बीएनएमयू के कुलगीत में जो कहा गया है उसे सभी छात्र-छात्राएं आत्मसात करें. नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति ने आपलोगों को सही उदाहरण देकर समझाया है. उन्होंने आपको पश्चिम और हिंदुस्तान के अंतर को बेहतर बताया है. आपके विश्वविद्यालय का मोटो है, सा विद्या या विमुक्तये. एक संस्कृत श्लोक है. यह विष्णु पुराण से लिया गया है. इसका मतलब है कि असल शिक्षा वह होती है, जो मुक्ति का साधन बनती है. दूसरे शब्दों में कहें, तो जो विद्या मुक्ति दिलाती है, वही असली विद्या है. उक्त बातें सूबे के राज्यपाल सह कुलाधिपति आरिफ मोहम्मद खां ने बीएनएमयू के छठे दीक्षांत समारोह के अवसर पर बुधवार को कही. कुलाधिपति ने कहा कि हिंदुस्तानीय समाज में हमें कई चीजें जन्म से प्राप्त होती है. जैसे परिवार में एक-दूसरे के बीच जन्म से रिश्ता बनता है. उन्होंने छात्रों से कहा कि आपका तेज पूरे समाज में रोशनी फैलाए. बिहार आने के बाद यह मेरा पहला दीक्षांत समारोह है. मिश्र और यूनान की संस्कृति हमसे भी पुरानी है, लेकिन उन देशों का अपनी संस्कृति से आज कोई रिश्ता नहीं है. हिंदुस्तान आज भी अपनी संस्कृति से प्रेरणा प्राप्त कर रहा है. संस्कृति परिभाषित होती है. राज्यपाल ने कहा कि अभी हम अमृत काल में जी रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा है कि हिंदुस्तान अग्रणी देशों की कतार में होगा. हिंदुस्तानीय होने के नाते हमारी जिम्मेदारी है, जाति और धर्म हमारी पहचान नहीं हो सकती. विविधता से हिंदुस्तान कभी परेशान नहीं हुआ, इससे हिंदुस्तान की एकता मजबूत हुई है. इसका सम्मान करना है. यह नैसर्गिक है. यह जीवन का सच है. हमारे उपनिषद में बताया गया है. एक तरफ हमें कहा गया इस विविधता को स्वीकार करो. हमारा दर्शन हमारी परंपरा हमारी संस्कृति बताती है कि इसके आधार पर दीवारें खड़ी नहीं की जा सकती है. कुलाधिपति ने कहा कि आपने यह डिग्री ली है. यह आपका दूसरा जन्म है. आपने जो शपथ ली है. उसका उपयोग आप बेहतर भविष्य के लिए करेंगे. 2047 तक हिंदुस्तान को विकसित व अग्रणी देशों की कतार में खड़ा करना है. इसके लिए हमें मिलकर मेहनत करनी है. इसके पूर्व राज्यपाल ने प्रधान सचिव आरएल चोंगथू, नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति मुख्य अतिथि प्रो अभय कुमार सिंह, कुलपति प्रो विमलेंदु शेखर झा के साथ दीप प्रज्वलित कर दीक्षांत समारोह का उदघाटन किया. इसके बाद कुलपति प्रो विमलेंदु शेखर झा ने अंगवस्त्र, मोमेंटे व पुष्पगुच्छ देकर राज्यपाल का स्वागत किया. नयी पीढ़ी से ज्ञान व मानवता के सुरक्षा की उम्मीद: अभय बीएनएमयू के छठे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में नालंदा विश्वविद्यालय राजगीर के कुलपति प्रो अभय कुमार सिंह शामिल हुए. मौके पर उन्होंने कहा कि विज्ञान की पद्धति के अनुसार, डाटा/तथ्यों से प्राप्त सूचना और उसके विवेचन से नॉलेज का सृजन होता है. अतः प्रकृति और जीवन के प्रति जुटाया गया तथ्यकोष ही ज्ञान है. तर्क और बौद्धिक आधार पर परखकर सिद्ध करने के आग्रह के कारण इस नॉलेज का भौतिक जगत और मटेरियल लाइफ से संबंध है. जीवन संरक्षण के लिए संघर्ष द्वारा समस्याओं का समाधान, प्रकृति पर विजय प्राप्त करना, प्रकृति का दोहन कर मानव जीवन में सुखों की वृद्धि करना और मनुष्य को