Prabhat Khabar Special: चीन चुपके-चुपके विकास करता रहा और हम देखते रहे, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के इंटरव्यू की तीसरी कड़ी
Naya Vichar Special: ‘हमारा पड़ोसी देश चीन कभी आर्थिक मजबूती के तौर पर हिंदुस्तान से काफी पीछे था. वह चुपके-चुपके विकास करता रहा और हम देखते रहे.’ यह हम नहीं, बल्कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के एक्सक्लूसिव इंटरव्यू का सार है. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के साथ नया विचार डॉट कॉम के संपादक जनार्दन पांडेय ने लंबी बातचीत की है. पेश है उस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू की तीसरी कड़ी… हरिवंश: इस विकास की यात्रा में हर राज्य को समझना होगा कि उनकी साझेदारी उतनी है. उनका योगदान उतना ही जरूरी है. मैं आजकल दो तीन विधानसभाओं में नए देश के हाल के महीने डेढ़ महीने में गया. उनके जो नए विधायक होते हैं. ओरिएंटेशन प्रोग्राम होता है. उनके साथ संवाद करने के लिए मुझे बुलाया गया. जनार्दन पांडेय: अभी आप जाने वाले भी है शायद? हरिवंश: नहीं, ऑलरेडी यहां कल मैं बात कर चुका हूं लंबा और एक जम्मू कश्मीर में गया था और एक अभी चंडीगढ़ गया था. उसके पहले पटना में दूसरे ढंग का स्पीकर्स कॉन्फ्रेंस था. उसके पहले इसी कार्यक्रम के लिए ओडिशा में गया था. अभी हाल में मैं एक-एक लेख के बारे में राज्यों में भी कहता हूं और मीडिया से भी कहता हूं. मैंने अभी पढ़ा ही हुआ है. मैं आपको दिखा दूं. ये लेख है. इकोनॉमिक टाइम्स में छपा है 8 फरवरी को. यह लेख भी किसी असाधारण व्यक्ति का ही है. यह हैं कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम. यह साधारण व्यक्ति हैं. यह हिंदुस्तान के आर्थिक सलाहकार पहले रहे हैं. आज की तारीख में आईएमएफ के एक्सक्यूटिव डायरेक्टर हैं. इन्हीं की किताब है इंडिया एट द रेट ऑफ 100 यानी 100 वर्षों बाद हिंदुस्तान दुनिया के बड़े अर्थशास्त्री ही आईएमएफ एक्टिव डायरेक्टर होंगे. कहने की जरूरत नहीं हिंदुस्तान के बारे में. इस व्यक्ति ने किताब लिखी. अब वो अर्थशास्त्री हैं, जो हिंदुस्तान के बारे में कंसर्न हैं, सोचते हैं. इनका सवाल है मीडिया से लेकर के और हमारे सारे जो बौधिक हैं देश के उनसे. और सारे ये जितने बॉडीज हैं, आपके चेंबर ऑफ कॉमर्स जैसे इस तरह की जितनी बॉडीज हैं, उन सब से कि भाई केंद्र प्रशासन का जब बजट आता है, तो केंद्र प्रशासन के बजट पर चर्चा, राज्य प्रशासन के बजट की स्क्रूटनी क्यों नहीं? तब तो आप चैनलों पर बड़ा लंबा डिस्कशन चलाते हैं. ओपेट चलाते हैं. अखबारों में सब लोग विचार व्यक्त करते हैं, पर असल विकास का इंजन तो एक तरह से कहें… यह मैं कह रहा हूं, वह तो राज्यों के हाथ में है. क्या राज्य के मीडिया राज्य के लोग राज्य के चेंबर ऑफ कॉमर्स, राज्य का सीआईआई कन्फेडरेशनों, टेड माइंड उस व्यक्ति का यह कहना वो कहते क्या हैं. आगे मैं बहुत संक्षेप में आपको सुना रहा हूं. बड़ा मौजू है ये, क्योंकि दो बड़े राज्यों का… हिंदुस्तान के दो बड़े राज्यों के बजट