो मुझको जल ,स्वयं को मछली समझेगा
पंढरपुर में जो मुझसे मिलने खाली पांव ही आएगा
वही जना दासी का असली प्रेमी कहलाएगा
मेरे गर्भ में रहना
मेरे गर्भ में रहना
स्त्री या पुरुष होकर मत आना
न ही किन्नर
बाहर चरित्र तौलने के बड़े-बड़े तराजू लगे हैं
जीभ की बाट पर तौले जाओगे तुम
धर्मयुद्ध में खर्च हुआ
एक मात्र सामान नैतिकता के बट्टे थे
गर्भ की दीवार बहुत कोमल है
रौशनी वहां कम है
यहां की दीवारें सख़्त
रौशनी सिर्फ और सिर्फ आंखें चौंधियाने वाली
तुम वहीं रहना चूसना मेरे कोख में उपलब्ध रस
मैं कविता सुनाऊंगी
तुम सुनना
अपनी उंगली से मेरे शिशु
कोख की अंतः भित्ति पर लिखना
तुम कविता
मैं अंतः सिक्त और पुनर्जीवित होना चाहती हूं
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