जिले सहित राज्य भर में आज प्रकृति पर्व सरहुल मनया जा रहा है. इसे लेकर केंद्रीय सरना समिति धूमधाम से जुलूस निकालेगी. जाहेर थान भूदा में पाहन (नाइकी) रामेश्वर उरांव द्वारा सरना स्थल पर सरना मां की पूजा-अर्चना कर सुख समृद्धि और हरियाली के लिए प्रार्थना की जायेगी. समिति के संरक्षक वीरेंद्र हांसदा बताते हैं सरहुल के दिन सुबह सखुआ पेड़ की पूजा होगी. सरहुल में प्रकृति हरियाली का शृंगार कर दुल्हन की तरह सजती है. यह पर्व प्रकृति के स्वागत का उत्सव है. हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को सरहुल पर्व मनाया जाता है.
इस तरह से बारिश या अकाल का लगाते हैं अनुमान :
सरहुल के दिन पूजा स्थल को गोबर से लीपा जाता है. गाजे-बाजे के साथ पाहन को गांव के पोखर में स्नान के लिए लाया जाता है. पाहन को नहलाने के पश्चात सरना स्थल पर लाया जाता है. दो घड़ों में पानी भर कर, उन्हें अरवा धागा से जोड़ दिया जाता है तथा शाल के डंटल डाल दिए जाते हैं. दूसरे दिन पाहन घड़ों के जल का निरीक्षण करते हैं. घड़ों का पानी अगर शाल के डंटल से ऊपर चढ़ता है, तब विश्वास किया जाता है कि इस वर्ष अच्छी वर्षा होगी, खूब फसल होगी. सुख-शांति रहेगी. लेकिन, अगर पानी कम हुआ तो अकाल होने का अंदेशा रहता है.
झारखड मैदान से निकलेगा जुलूस, प्रसाद में बंटेगा सखुआ का फूल :
सरहुल के दिन सुबह पूजा-अर्चना के बाद शाम चार बजे झारखड मैदान से जुलूस निकाला जायेगा. इसमें पारंपरिक परिधान में सजकर लोग नाचते-गाते सरना स्थल भूदा पहुंचेंगे. यहां उनका स्वागत समिति द्वारा किया जायेगा. पाहन द्वारा सखुआ का फूल प्रसाद के रूप में दिया जायेगा. पुरुष अपने कान में और स्त्रीएं जूड़ा या चोटी में सखुआ का फूल लगाकर उत्सव मनायेंगे. इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा. मांदर व ढोल की थाप पर सभी झूमेंगे.
प्रकृति को सहेजने का संदेश देता है सरहुल :
सरहुल प्रकृति पर्व है. यह प्रकृति को सहेजने और इससे प्रेम करने का संदेश देता है. झारखंडियों के पर्व गीत-नृत्य के अभाव में अधूरे माने जाते हैं. हर पर्व के लिए अलग-अलग गीत और नृत्य हैं, सरहुल के नृत्य में गति है, लय है, जीवन है, उमंग है. वास्तव में यह प्रकृति से मिलन की संस्कृति है.
पांच अप्रैल को सोनोत संथाल समाज का सरहुल :
सोनोत संथाल समाज पांच अप्रैल को सरहुल मनायेगा. समाज के समन्वयक रमेश टुड्डू ने बताया कि समाज की ओर से लॉ कॉलेज परिसर में कार्यक्रम आयोजित किया गया है. सुबह में जाहेर थान में पाहन नरेश टुड्डू द्वारा मारंग बुरू व जाहेर आयो की पूजा-अर्चना की जायेगी. इसके बाद सखुआ पेड़ की पूजा कर शांति व हरियाली के लिए प्रार्थना की जायेगी. तीन बजे से जिले भर से गीत व नृत्य दलों का जुटान होगा. सांस्कृतिक कार्यक्रम का दौर चलेगा. बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले दलों को समाज द्वारा पुरस्कृत किया जायेगा.
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