Raghubar Das To Hemant Soren: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और ओडिशा के पूर्व राज्यपाल रघुवर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने मांग की है कि पेसा नियमावली को जल्द से जल्द अधिसूचित कर लागू किया जाये. रघुवर दास ने सरना धर्म कोड पर भी कुछ बातें हेमंत सोरेन लिखी चिट्ठी में कहीं हैं.
‘देश के 10 अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों में झारखंड भी’
बुधवार 18 जून 2025 को जारी पत्र में रघुवर दास ने लिखा है कि वर्ष 1996 में अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन की अवधारणा को साकार करने के लिए पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम अर्थात् पेसा कानून, संसद से पारित हुआ था. देश के 10 अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों की सूची में झारखंड भी शामिल है, लेकिन आज तक यहां पेसा कानून लागू नहीं हो पाया है.
2018 में पेसा नियमावली के प्रारूप पर शुरू हुआ था काम – रघुवर दास
रघुवर दास ने लिखा है कि झारखंड में वर्ष 2014-19 तक भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की प्रशासन थी. वर्ष 2018 में उन्होंने (रघुवर दास ने) मुख्यमंत्री के रूप में पेसा नियमावली के प्रारूप के निर्माण की दिशा में कदम उठाया था. इस संदर्भ में 14 विभागों से मंतव्य मांगे गये थे. प्रारूप पर व्यापक विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही थी. इसी दौरान चुनाव हुए और वर्ष 2019 में विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में आपके (हेमंत सोरेन के) नेतृत्व में प्रशासन का गठन हुआ.
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महाधिवक्ता ने भी पेसा नियमावली को दे दी है हरी झंडी
पूर्व सीएम ने लिखा है कि जुलाई 2023 में आपकी प्रशासन ने इस दिशा में पहल करते हुए पेसा नियमावली का प्रारूप प्रकाशित कर आम जन से आपत्ति, सुझाव एवं मंतव्य आमंत्रित किये. अक्टूबर 2023 में ट्राइबल एडवाजरी कमेटी (टीएसी) की बैठक हुई, जिसमें प्राप्त नियमसंगत सुझाव एवं आपत्तियों को स्वीकार करते हुए नियमावली प्रारूप में संशोधन किया गया. मार्च 2024 में विधि विभाग एवं महाधिवक्ता ने स्पष्ट किया कि नियमावली का प्रारूप सुप्रीम कोर्ट एवं हाईकोर्ट के न्यायिक निर्देशों के अनुरूप है.
प्रकृति पूजक है सरना समाज – रघुवर दास
रघुवर दास ने लिखा है कि 5वीं अनुसूची के अंतर्गत पेसा कानून जनजातीय समाज की अस्मिता एवं स्वशासन की आत्मा है. सरना (जनजातीय) समाज प्रकृति पूजक है और उसकी आस्था जंगल, जमीन, नदी और पहाड़ में है. पूर्वों ने सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश को संरक्षित किया है, सरना (जनजातीय) समाज ने आज भी उसे उसी रूप में संजोकर रखा है. पेसा कानून लागू होने से सरना (जनजातीय) समाज अपने क्षेत्र की परंपरा, रीति रिवाज, उपासना पद्धति और धार्मिक विश्वासों का संरक्षण, संवर्धन और दस्तावेजीकरण कर सकता है.
‘ग्रामसभा के दस्तावेज को मान्यता दे सकती है राज्य प्रशासन’
उन्होंने लिखा कि ग्रामसभा के द्वारा तैयार दस्तावेज को राज्य प्रशासन मान्यता दे सकती है. उसे कानूनी दस्तावेज के रूप में भी मान्यता दी जा सकती है. हिंदुस्तानीय कानून यह स्वीकार करता है कि परंपरा, रिवाज और उपासना पद्धति सिर्फ सांस्कृतिक विरासत ही नहीं, बल्कि कानूनी अधिकार है. यह कानूनी अधिकार सरना समाज को स्थानीय स्वीकृति से लेकर राज्य स्तरीय मान्यता प्रदान कर सकती है. राज्य में कई जनजातीय समूह निवास करते हैं, जिसकी परंपरा और विरासत काफी प्राचीन है.
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