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खेल संघों की बागडोर खिलाड़ी ही संभालें

अर्जुन पुरस्कार विजेता दो राष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ियों पूजा और प्रियंका की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश में स्पोर्ट्स संघों की स्थिति पर हाल ही में जो कड़ी टिप्पणी की, वह बहुत महत्वपूर्ण है. याचिकाकर्ताओं ने अंतरराष्ट्रीय कबड्डी संघ से मान्यता रखने वाले एकेएफआइ को उन्हें एशियाई कबड्डी में भेजने का निर्देश देने का अनुरोध किया था. इससे पहले न्यायालय ने केंद्र को स्पोर्ट्स संघों, विशेषकर हिंदुस्तानीय कबड्डी संघ की मान्यता को लेकर विवाद के समाधान के लिए कूटनीतिक रास्ते तलाशने का निर्देश दिया, जिसमें कहा गया है कि सीबीआइ के निदेशक स्पोर्ट्स संघ के मामलों में इंटरपोल जैसी अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसियों की सहायता से प्रभावी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय जांच के लिए एक जांच तंत्र का सुझाव देंगे. शीर्ष अदालत ने यह भी जानना चाहा कि कबड्डी खिलाड़ियों और अन्य खिलाड़ियों को ईरान में एशियाई कबड्डी चैंपियनशिप सहित अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने की अनुमति देने के लिए क्या उपाय किये गये हैं. इंटरनेशनल कबड्डी फडरेशन ने पिछले वर्ष जुलाई में एकेएफआइ की मान्यता रद्द कर दी थी, जिससे कबड्डी टीमों को कई वैश्विक आयोजनों में भाग लेने से रोक दिया गया था.

अदालत ने कहा कि हम कबड्डी संघों के मामलों की गहन जांच के लिए जांच आयोग गठित करने के पक्ष में हैं, क्योंकि इन निकायों में स्पोर्ट्स गतिविधियों के अलावा कई तरह की चीजें हो रही हैं. इसके बाद हम जांच आयोग का दायरा अन्य स्पोर्ट्स संघों तक बढ़ाने की इच्छा रखते हैं. केंद्र प्रशासन की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता केएम नटराज ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बेंच के चार फरवरी के आदेश के मुताबिक खिलाड़ियों को ईरान में होने वाले टूर्नामेंट में भाग लेने भेजा गया था, जहां उन्होंने स्वर्ण जीता. नटराज ने बताया कि जहां तक सीबीआइ जांच की बात है, तो इसकी रुपरेखा तैयार की जा रही है.

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि स्पोर्ट्स संघों में स्पोर्ट्स को छोड़कर बाकी सभी तरह की चीजें हो रही हैं. शीर्ष अदालत ने यह चेतावनी तक दे डाली कि अगर जरूरत पड़ी, तो वह सभी स्पोर्ट्स संघों को भंग कर देगी. शीर्ष अदालत ने स्पोर्ट्स संघों के कामकाज और जरूरी जांच पर सुझाव देने के लिए पूर्व और मौजूदा खिलाड़ियों की अर्जियों को स्वीकार कर लिया है और सुनवाई चार हफ्ते बाद तय कर दी. गौरतलब है कि इससे पहले भी सर्वोच्च न्यायालय स्पोर्ट्स संघों को बीमार संस्थाएं बता चुका है. एक आंकड़ा बताता है कि पिछले दशक में देश की अदालतों में स्पोर्ट्स संबंधी लगभग 770 मामले दर्ज किये गये, जिनमें से 200 से अधिक मुकदमे शासन से संबंधित थे. वर्ष 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआइ में भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोपों के बाद सुधारों की सिफारिश के लिए लोढ़ा कमेटी की नियुक्ति की थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदुस्तानीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) ने 2023-24 के वित्तीय वर्ष में 20.5 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कमाये. वहीं 2025-26 के लिए युवा मामले और स्पोर्ट्स मंत्रालय के लिए कुल बजट आवंटन, जिसमें राष्ट्रीय स्पोर्ट्स संघों (एनएफएस) के लिए मदद भी शामिल है, मात्र 3,794.30 करोड़ रुपये था. बीसीसीआइ को छोड़ हॉकी इंडिया, एएफएफआइ व हिंदुस्तानीय बैडमिंटन संघ को ही प्रसारण से कुछ आमदनी हो पाती है. हिंदुस्तान की पूर्व अंतरराष्ट्रीय धाविका पीटी उषा हिंदुस्तानीय ओलंपिक संघ (आइओए) की अध्यक्ष हैं. उषा आइओए की अध्यक्ष बनने वाली पहली स्त्री ओलिंपियन हैं. विभिन्न राष्ट्रीय स्पोर्ट्स संघों में कथित वित्तीय अनियमितताओं के चलते आइओए को नियमित रूप से अदालती जांच और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति से निलंबन के जोखिम का सामना करना पड़ा था. हॉकी इंडिया के अध्यक्ष चार बार के हॉकी ओलिंपियन दिलीप टिर्की और पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल गोलरक्षक कल्याण चौबे अखिल हिंदुस्तानीय फुटबॉल संघ (एआइएफएफ) के अध्यक्ष व खिलाड़ी होने के साथ नेतृत्वक पृष्ठभूमि के भी हैं. एशियाई स्पोर्ट्सों के पूर्व चैंपियन शॉटपुटर बहादुर सिंह सागू हिंदुस्तानीय एथलेटिक्स संघ (एएफआइ) के नये अध्यक्ष हैं. जबकि असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा सरमा हिंदुस्तानीय बैडमिटन संघ (बीएआइ) के मौजूदा अध्यक्ष हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जब खिलाड़ी जिम्मेदारी संभालते हैं, तब स्पोर्ट्स संघों में सुधार होता है, न कि नेतृत्वक या नौकरशाही द्वारा नियुक्त व्यक्ति से. यह टिप्पणी साफ तौर पर संकेत देती है कि सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि खिलाड़ी ही स्पोर्ट्स संघों की बागडोर संभालें और राजनेता तथा नौकरशाह स्पोर्ट्स संघों से दूर रहें. देखना है कि सुप्रीम कोर्ट की स्पोर्ट्स संघों पर ‘सुप्रीम’ टिप्पणी कितनी कारगर होगी? इस पर कितना अमल होगा? देश के विभिन्न स्पोर्ट्स संघों के शीर्ष अधिकारियों पर नजर डालें, तो पायेंगे कि इन पर राजनेता और नौकरशाह काबिज हैं. सो राजनेताओं से राजनैतिक द्वेष के चलते भी अदालतों में मुकदमे दायर होते हैं. ऐसे में शीर्ष अदालत को यह बात भी जेहन में रखनी होगी कि इस तरह की शिकायतों में कितनी सच्चाई है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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