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पूर्व डीएम के सान्निध्य में अभावग्रस्त बच्चे कर रहे उज्जवल भविष्य का निर्माण

तरूण कुमार मिश्रा, चंद्रमंडीहदिल में अगर समाज के लिए कुछ करने का जज्बा हो तो उम्र, पद एवं प्रतिष्ठा मायने नहीं रखते. यह कहावत चरितार्थ कर रहे हैं जमुई के पूर्व जिलाधिकारी शशिकांत तिवारी. सेवानिवृत्त होने के बाद वे किसी बड़े शहर में आराम की जिंदगी गुजारने के बजाय देवघर जिले के छोटी सी जगह जसीडीह में बीते लगभग पांच वर्षों से जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा का दान दे रहे हैं. इसके लिए उन्होंने अपने आवास के एक हिस्से को ही कोचिंग सेंटर का शक्ल दे दिया है. यहां वे नर्सरी वर्ग से लेकर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले बच्चों का मार्गदर्शन करते हैं. यही कारण है कि अहले सुबह से देर शाम तक उनके आवास पर नन्हे-मुन्हें बच्चों की गतिविधियों से गुलजार रहता है. बड़ी बात यह है कि वे बच्चों के मार्गदर्शन के लिए कोई शुल्क की मांग नहीं करते हैं. अगर कोई सक्षम अभिभावक इसके बदले में कुछ राशि उपलब्ध कराते हैं तो वे उस पैसे से गरीबों के कल्याण के लिए संचालित विभिन्न ट्रस्ट को दान कर देते हैं. शिशु बौद्धिक रूप से सक्षम हो सके इसके लिए वे प्रशिक्षित शिक्षकों को बुलाकर बच्चों को ज्ञान दिलवाते हैं. इसके कारण उनके आवास के आस-पास निवास करने वाली बड़ी संख्या में जरूरतमंद शिशु उनके सान्निध्य में बैठकर अपना भविष्य संवार रहे हैं.

गरीबी व उचित मार्गदर्शन के अभाव में दम तोड़ती प्रतिभाएं देखी है – शशिकांत

पूर्व डीएम शशिकांत तिवारी कहते हैं कि मैंने लंबे समय तक उन जगहों पर सेवाएं दी हैं जहां गरीबी एवं सही मार्गदर्शन के अभाव में बच्चों की प्रतिभा असमय ही दम तोड़ देती है. उस समय ही मैने संकल्प लिया था कि सेवा अवधि पूरी करने के बाद नौनिहालों के भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए कुछ करना है. यही कारण है कि मैंने बच्चों को अपनी आगे की जिंदगी का एक हिस्सा बनाया. सेवानिवत्ति के बाद मैं पहले से और अधिक सक्रिय रहता हूं. सुबह चार बजे से लेकर रात दस बजे तक किसी न किसी कार्य में अपने आप को व्यस्त रखता हूं.

स्वयं को सौभाग्यशाली समझते हैं अभिभावक

वहीं आस-पास निवास करने वाले बच्चों के अभिभावक अपने आप को सौभाग्यशाली समझते हैं, क्योंकि उनके बच्चों को हिंदुस्तानीय सिविल सेवा से रिटायर्ड पदाधिकारी का सान्निध्य प्राप्त हो रहा है. स्पोर्ट्स-स्पोर्ट्स में सिखाने की अद्भुत क्षमता के कारण बच्चों को उनके पास भेजने में कोई प्रयास नहीं करना पड़ता. शिशु खुद समय से पूर्व उनके पास जाने के लिए तैयार हो जाते हैं. अभिभावकों ने बताया कि बच्चों के कौशल क्षमता के विकास के लिए वे विभिन्न तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाते हैं. साथ ही प्रतियोगिता में सफल बच्चों के बीच पारितोषिक के रूप में ढेर सारी पाठ्य सामग्री का वितरण भी करते हैं. यही कारण है कि बच्चों के बीच वे काफी प्रिय हैं.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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