C. Shankaran Nair: ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन ने हाल ही में ब्रिटिश प्रशासन से जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए औपचारिक माफी मांगने का अनुरोध किया है. यह घटना ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की सबसे क्रूरतम घटनाओं में से एक थी, जिसने हिंदुस्तानीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी. हालांकि, इस चर्चा ने एक महत्वपूर्ण लेकिन भूले-बिसरे नायक—सर सी. शंकरन नायर—की विरासत को भी सामने ला दिया, जिन्होंने इस हत्याकांड के बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराते हुए न्याय की लड़ाई लड़ी.
ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती देने वाले शंकरन नायर
11 जुलाई 1857 को केरल के मालाबार में जन्मे शंकरन नायर एक प्रतिष्ठित वकील और प्रखर राष्ट्रवादी थे. वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य के रूप में उन्होंने प्रशासन के भीतर रहकर हिंदुस्तानीयों के अधिकारों की रक्षा का प्रयास किया. लेकिन 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार ने उनके विचारों को पूरी तरह बदल दिया. इस हत्याकांड के विरोध में उन्होंने तत्काल प्रभाव से वायसराय की परिषद से इस्तीफा दे दिया, जो ब्रिटिश शासन के प्रति उनके असंतोष और साहसिक रुख का प्रतीक था.
इसके बाद, उन्होंने “गांधी एंड एनार्की” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें ब्रिटिश प्रशासन की नीतियों की कटु आलोचना की गई. उनकी इस बेबाक अभिव्यक्ति के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने उनके खिलाफ लंदन में मानहानि का मुकदमा दायर किया, जिसे उन्होंने पूरी दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ लड़ा.
एक अनदेखी विरासत
हालांकि शंकरन नायर ने हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन उनके योगदान को इतिहास में वह पहचान नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे. महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की तुलना में उनकी निडरता और ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके संघर्ष को उतनी प्रमुखता नहीं दी गई.
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उन्होंने एनी बेसेंट के साथ मिलकर होम रूल आंदोलन को समर्थन दिया और 1919 के मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो हिंदुस्तानीय प्रशासन में अधिक भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करने के लिए बनाए गए थे. बावजूद इसके, उनकी विरासत मुख्यधारा के इतिहास में उतनी चर्चा में नहीं रही.
Today, I raised the Jallianwala Bagh Massacre.
I asked the Govt to formally give an apology to the people of India ahead of the atrocities anniversary. pic.twitter.com/UMhHY38ISH
— Bob Blackman (@BobBlackman) March 27, 2025
समय आ गया है कि शंकरन नायर को उचित सम्मान मिले
जब दुनिया भर में औपनिवेशिक अन्याय के लिए माफी मांगने की मांग उठ रही है, तो हिंदुस्तान को भी अपने इतिहास के नायकों को उचित सम्मान देने की दिशा में कदम उठाना चाहिए. शंकरन नायर की निर्भीकता और उनके द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठाए गए कदम आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं.
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प्रशासन को उनके योगदान को स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए, उनके नाम पर स्मारक बनवाने चाहिए और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित करने की दिशा में प्रयास करने चाहिए. ब्रिटिश प्रशासन से माफी की मांग करना इतिहास के घावों को स्वीकार करने की एक पहल है, लेकिन हिंदुस्तान के लिए इससे भी बड़ा कार्य यह होगा कि वह अपने भूले हुए नायकों को वह पहचान और सम्मान दे, जिसके वे सही मायने में हकदार हैं.
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