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सेना को खुली छूट देकर संदेश दे दिया गया था कि फौजियों के हाथ खोल दिये गये हैं

दरअसल सेना को खुली छूट देकर हमारी प्रशासन ने पहले ही संदेश दे दिया था कि फौजियों के हाथ खोल दिये गये हैं. ऑपरेशन सिंदूर इसी का नतीजा है. हिंदुस्तान ने जोरदार जवाबी कार्रवाई की है, जो बहुत जरूरी था. लेकिन इससे आगे क्या? युद्ध होगा या नहीं, यह कहना मुश्किल है, यह तो प्रशासन तय करेगी. लेकिन यह जरूर कहा जा रहा है कि हिंदुस्तान और पाकिस्तान, दोनों पूरी तरह युद्ध नहीं चाहते. हिंदुस्तान के अंदर यह स्वर जरूर था कि प्रतिक्रिया होनी चाहिए. इसी कारण प्रतिक्रिया हुई. हिंदुस्तान ने एक्शन लिया, तो जाहिर है, उसका रिएक्शन भी होगा पाकिस्तान की ओर से. फिर हिंदुस्तान के लिए अनिवार्य हो जायेगा कि वो उस रिएक्शन पर रिएक्शन करे. एक तरफ से आक्रमण की तीव्रता जब बढ़ती जाती है, तो दूसरी तरफ की प्रतिक्रिया भी बढ़ती जाती है. कुछ लोगों का मानना है कि इसमें एक या दो से अधिक पड़ाव नहीं आ सकते और इसके बाद खुली जंग हो जायेगी.

अब खुली जंग के लिए क्या हमने पूरी तैयारी कर ली है? क्या हम अपनी पूरी सेना को बॉर्डर पर ले आये हैं? क्या हम पूरी तरह तैयार हैं? ये सारे सवाल भी हैं, क्योंकि हमारी फोर्स पूरे देश में फैली हुई है. वहीं, पाकिस्तान की फोर्स बॉर्डर के काफी नजदीक रहती है. अगर देश युद्ध के लिए तैयार है, तो जनता को भी तैयार होना होगा. अगर ऐसा होता है, तो हिंदुस्तान के ऊपर तो एक तरीके से युद्ध थोपा ही जायेगा. जनता को यह याद रखना चाहिए कि युद्ध जब होता है, तो देश को उसकी एक बहुत बड़ी कीमत भी चुकानी होती है. उसमें जान-माल का नुकसान तो होता ही है, वित्तीय स्थिति भी तबाह होती है.

यह टेलीविजन पर होनेवाली डिबेट या सोशल मीडिया पर होनेवाले हमलों का आदान-प्रदान नहीं है, इसकी असली कीमत चुकानी होगी और वह बहुत ज्यादा होगी. युद्ध में सेना के जवान मारे जाते हैं और लाशें वापस आती हैं. लड़ाकू जहाजों से होनेवाले हमलों से रिहायशी इलाकों में आम नागरिकों की भी तबाही होती है. लोगों के घर, सड़कें, अस्पताल तबाह होते हैं. बहुत सारी उपलब्धियां मिट्टी में मिल जाती हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि हिंदुस्तान युद्ध से पीछे हटे, इसका मतलब ये है कि जब युद्ध हो, तो इस बलिदान के लिए लोगों को तैयार रहना होगा. फिर आप यह नहीं कह सकते है कि हमको नहीं पता था कि ऐसा होगा. आप इसके लिए तैयार रहिये और फिर जैसा गुरु गोविंद सिंह कहते थे, कि निश्चय करो और अपनी विजय करो. लेकिन बिना सोचे समझे, बिना पूरी तैयारी के, सिर्फ दबाव के चलते युद्ध नहीं होना चाहिए.

युद्ध हमेशा ठंडे दिमाग से करना चाहिए. यह देखना चाहिए कि क्षमता क्या है और देश कब तक इस राह पर चलने के लिए तैयार है. आप अगर यह सोच कर युद्ध करेंगे कि चलो कुछ कर देते हैं और उसके बाद अमेरिका और रूस आपके साथ आकर खड़े हो जायेंगे, तो यह याद रखना होगा कि कोई नहीं आयेगा. अमेरिका तो वैसे ही यूक्रेन युद्ध से पीछे हट रहा है. रूस ने जरूर आतंकवाद के खिलाफ हिंदुस्तान के साथ होने की बात कही है. लेकिन क्या किसी देश ने पाकिस्तान को दोष दिया है? क्या किसी देश ने उस पर दबाव बनाया है? अमेरिका हिंदुस्तान का अच्छा दोस्त है, पर उसकी तरफ से भी साथ खड़े होने का कोई बयान नहीं आया है. इसलिए अगर युद्ध हुआ, तो हिंदुस्तान को अपने दम पर युद्ध लड़ना होगा.
(बातचीत पर आधारित)

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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