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विश्व की तीसरी शक्ति है भारतीय वायुसेना

Indian Air Force : पिछले दिनों विश्व की सैन्य शक्तियों के तुलनात्मक अध्ययन से संबंधित दो घोषणाओं ने जागरूक हिंदुस्तानीयों के मन में सवाल पैदा किये हैं. ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स, अर्थात वैश्विक प्रहारक क्षमता सूची में अमेरिका, रूस और चीन के बाद हिंदुस्तान चौथे पायदान पर है. इसमें साठ से अधिक कारकों पर 145 से अधिक देशों की सेना का संज्ञान लिया गया है. हिंदुस्तान की 14 लाख सैनिकों वाली सेना की संख्या विश्व में दूसरे स्थान पर है और हिंदुस्तान अपनी सकल राष्ट्रीय आय का बड़ा हिस्सा सैन्य संसाधनों पर खर्च कर रहा है. पर तेजी से आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ने के बावजूद सकल प्रहारक क्षमता में हिंदुस्तान चौथे स्थान पर, यानी चीन से नीचे है.

उधर वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मॉडर्न मिलिट्री एयरक्राफ्ट की सूची में हिंदुस्तान तीसरे स्थान पर, यानी चीन से ऊपर है, जबकि अमेरिकी और रूसी वायुसेना हिंदुस्तानीय वायुसेना से आगे हैं. दोनों तालिकाओं के नामों से स्पष्ट है कि पहली में सकल सामरिक प्रहारक क्षमता का आकलन है और दूसरी सूची केवल वायुसेनाओं की तुलना करती है. हिंदुस्तानीय हवाई शक्ति चीन से ऊपर इन तथ्यों के आधार पर है- सकल बेड़े में विमानों की संख्या, हवाई शक्ति के आधुनिकीकरण की स्थिति और विमानों की उड़ान में सहायक बंदोबस्त या लॉजिस्टिक सहारे की क्षमता. फायर पावर इंडेक्स की कमी यह है कि पूरी प्रहारक क्षमता का आकलन करने में यह केवल आंकड़ों और संख्याओं को संज्ञान में लेता है, भले उनमें पुराने पड़ चुके संसाधन शामिल हों. वह परमाणु युद्ध क्षमता की भी अनदेखी करता है.

हिंदुस्तानीय वायुसेना के वर्ल्ड डायरेक्टरी ऑफ मॉडर्न एयरक्राफ्ट में चीन से ऊपर रहने के मूल में ऑपरेशन सिंदूर में हमारी वायुसेना का शानदार प्रदर्शन रहा है, जिसमें पाकिस्तान में नौ आतंकी अड्डों और ग्यारह वायुसेना ठिकाने, हैंगर और रडार केंद्र तहस-नहस कर दिये गये थे. इस तालिका के अनुसार, हिंदुस्तान के सक्रिय सैन्य विमानों की संख्या 1,716 है, जिनमें 32 फीसदी लड़ाकू विमान, 29 प्रतिशत हेलीकॉप्टर और 22 फीसदी प्रशिक्षण विमान हैं. जबकि चीन की वायुसेना में विमानों की कुल संख्या 5,200 के करीब है, जो हमारी संख्या से तिगुना है. उनमें से लगभग 53 फीसदी लड़ाकू विमान हैं.

इन विमानों की किस्में देखें, तो हिंदुस्तान के पास सबसे प्रभावशाली लड़ाकू विमानों में नवीनतम राफेल विमान के अतिरिक्त सुखोई एसयू एमके1हैं, जो एयर टू एयर और एयर टू ग्राउंड के प्रहारक मिसाइलों से लैस हैं. ब्रह्मोस जैसे सुपरसोनिक और अत्यंत सटीक मिसाइल से सुसज्जित होने के बाद ये विमान क्या कर सकते हैं, यह ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान भलीभांति देख-समझ चुका है.

इनके अतिरिक्त मिराज, मिग 29 आदि के पुराने पड़ते बेड़े में तेजस लाइट कॉम्बैट विमान परिवार के एमके1, एमके1ए और एमके2 जैसे पांचवीं पीढ़ी के विकसित लड़ाकू विमानों को भी जल्द ही शामिल किया जायेगा. यद्यपि चीन के पास जे20 जैसे साढ़े पांचवीं पीढ़ी के विमान हैं और जे10सीइ, 15 और 17 भी हैं, पर तेजस श्रेणी के विमानों के हिंदुस्तानीय वायुसेना में आने से यह अंतराल कम होगा. वर्ष 2040 तक हिंदुस्तानीय वायुसेना की पूरी 42 स्क्वॉड्रनों में आधुनिकतम पीढ़ी के विमान होंगे. रणनीतिक बमवाहकों की बात करें, तो चीन के एस6 जैसा विमान हमारे पास नहीं है. पर इस कमी को लंबी दूरी तक मार करने वाले क्रूज मिसाइलों ने घटाया है.

छोटी दूरी के लिए अग्नि, पृथ्वी, मध्यम दूरी के लिए प्रलय और 800 से 1,500 किलोमीटर तक सबसोनिक गति से मार करने वाली निर्भय मिसाइल के बाद ब्रह्मोस मिसाइल है, जो थल, जल और चल प्लेटफॉर्म से सुपरसोनिक गति से लंबी दूरी तक मार कर सकती है. ऐसे प्रक्षेपास्त्रों ने लड़ाकू विमानों की चीन से कम संख्या को संतुलित कर दिया है. एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम, यानी दुश्मन के विमानों की टोह लेकर अपने विमानों को दिशानिर्देश देने वाले विमानों की बात करें, तो चीन का जवाब हमारे पास है. इस्राइली फाल्कन अवाक्स को रूस से मिले आइएल 76 लांग रेंज भारवाहक विमान में लगाकर हिंदुस्तान ने विभिन्न प्रणालियों के समन्वय और विभिन्न देशों से मैत्री का लाभ उठाने का अद्भुत उदाहरण पेश किया है. इससे चीन की तुलना में लड़ाकू विमानों की संख्या काफी कम होने के बावजूद हिंदुस्तान की प्रहार क्षमता बेहतर मानी गयी है.

ऑपरेशन सिंदूर से पहले बालाकोट में आतंकियों के गढ़ को ध्वस्त किया जा चुका था. वर्ष 1965 और 1971 के युद्धों के बाद भी हिंदुस्तानीय वायुसेना ने कारगिल से लेकर अब तक कई बार रक्ताभिषेक किया है. उधर चीनी विमानचालक केवल युद्धाभ्यास से परिचित हैं, युद्ध से नहीं. तभी हिंदुस्तानीय वायुसेना के प्रशिक्षक अब ब्रिटेन के रॉयल एयरफोर्स में बुलाये जा रहे हैं. भूगोल भी हमारे पक्ष में है. तिब्बत की ऊंचाइयों से उड़ान भरने वाले चीन के लड़ाकू विमानों को समतल इलाकों से उड़ान भरने वाले हिंदुस्तानीय विमानों की अपेक्षा थोड़ी कठिनाई होती है. आज युद्ध केवल सेना नहीं, पूरा देश और उसकी आर्थिक स्थिति लड़ती है. हमारी मारक क्षमता चीन पर भारी बनी रहे, इसके लिए हिंदुस्तान की समृद्धि को निरंतर विकासशील रहना होगा और आधुनिक प्रणालियों के चुनाव और खरीद प्रक्रिया का सरलीकरण जारी रखना होगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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