सर्व-श्रेष्ठ प्राणी और विश्व का अधिपति मानने का हठ इसका मंतव्य है. इस ज्ञान कोष का निरंतर निर्माण कार्य ही मानव प्रगति का मार्ग है. अतः सूचना का संकलन और विश्लेषण कर बौद्धिक क्षमता को उन्नत करना ही ज्ञान प्राप्ति का मार्ग हो गया है. इसी लक्ष्य की ओर अग्रसर होते हुए आज की मानव सभ्यता ””नॉलेज सोसाइटी”” के स्तर को प्राप्त कर रही है. विद्या व शिक्षा में है घनिष्ठ संबंध नालंदा विश्वविद्यालय राजगीर के कुलपति प्रो अभय कुमार सिंह ने कहा कि हिंदुस्तानीय मनीषियों ने ज्ञान तत्व को नॉलेज की सीमित परिभाषा से अधिक व्यापक और उद्देश्यपूर्ण माना है. ज्ञान में मानव प्रगति ही नहीं, अपितु मानवता के विकास का लक्ष्य निहित होता है, जो विद्या या विचार सकारात्मक होता है, सृजनात्मक होता है, कल्याणकारी, मंगलकारी और शुभ होता है, वही ज्ञान की कोटि में है. “न ही ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते”. ज्ञान के अंतर्गत शाश्वत सत्य, मानवता के आदर्श, जीवन की सार्थकता, बौद्धिक प्रवृत्ति की नैतिकता, विदित है. अतः ज्ञान का सही पर्याय विजडम ही माना जाये. ज्ञान नियामक है, इसके प्रयोग के फल हितकारी, न्यायपूर्ण और कल्याणकारी होते हैं, इसी कारण ज्ञानियों का परामर्श और नियंत्रण स्वीकार्य रहा है. उन्होंने कहा कि विद्या और शिक्षा में घनिष्ठता है. विद्या हमारी बौद्धिकता और अनुभव जनित है. विद्या बहुत उपयोगी है और प्रशंसनीय भी. मुनि प्रमाण सागर जी के कथनुसार विद्यालब्धि है, शक्ति है. 14 महाविद्याएं प्रतिष्ठित हैं. विद्या ”अर्जित” की जाती है, जिसमें अभ्यास की भूमिका होती है. वहीं शिक्षा ”ग्रहण” की जाती है. शिक्षा में ”सीख लेना” इसका विशेष तत्व है. विद्यार्जन के उपरान्त, ज्ञान की सीख प्राप्त करने को ही शिक्षा-ग्रहण करना कह सकते हैं. डॉ अभय ने कहा कि गुरुकुल शिक्षा प्रणाली ने लंबे समय तक विद्यादान की परंपरा बनाये रखी. नालंदा जैसे संस्थागत शिक्षण केंद्र ने भी संस्थागत स्वरूप रखते हुए भी गुरु-शिष्य परंपरा की शिक्षण पद्धति को क्षत-आहत नहीं किया, लेकिन आधुनिक युग के करवट के बाद व्यवस्थाओं में परिवर्तन तो होना ही था. ब्रिटिश शिक्षा ने विश्व में एक नयी व्यवस्था के स्थापित की, जो हिंदुस्तान में भी लागू हुई. वर्तमान युग में ज्ञान, विद्या और शिक्षण के विषय में गुरुदेव टैगोर और महात्मा गांधी ने प्रयोग किये और विचार भी दिये थे, लेकिन स्वामी विवेकानंद की सोच ही बदली परिस्थितियों में अधिक उपयुक्त और व्यावहारिक प्रतीत होती है. इसका कारण उनकी सोच में ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत भी ज्ञान-वर्धन कर चरित्र निर्माण, राष्ट्र निर्माण और आधुनिक विकास व रूढ़ि मुक्ति का लाभ उठाया जा सकता है. स्वामी जी स्त्री-शिक्षा, नैतिक व चरित्र निर्माण, तथा विश्व शांति के पक्षधर थे. इस कारण उन्हें ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली से इंकार नहीं था. समाज और शिक्षित वर्ग के बीच की कशमकश में यदि आज की शिक्षा पद्धति द्वारा किसी स्तर पर समाधान दिया जा सके, तो समाज में ज्ञान का स्तर स्वतः ही ऊंचा हो जायेगा. आगामी समय में जबकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रभाव वर्चस्व प्राप्त कर रहा है. नयी पीढ़ी से ज्ञान और मानवता की सुरक्षा की आशा है. यही पीढ़ी