53 वर्ष में शिबू के संघर्ष और हेमंत के कौशल ने झामुमो को बनाया झारखंड की माटी की पार्टी
Table of Contents मांझी-महतो गठजोड़ का नया नेतृत्वक समीकरण अलग-अलग धड़े के 3 नेता एक मंच पर आये 5 दशक में झामुमो ने देखे कई उतार-चढ़ाव नेतृत्व की धुरी बन गया झामुमो Jharkhand Mukti Morcha News| रांची, आनंद मोहन : 4 फरवरी 1972. ऐतिहासिक दिन. बिनोद बिहारी महतो का धनबाद स्थित मकान. झारखंड आंदोलन व सामाजिक चेतना अगुवा बिनोद बिहारी महतो के आवास पर एक बैठक हुई. बैठक में शामिल थे शिबू सोरेन, कॉमरेड एके राय, प्रेम प्रकाश हेम्ब्रम, कतरासगढ़ के राजा पूर्णेंदु नारायण सिंह, शिवा महतो, जादू महतो, शक्तिनाथ महतो, राजकिशोर महतो और अन्य चुनिंदा नेता. यह दिन खास इसलिए है कि एक छोटी-सी बैठक आने वाले दिनों में झारखंड की इबारत लिखने जा रही थी. मांझी-महतो गठजोड़ का नया नेतृत्वक समीकरण बैठक झारखंड में मांझी-महतो गठजोड़ के नये नेतृत्वक समीकरण की पठकथा लिख रही थी. यह बैठक झारखंड में लाल और हरे झंडे तले एकता की मजबूत नींव थी. वामपंथी नेता एके राय भी बैठक में पहुंचे थे. यह दिन खास इसलिए था, क्योंकि झारखंडी अस्मिता, मान-सम्मान और अबुआ राज के लिए संघर्ष की जमीन तैयार हो रही थी. सदियों के शोषण से मुक्ति का रास्ता निकालने का संकल्प लिया जा रहा था. अलग-अलग धड़े के 3 नेता एक मंच पर आये बिनोद बहार महतो, शिबू सोरेन, एके राय सभी अलग-अलग संगठन बनाकर अलग झारखंड राज्य और झारखंड के आदिवासियों-मूलवासियों के लिए आंदोलन कर रहे थे. ये सभी बिखरे हुए संगठन पहली बार एक साथ आये. इन्होंने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का गठन किया. बिनोद बिहारी महतो झामुमो के पहले अध्यक्ष बने. शिबू सोरेन को महासचिव बनाया गया. उन्होंने संगठन की कमान संभाली. पूर्णेंदु नारायण सिंह उपाध्यक्ष और चूड़ामणि महतो पहले कोषाध्यक्ष बने. अलग झारखंड राज्य की मांग के लिए इस तरह एक पार्टी का गठन हुआ. रांची के हरवंश राय टाना भगत स्टेडियम जेएमएम के महाधिवेशन में देश भर से पहुंचे पार्टी के प्रतिनिधि. 5 दशक में झामुमो ने देखे कई उतार-चढ़ाव वर्ष 2025 में झामुमो ने 53 वर्षों का सफर पूरा किया. झामुमो ने इन 5 दशकों में बड़े उतार-चढ़ाव देखे. आंदोलन को तेवर दिया, तो पार्टी ने हिचकोले भी खाये. शिबू सोरेन के संघर्ष ने इस पार्टी को ऊर्जा और खाद-पानी दिया. संताल परगना और कोल्हान से लेकर छोटानागपुर और पलामू प्रमंडल तक शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड आंदोलन ने दिल्ली की सत्ता को झकझोर कर रख दिया. झामुमो के अलग राज्य के आंदोलन के साथ झारखंडी भावनाओं का ज्वार चढ़ता ही गया. हरा झंडा झारखंड में रच-बस गया. इसे भी पढ़ें : ताकतवर क्षेत्रीय दल बनकर उभरा है झारखंड मुक्ति मोर्चा नेतृत्व की धुरी बन गया झामुमो झामुमो एकीकृत बिहार से ही नेतृत्व की धुरी बन गया था. झारखंड के आदिवासी-मूलवासी के स्वर और उसकी अनुगूंज सत्ता-शासन को हिलाती रही. वर्ष 2000 से पहले झामुमो ने 28 वर्षों का लंबा संघर्ष किया. तीर-धनुष झारखंडी अस्मिता, पहचान और हक-अधिकार की रक्षा का प्रतीक बना. शिबू सोरेन झारखंड आंदोलन के नायक बने. हजारों झामुमो कार्यकर्ताओं ने इस लड़ाई में खुद को न्योछावर कर दिया. पुलिस की गोली का निशाना बने. लाठी-डंडे खाये. सैकड़ों लोग शहीद हुए और हजारों लोगों पर मुकदमे हुए. झारखंड की ताजा समाचारें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें शिबू सोरेन के नेतृत्व पर बरकरार रहा लोगों का भरोसा बावजूद इसके शिबू सोरेन के नेतृत्व पर लोगों का भरोसा बरकरार रहा और झामुमो जंगलों-पहाड़ों, खेत-खलिहानों से होते हुए शहरों-कस्बों तक पहुंची. चुनावी नेतृत्व में अपनी पकड़ बनायी. 80 के दशक से झामुमो ने संसदीय व्यवस्था में भी अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी. एकीकृत बिहार में झामुमो ने अपनी नेतृत्वक धमक शिबू सोरेन के नेतृत्व में बनाये रखी. अलग झारखंड राज्य गठन के बाद झामुमो ने सियासत में गहरी पैठ बनायी. इसे भी पढ़ें 14 अप्रैल को आपके शहर में 14.2 किलो के एलपीजी सिलेंडर की क्या है कीमत, यहां चेक करें गुरुदास चटर्जी : लालू प्रशासन में कैबिनेट मंत्री का पद ठुकराया, कभी बॉडीगार्ड तक नहीं लिया झामुमो के महाधिवेशन में कल्पना सोरेन को बड़ी जिम्मेदारी और वक्फ संशोधन कानून पर होगी चर्चा Video: हजारीबाग में नगर भ्रमण पर निकले जुलूस पर पथराव के बाद हिंसा, आगजनी, बरकट्ठा छावनी में तब्दील The post 53 वर्ष में शिबू के संघर्ष और हेमंत के कौशल ने झामुमो को बनाया झारखंड की माटी की पार्टी appeared first on Naya Vichar.