भोरे. ‘भक्तिमताम् भागवते प्रवेशः’ जिनकी मति भक्ति की होती है, उनका श्रीमद्भागवत में सहज प्रवेश हो जाता है. ज्ञान एवं वैराग्य, भक्ति के ही पुत्र हैं. यदि भक्ति नहीं, तो ज्ञान-वैराग्य की भी कल्पना व्यर्थ है. भक्ति चाहे ईश्वर के प्रति हो, गुरु के प्रति या माता-पिता के प्रति, जीवन में सच्चा फल भक्ति से ही मिलता है. ये विचार भोरे में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन प्रवचन में भक्ति किरण शास्त्री ने दिये. उन्होंने कहा कि भागवत एक भक्ति प्रधान ग्रंथ है. इसे सही ढंग से समझने के लिए महाहिंदुस्तान का ज्ञान आवश्यक है, क्योंकि महाहिंदुस्तान की अंतिम रात्रि के साथ ही भागवत का सूर्योदय हुआ था. जहां महाहिंदुस्तान समाप्त होती है, वहीं से भागवत प्रारंभ होता है. प्रवचन में उन्होंने भीष्म पितामह के उस प्रसंग का उल्लेख किया, जब द्रौपदी की अखंड सौभाग्यवती रहने की कथा सुनकर पितामह ने कहा, “हे माधव! जिसे स्वयं परमात्मा बचाना चाहता हो, उसे भला कौन मार सकता है?” इस कथानक ने श्रद्धालु श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया. भक्ति किरण शास्त्री ने बताया कि वही कथा सार्थक है, जिसे सुनने के पश्चात मन में सुख- शांति की अनुभूति हो और जो मन को भगवत भक्ति की ओर प्रेरित करे. विपरीत रूप से, यदि कथा सुनकर केवल ग्लानि या खिन्नता हो, तो वह व्यथा है, न कि कथा. भागवत कथा व्यथा से मुक्ति का मार्ग है. इससे पहले कथा की शुरुआत मुख्य यजमान शंभूशरण द्विवेदी द्वारा व्यासपीठ पूजा से हुई. मंच पर किरण देवी, रंजू देवी व गीता देवी ने व्यास पूजन कर भक्ति किरण शास्त्री का माल्यार्पण कर स्वागत किया. कथा का पारायण सुविख्यात संत विश्वंभर दास जी महाराज द्वारा किया जा रहा है. इस अवसर पर केशव मिश्र, नरसिंह मिश्र, बबुआ जी, द्वारिका मिश्र, दीपू मिश्र, संतोष मिश्र, मनकेश्वर दत्त राय, परेश सिंह, छेदी प्रसाद, गोपाल प्रसाद, विवेक दुबे, अवधेश दुबे, सुभाष शुक्ल, ललन तिवारी, राघवनाथ पांडेय, प्रेम सागर पांडेय, शंभू ओझा, हरेंद्र तिवारी, बृज बिहारी पांडेय सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे.
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