नया विचार न्यूज़ सरायरंजन: कभी हरियाली से भरा खेमईठ झील गर्मी के मौसम में राहत देने के लिए प्रसिद्ध था। आज प्रशासन की अपेक्षा के कारण इसकी स्थिति राजस्थान की तरह हो गई है। मिथिलांचल के दुर्लभ धरोहर में से एक सरायरंजन प्रखंड का यह झील अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। सरायरंजन प्रखंड मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दक्षिण लगमा गांव के पास 200 एकड़ से अधिक भूमि में फैला है। इस झील में सूर्योदय एवं सूर्यास्त के साथ प्राकृतिक मनोरम दृश्य बरबर कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। लेकिन इस बार भी ये झील सुखार की मार झेल रहा है। पानी नहीं रहने के कारण पशु पक्षी भी मर रहे हैं। यहां पहले बारहों मास पानी रहा करता था। आज वहां जंगल ऊपज रही है। बढ़ते तापमान के साथ पानी की मार से इंसान के साथ पशु भी बेहाल हो रहे हैं। झील में पानी नहीं रहने के कारण बुधवार को मछुआरा समाज ने आंदोलन किया। साथ ही प्रशासन से राजस्व माफ करने की मांग के साथ उनकी अन्य मांगे शामिल थी। स्थानीय लोगों का कहना था कि दो साल से लगातार पानी नहीं रहने के कारण मछुआरे काफी घाटे में है। वहीं प्रशासन को प्रखंड से कुल 4 लाख 78 हजार रुपए के करीब राजस्व भी दिया जा रहा है। उसके बावजूद इस झील के विकास के लिए कोई ठोस कदम अभी तक नहीं उठाया गया है। जिससे मछुआरे समाज की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से चरमरा गई है। झील में पानी नहीं रहने के कारण किसानों की भी स्थिति दयनीय है। स्थानीय मत्स्य पालक राम लखन सहनी, मेघन सहनी, शिव शंकर सहनी, राजकुमार सहनी, योगेंद्र सहनी, रामविलास सहनी, राजगीर सहनी, राम प्रसाद सहनी, अधी सहनी आदि का कहना है कि प्रशासन जिस तरह से बलान एवं जमुआरी नदी की उड़ाही करा रही है, उसी प्रकार नून नदी की भी उड़ाही होनी चाहिए थी,जिससे यहां के किसानों को काफी लाभ मिलता। इस बार नून नदी व खेमईठ झील के सूखे रहने से सबसे अधिक मत्स्य पलकों की स्थिति दयनीय हो गई है। लोगों का कहना था कि प्रशासन व प्रशासन द्वारा इस ओर ठोस कदम नहीं उठाया गया तो मछुआरा समाज आंदोलन के लिए बाध्य होगा।