लगभग तैयार हैं और इस महीने में वो पेश होंगे. कहते हैं, ‘एवरी मैन्युफैक्चरिंग फर्म रिलाइज ऑन सिक्स क्रिटिकल इनपुट्स’. देश में मैन्युफैक्चरिंग पर जोर 2014 के बाद पड़ा. चीन ने मैन्युफैक्चरिंग के लिए 1977 से अपनी कोशिश की और कैसे उन्होंने इसके लिए अलग से उन्होंने प्रयास किए. यह एक लंबा किस्सा है. मैं जिस अखबार में काम करता था या 10 वॉल्यूम की बात किया, उसमें लिखा है, उस सज्जन जो उनका पहला वो था स्पेशल जोन, जो सज्जन उन्होंने बनाया हांगकांग के बगल में. वो देंग शियाओ पेंग ने कैसे बनाया और सबसे पहले वो जापान के पास गए. आप देखिए प्रैक्टिकल सोच जापान और चीन का रिश्ता. इतिहास आप उठाकर देखें, तो बिल्कुल डागर्स का रहा है, बिल्कुल एक दूसरे के खिलाफ आंख मिलाकर के बिल्कुल तरेरने वाला और बहुत क्या कहें. मतलब एक-दूसरे के प्रति बहुत कटू भाव रहे हैं उनके. इतिहास में उसकी वजह रही है, क्योंकि चीन मानता है कि सेकंड वर्ल्ड वॉर में कई जगहों पर जापान ने का कब्जा किया था और वहां मानते हैं उनके अनुसार कि जापान ने वहां पर अपने ढंग से क्रूरता की. इसलिए हाल-हाल तक वे मांग करते हैं कि जापान हमें उसके लिए माफ मांगे. उसी जापान में देंग शियाओ पेंगजब नया सपना देखते हैं चीन को बनाने का, तो सबसे पहले वो आदमी जापान जाते हैं. सी द प्रैक्टिकल विजन और जापान जाकर वो वहां के बादशाह के सामने खड़े हो जाते हैं. देंग शियाओ पेंग… बड़े… मैं तो छोटा हूं. मेरा कद बहुत छोटा है, पर वो शायद मुझसे भी कद में बड़े छोटे थे. उस इतिहासकार ने लिखा है, जिसने उस वर्ल्ड… उस पर पॉलिटिक्स और टर्न अराउंड पर.. जो सामग्री लिखी थी, जो मैं पढ़ा था उसमें कि वो उसमें भी काफी झुक करके द शियाओ पेंग ने सम्राट के सामने कहा कि हम अतीत को भूल जाएं… हम अतीत को भूल जाएं और चीन अब एक नया अध्याय शुरू करना चाहता है. उसमें जापान की उसको जरूरत है और जापान टेक्नोलॉजी में सबसे आगे था. ये सारे मेरे लिखे हुए लेख हैं उसी अखबार में, जो बाद में संकलन में आए हैं. किताबों में भी शामिल होगा. फिर यही नहीं कहा, उसके बाद जापान ने 100 बिलियन डॉलर पहला पैसा दिया. जापान ने उसके बाद वहां की जितनी बड़ी कंपनियां थीं, ऑटोमोबाइल की टोयोटा से लेकर सबमें… उसमें देंग शियाओ पेंग एक-एक बड़ी कंपनी में गए. उतने बड़े स्टेचर का नेता, जो चीन का चीफ था, ऑटो कंपनियों के पास जा रहे हैं. ऑटो कंपनियों के जो सीईओ हैं सारे, उन सबको इनवाइट किया. पहली चीन का सारा सक्सेस मैन्युफैक्चरिंग का. हम देख नहीं सके, हमारे राजनेता देख नहीं सके. हम बदलने से इंकार करते रहे. हमारा देश बैंकरप्ट होने के कगार पर खड़ा था. उसके बारे में मैं आपको बताऊंगा. हम इतने विजनरी के अभाव वाले नेताओं का देश यह रहा कि जो सिर्फ सत्ता प्रिय हो गए और हमारे सामने एक देश करवट लेकर के हमसे बहुत तेज से आगे बढ़ रहा था. वो खतरे हम समझ रहे थे, पर हम चुप थे. ये एक नागरिक के तौर पर मैं कह रहा हूं अभी आपको कि जब मैं ये सवाल उठा रहा हूं, तो मैं एक सांसद के रूप में नहीं या जिस पद पर हूं, उसके रूप में