CAG: सीएजी की उपयोगिता, कार्यप्रणाली, विश्वसनीयता, उसकी सीमा और शक्ति सहित ऑडिट के तरीके सहित विभिन्न मुद्दों पर कैग के पूर्व महानिदेशक पी शेषकुमार से नया विचार के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख अंजनी कुमार सिंह की बातचीत के मुख्य अंश: सवाल : सीएजी की भूमिका को लेकर अक्सर विवाद होता रहता है. क्या आपको लगता है कि जनता या मीडिया सीएजी के अधिकार क्षेत्र को सही ढंग से नहीं समझ पाते हैं या फिर इसे गलत तरीके से पेश किया जाता है? नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक जिसे सीएजी कहते हैं इसके विषय में आम जनता में कम जानकारी है. मीडिया और जनता दोनों ही सीएजी के अधिकार क्षेत्र को सही ढंग से नहीं समझ पाते हैं. इसका एक प्रमुख कारण यह है कि सीएजी अपने प्रचार तंत्र से बहुत दूर है. कैग का मानना है कि उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही उसे लोग जाने. एक तो सीएजी आम तौर पर प्रचार से कतराता है और दूसरा उसके पास समर्पित पेशेवर मीडिया विंग नहीं है.मीडिया द्वारा सनसनीखेज निष्कर्षों को गलत तरीके से प्रस्तुत करना या चुनिंदा तरीके से हाईलाइट करना भी संभव है. इसे आम तौर पर जनता द्वारा उठाया जाता है. क्योंकि सीएजी की रिपोर्ट जब तक संसद या विधानसभा के पटल पर न रख दिया जाये, तब तक वह गोपनीय रहता है. रिपोर्ट टेबल होने के बाद जब मीडिया, आम जनता या पॉलिटिकल पार्टी इस पर सवाल-जवाब करते हैं, तब वह लोगों के बीच आता है.12 साल पुरानी 2 जी स्पेक्ट्रम हो या कोल स्पेक्ट्रम या चारा घोटाला उन रिपोर्टां की आज भी चर्चा होती रहती है. अभी की रिपोर्ट की तुलना भी पिछले रिपोर्ट के आधार पर की जाती है. इसलिये काफी प्रश्न आम आदमी, मीडिया, बुद्धिजीवियों के बीच सुनने-समझने को मिलती है. आम जनता भी सीएजी की रिपोर्ट को पढ़े और उस पर विचार करें, तो यह देश हित में होगा. इस पर मैंने हाल ही में एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है, “सीएजी एन्स्योरिंग अकाउंटेबिलिटी एमिड्स कॉन्ट्रोवर्सी: इन इनसाइड व्यू”. यह किताब सभी को पढ़ना चाहिये. आखिर सीएजी है क्या? इसकी सीमा और शक्ति क्या है? इसके काम करने के तरीके सहित इस पर कितना दबाव रहता है जैसे मुद्दों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है. सीएजी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठते रहे हैं. सीएजी की विश्वसनीयता को और अधिक कैसे बढ़ाया जा सकता है?सबसे पहले सीएजी में होने वाली नियुक्ति प्रक्रिया को समझना होगा. इसके लिए कोई पॉलिसी या कोई कमिटी सिस्टम नहीं है. एक मुद्दा जिस पर अभी भी ध्यान देने की जरूरत है, वह है “चुनाव आयुक्त और सीबीआई निदेशक की तर्ज पर सीएजी की नियुक्ति के लिए समिति” की मांग. शायद, जिस बात पर बहस या आंदोलन किया जाना चाहिए, वह है सीवीसी और मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के समान बहु-सदस्यीय सीएजी की ओर बदलाव, साथ ही नियुक्ति के लिए एक संवैधानिक प्रावधान”. बदलावों के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी. इससे तीन उद्देश्य पूरे होंगे: चयन में पारदर्शिता, इंडियन ऑडिट एंड एकाउंट्स सर्विस (आइएएएस) को तीन सदस्य पदों में से कम से कम एक के लिए विचार किए जाने का अवसर और सीएजी में लगभग शून्य जवाबदेही के साथ एक व्यक्ति के वर्चस्व की प्रणाली को समाप्त करना. वर्तमान में कैबिनेट सेक्रेटरी अधिकारियों का एक पैनल बनाती है और उस पैनल में से प्रधानमंत्री किसी एक को नियुक्त करते हैं. इसके साथ ही एक बात और ध्यान देने की है कि नियुक्ति के बाद सीएजी महोदय को इतनी पॉवर और छूट दी गयी है, कि उस पर फिर किसी का दबाव काम नहीं कर सकता है. इन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज का हैसियत हासिल है. इन्हें नौकरी से कोई हटा नहीं सकता है. इनको हटाने के लिए भी पार्लियामेंट में महाभियोग लाना पड़ता है. इनके आफिस के खर्च को लेकर पार्लियामेंट में वोटिंग भी नहीं हो सकती है. कार्यालय के खर्च का कोई ऑडिट नहीं होगा. इन्हें कौन सा सब्जेक्ट का चुनाव करना है, उसमें कितनी गहराई तक जाना है, कितने दिनों में रिपोर्ट देनी है, कब बनानी है, इसके लिए भी सीएजी को पूरा पावर दिया गया है. एक बार नियुक्त होने के बाद उनके ऊपर किसी तरह का दबाव आने की आशंका कम रहती है. लेकिन आप पूछेंगे की प्रैक्टिकली क्या हो रहा है? तो प्रैक्टिकली इनके पास पूरे पॉवर है, लेकिन अब उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उस पावर को कैसे यूज कर रहे हैं. सवाल : आप सीएजी और न्यायपालिका के बीच के जटिल संबंधों पर चर्चा करते हैं. आपके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णयों ने सीएजी के अधिकार क्षेत्र और प्रभावशीलता को कम किया है. कैसे? वर्ष 2012 के माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने सीएजी के ऑडिट के दायरे का विस्तार करते हुए इसे ‘मुनीम’ या सिर्फ एक अकाउंटेंट की तरह मानने के बजाय प्रदर्शन ऑडिटिंग को शामिल किया. उसी फोरम ने अगस्त 2024 में यह भी निर्णय लिया कि सीएजी की रिपोर्ट केवल उनका दृष्टिकोण या विचार हैं और जब तक पीएसी संसद को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत नहीं करती, तब तक वे अंतिम नहीं होती हैं. इसका असर सीएजी रिपोर्ट की प्रभावशीलता पर पड़ा है. अब सीएजी की रिपोर्ट की वैल्यू तभी है, जब पीएसी संसद को अपनी सिफारिशें दें. इसमें यह भी नहीं है कि इतने समय के अंदर इसे टेबल करना जरूरी है. प्रशासन चाहे तो वर्षों तक रिपोर्ट को टेबल नहीं कर सकती है. अभी हाल ही में सीएजी महोदय ने 2024 में ही दिल्ली की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर की थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट फरवरी 2025 में विधानसभा में आयी है. इससे कई सारी समस्याएं पैदा होती है. सीएजी किसी समस्या को सुधार करने के लिए अपनी रिपोर्ट में दो साल पहले सिफारिश की है और दो साल तक उस रिपोर्ट को टेबल ही नहीं किया गया, तो इन दो सालों में वह समस्याएं विकराल हो जायेगी या फिर दूसरी समस्या में तब्दील हो गयी होगी. मेरा मानना है कि सीएजी के काम में और अधिक सुधार के लिए उसे और शक्ति देना जरूरी है. सीएजी की रिपोर्ट को पेश करने के लिए प्रशासन को एक अनिवार्य समय दे दिया जाये, चाहे वह समय दो महीना हो या छह महीना. लेकिन प्रशासन की यह