साहित्य संगम रोसड़ा की मासिक संगोष्ठी में कवियों ने रखी भावनाओं की अभिव्यक्ति
नया विचार न्यूज़ रोसड़ा /समस्तीपुर – साहित्यिक संस्था साहित्य संगम, रोसड़ा की मासिक संगोष्ठी का आयोजन रविवार को किड्स पाठशाला परिसर में किया गया। इस मौके पर सावन की फुहारों की तरह कविताएं भी झूम-झूमकर बरसीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार संजीव कुमार सिंह ने की, जबकि संचालन तृप्ति नारायण झा ने किया। संगोष्ठी की शुरुआत मनोज कुमार झा ‘शशि’ ने मां सरस्वती की लयबद्ध प्रार्थना “भाव में सद्भाव हो मां, यत्न हम भी कर रहे हैं…” से की, जिससे माहौल भक्तिमय हो गया।ग़ज़लकार दिनेश्वर दिनेश ने अपने शेरों से व्यवस्था पर सवाल खड़े किए: “बहुत से हैं सवाल, पर जवाब कौन दे?सबके सब हैं लुटेरे, फिर हिसाब कौन दे?।कवि तृप्ति नारायण झा ने प्रेम और पीड़ा को कविता में ढालते हुए कहा तेरे आंखों के आंसू जो कम पर गए,धीरे-धीरे नदी सूखने लग गई।” रामस्वरूप सहनी ‘रोसड़ाई’ ने सावन को स्वर देते हुए सुनाया “सावन संगीत सुनाता है, खुद गाता और गवाता है…” विजय महतो ने झूमते बादलों और लोक आस्था का चित्र खींचते हुए पढ़ा: “झुमि झुमि के बदरा बरसे, सावन के सोमवारी में…” साहित्यकार संजीव कुमार सिंह ने सामाजिक चेतना से जुड़ी कविता प्रस्तुत की ग्राम प्रधान नेक और ईमानदार चाहिए।कार्यक्रम का समापन संस्था के उपाध्यक्ष रामस्वरूप सहनी ‘रोसड़ाई’ द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ किया गया।कार्यक्रम में साहित्य प्रेमियों की अच्छी भागीदारी रही। सावन के मौसम में हुई यह संगोष्ठी कवियों की भावनात्मक अभिव्यक्ति और सामाजिक सरोकारों का सुंदर संगम बन गई।