भगवान राम ने ईश्वर होते हुए भी पुरुषोत्तम का पात्र अदा किया. कभी भगवान होने का जरा सा भी भान नहीं होने दिया. पिता-पुत्र का रिश्ता कैसा होना चाहिए, उनके जीवन में यह निहित है. राजधर्म का अक्षरश: पालन उनके व्यक्तित्व में समाहित है. एक भी व्यक्ति अंगुली उठाता है, तो उसका भी जवाब देना वह राजधर्म समझते थे. चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक को ईमानदार होने को वह राजधर्म समझते थे. भगवान राम का पूरा चरित्र अनुशासन पर आधारित भगवान राम ने रावण वध के समय भी शिविलिंग की स्थापना की प्रक्रिया रावण से ही पूरा करवायी. रावण को मारने का उपाय विभीषण से पूछते हैं. मां सीता भगवती थीं. फिर भी रावण उनका हरण कर लेता है. एक मनुष्य के रूप में इन झंझावतों से कैसे निबटा जाये, यही राम का पूरा चरित्र है. रावण के मरने के बाद भी भगवान राम की मर्यादा देखिए. लक्ष्मण से कहते हैं कि रावण से बड़ा पंडित कोई नहीं हुआ. इससे जाकर कुछ सीख लो. ये सब अनुशासन पर आधारित है. पिता-पुत्र का आचरण कैसा होना चाहिए, ये उनके जीवन की बड़ी सीख है. वनवास जाने के लिए उन्होंने कैकेयी को कभी दोषी नहीं ठहराया, जबकि लक्ष्मण ने खूब बुरा-भला कहा था. वनवास से लौट कर भी पहले कैकेयी के पैर भगवान राम ने छूये थे. राम ने कोल, अछूतों की सेना बना कर सामाजिक सद्भाव कायम किया राम राजा दशरथ के लड़के थे. वह सब तरह से युद्ध कला में प्रवीण थे. उनको क्या जरूरत थी कि हनुमान और वनवासियों की मदद लें. हमलोग, जिसे वानरी सेना समझते थे, वह उस समय के ट्राइब (आदिवासी) ही थे. राम ने कभी राजपूतों की सेना नहीं बनायी. वनवास के दौरान जिनके यहां गये, उनकी जाति नहीं देखी. वाल्मीकि के यहां गये. सबरी के जूठ बेर खाये. अछूतों को गले लगाया. इससे बड़ा सामाजिक सामंजस्य का क्या उदारण हो सकता है. त्रेता युग में भी राजपूत कुल का राजा दलितों, अछूतों, आदिवासियों और वनवासियों के सहयोग से रावण पर चढ़ाई करता है. 14 साल एक धोती में सादगी से वनों में घूमते रहे राम ने अपने जीवन का 14 साल एक धोती पहन कर जंगल में बितायी. वहां कोई राजसी ठाट नहीं थी. राम ने तथाकथित धोबी के गलत कहने पर भी अपनी पत्नी का परित्याग कर दिया. अब तो आरोप लगने पर भी कोई गद्दी नहीं छोड़ रहा है. एक व्यक्ति पर भी अगर अंगुली उठती है, तो वह उनकी बात सुनते हैं. पूरे समय उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार नहीं किया. लंका भी विभीषण को सौंप दिया. पूरे जीवनकाल में एक ही पत्नी रखी, जबकि उस दौर में राजा कई पत्नियां रखते थे. राम का हर वचन संकल्प की तरह है भगवान राम का संकल्प है कि पिता के वचन का पालन किया. एक आदमी ने भी कुछ कहा, तो उसकी बात सुनी. उनका हर वचन एक संकल्प की तरह है. पहले पिता, फिर विभीषण के साथ भी किया गया वादा संकल्प की तरह ही पूरा किया. गरीबी, अज्ञानता खत्म करना उनका संकल्प था. इसी कारण हमेशा रामराज्य की कल्पना की जाती है, क्योंकि रामराज्य में कोई गरीब नहीं था. कोई व्याभिचारी नहीं था. एक से अधिक पत्नी राम ने नहीं कर ब्रह्मचर्य का पालन किया उस समय में कम उम्र में शादी होती थी. इसके बावजूद भगवान राम की शादी 27 साल की उम्र में हुई. एक ही पत्नी रखी. पहला ब्रह्मचर्य 25 साल का ही होता है. किसी दूसरी स्त्री पर कभी आंख उठा कर भी नहीं देखी. हमेशा चरित्र की मर्यादा में रहे, जबकि उनके पिता और उनके ससुर की एक से अधिक शादियां थीं. घर में ही इस तरह के उदाहरण रहने के बावजूद उनके जीवन में ब्रह्मचर्य है. रावण की पत्नी को भी प्रणाम भेज किया स्त्री सम्मान भगवान स्त्री मर्यादा का पूरा पालन किया. जब सुपर्णरेखा उसके पास आयीं, तो बहन व मां कह कर उनको अपने सामने से जाने को कहा. सुपर्णरेखा का हठ बढ़ा, तो उसे सबक सिखाने के लिए अपने भाई लक्ष्मण को आगे कर दिया. भगवान राम चाहते, तो खुद उसका नाक काट सकते थे. लेकिन, उसको लक्ष्मण के पास भेज दिया. रावण के निधन के बाद मंदोदरी को समझाने के लिए लक्ष्मण को भेजा. मंदोदरी को अपना प्रणाम भिजवाया. सचिव, वैध और गुरु बढ़िया रहने पर ही नीति ठीक बनेगी भगवान राम ने सभी जगह नीति की शिक्षा दी. सचिव, वैध और गुरु को बढ़िया रखने की सलाह दी. कहा कि ये तीनों जब अच्छे होंगे, तब ही राज ठीक से चल सकता है. तब ही राजधर्म का पालन होगा. गुरु, बिनु वेद न सचिव बिनु नीति। राज धरम बिनु नृप बिनु प्रीति भगवान राम ने कहा कि कभी दूसरे की संपत्ति मत रखो. उन्होंने श्रीलंका को अपने रात में नहीं मिलाया. किसी दूसरे पर कभी कुदृष्टि नहीं डाली. अपने हक तक ही संपत्ति रखने को कहा. अधिकार को लेकर हमेशा वे सजग रहने की सीख देते हैं. दूसरे के बारे में सोचना राजधर्म है चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री का ईमानदार होना ही राजधर्म है. राजा हो या चपरासी यदि घूसखोर होगा, तो राजधर्म का पालन नहीं कर पायेगा. दूसरे के बारे में सोचना भी राजधर्म है. मैं अगर जनता की जगह होता तो क्या करता, क्या सोचता, इस तरह से शासन चलाना राजधर्म है. जनता की अपेक्षाओं को भांपना राजधर्म है. राजा खुद जनता होता, तो वो क्या चाहता, इस तरह से राज चलाना राजधर्म है. (लेखक बीएस दुबे बिहार के पूर्व मुख्य सचिव रहे हैं) The post भगवान राम का पूरा जीवन ही मर्यादा का रूप, मुख्यमंत्री से लेकर चपरासी तक का ईमानदार होना राजधर्म: बीएस दुबे appeared first on Naya Vichar.