बक्सर
. कोई भी देश तब गुलाम हो जाता है जब नेतृत्व, धर्मनीति एवं समाज नीति दिशाहीन हो जाती है। इसका मूल कारण है स्वार्थ की प्रबलता. जब मानव स्वार्थ के वशीभूत हो जाता है तब वह मानव रूप में महा दानव बन जाता है. परिणाम यह होता है कि सिद्धांत विहीन नेतृत्व, शास्त्र विहीन धर्म नीति तथा संस्कारहीन समाज हो जाता है. इससे चारों तरफ पशुता का वातावरण बन जाता है.शहर के रामरेखाघाट स्थित श्री रामेश्वर नाथ मंदिर परिजन में आयोजित सर्वजन कल्याण सेवा समिति के 17 वें धर्मायोजन में चल रहे श्री मारकंडेय पुराण कथा के चौथे दिन सोमवार को आचार्य श्रीकृष्णानंद जी पौराणिक उपाख्य शास्त्री जी ने कहा कि सोच स्वयं तक ही सीमित होने के कारण देश धर्म तथा समाज का पतन प्रारंभ हो जाता है. श्री मार्कंडेय पुराण में महात्मा जैमिनी के प्रश्नों का जवाब देते हुए पक्षियों ने कहा है कि हिंदुस्तान कोई भू-खंड नहीं है, अपितु यह भूमि सनातन धर्म की अखंड भूमि है. यहां के कण-कण में सनातन धर्म का निवास है. कथा को विस्तार देते हुए श्री पौराणिक जी ने कहा कि हिंदुस्तान में आज भी मरते हुए किसी प्राणी के मुख में तुलसी दल, गंगाजल एवं शालिग्राम भगवान का चरणोदक जल डाला जाता है. हिंदुस्तान भूमि के महत्व का वर्णन करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि यह वही पवित्र धरा है जिन्होंने जगत नियंता नारायण के वराह अवतार के समय भगवान वराह की प्रियतम भार्या बनी और श्री कृष्ण अवतार में द्वारकाधीश की भार्या सत्यभामा. इस भूमि पर अनेकों बार श्री नारायण के विभिन्न अवतार हुए हैं. यही से संपूर्ण सृष्टि में धर्म की स्थापना होती है और अधर्म का नाश होता है. ईश्वर यही परम जन्म लेकर हम सभी से विभिन्न रिश्तों को जोड़ते हैं तथा मानवीय संबंधों का प्रशिक्षण भी करते हैं. यह ऐसा लोक है जो मनुष्यों के सभी कर्मों क समर्पण बैकुंठ का अर्पण कर देता है. यहां की जाने वाली भक्ति नारायण को भी भक्त के अधीन कर देती है. ऐसे में यहां के संतों, विद्वानों एवं धर्माचार्यों की विशेष जिम्मेदारी है कि वह अपने प्रवचन तथा आचरण से धर्म, संस्कार व सिद्धांत की शिक्षा देकर देश, धर्म एवं समाज की कल्याण हेतु रक्षा करें.
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