मधेपुरा, आशीष : पांच महीने के बाद एक बार फिर छठ गीतों की गूंज सुनाई देने लगी है. कार्तिक महीने के बाद अब चैती छठ की तैयारी शुरू है. इस बार लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ एक अप्रैल दिन सोमवार से शुरू होगा. पहले दिन विधि-विधान और अत्यंत पवित्रता के साथ नहाय-खाय होगा. नहाय-खाय के दिन व्रती स्नान-ध्यान कर नया वस्त्र धारण कर पर्व के निमित्त गेहूं धोकर सुखायेगी. गेहूं सुखाने में भी काफी निष्ठा रखनी पड़ती है. मतलब सूखने के लिए पसारे गेहूं पर उठाने तक नजर बनाए रखनी होती है. कहीं कोई चिड़ियां चुगने न आ जाये. नहाय खाय के दिन व्रती अरवा खाना खाती है. उनके भोजन में अरवा चावल का भात और कद्दू की सब्जी होती है.

दूसरे दिन होता है खरना, बनता है महाप्रसाद
नहाय-खाय के अगले दिन दो अप्रैल दिन मंगलवार को खरना होगा. इस दिन व्रती दिनभर उपवास में रहेंगी. शाम में खीर और सोहारी (विशेष रोटी) का प्रसाद बनेगा. यह प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी के जलावन से बनाया जाता है. खरना के प्रसाद में केला भी शामिल रहता है. प्रसाद बन जाने के बाद व्रती एक बार फिर स्नान-ध्यान कर रात में छठी मईया को प्रसाद का भोग लगाती है. भोग लगाने के बाद वह भी इसी प्रसाद को ग्रहण करती है और इसी के साथ 36 घंटे का निर्जला व कठिन अनुष्ठान शुरू हो जाता है.

खरना के साथ शुरू हो जाता है 36 घंटे का निर्जला व्रत
खरना के अगले दिन बुधवार को संध्या कालीन अर्घ होगा. इस दिन शाम में डूबते सूरज को अर्घ दिया जाता है. व्रती परिवार के पुरुष डाला-दउरा लेकर नंगे पांव नदी, तालाब, पोखरों के किनारे पहुंचते हैं. जहां व्रती स्त्री जल स्रोत में स्नान कर पानी में घंटों खड़ी रह सूर्य देवता की आराधना करती हैं. जब सूरज ढलने लगता है, तब क्रमवार रूप से सभी डाला और दउरों को जल का आचमन कराते अर्घ प्रदान करती हैं. वापस घर जाने के बाद एक बार फिर अहले सुबह वह अपने परिजनों के साथ घाट पर पहुंचती है, जहां वह फिर से सूर्यदेव की आराधना में जुट जाती हैं. जैसे ही आसमान में सूरज की लालिमा दिखती है, सभी डाला व दउड़ों का फिर से आचमन कराते उसमें अर्घ दिया जाता है. उगते सूर्य को अर्घ देने के साथ पर्व संपन्न हो जाता है. व्रती घर आकर गृहदेवता और ग्राम देवता की पूजा कर पहले छठ का प्रसाद खाती हैं, उसके बाद ही अनाज ग्रहण करती हैं.
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कार्तिक के छठ की तरह नहीं होती भीड़
कार्तिक महीने में होने वाले छठ की तरह चैती छठ में भीड़ नहीं होती है. क्योंकि चैती छठ मान्यता और मनोकामना का पर्व समझा जाता है. मतलब कोई अपने परिवार की सुख, समृद्धि को लेकर मनोकामना करते हैं और वह पूरा हो जाता है, तब वह परिवार मान्यताओं के अनुसार एक, तीन या पांच साल तक व्रत करते हैं. या फिर मनोकामना पूरी होने तक चैती छठ का अनुष्ठान करते हैं. चैती छठ में घाटों पर भी वैसी भीड़ नहीं होती है. कार्तिक महीने में मिलने वाले कई फल चैत में नहीं मिलते. लिहाजा बाजार में उपलब्ध होने वाले फलों और ठेकुआ, पुड़ुकिया, कसार जैसे पकवानों से पूजा होती है.
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