ज्वाइनिंग के चार दिन में ही पकड़ ली थी गड़बड़ी, अधिकारी को मौखिक के बाद लिखित सूचना भी दी थी ट्रेड लाइसेंस घोटाले में घिरे निगम कर्मी निरंजन मिश्रा ने जांच पदाधिकारी को पत्र सौंप कर अपना पक्ष रखा है. उन्होंने बताया कि उनकी प्रतिनियुक्ति 15 सितंबर 2020 को ट्रेड लाइसेंस शाखा में हुई थी और 18 सितंबर को उन्होंने प्रभार लिया था. कुछ ही दिन में उन्हें कंप्यूटर ऑपरेटर गौतम कुमार की गतिविधियों से गड़बड़ी का संदेह हुआ. उन्होंने इसकी मौखिक जानकारी तत्कालीन नगर आयुक्त को दी और तीन अक्टूबर 2020 को लिखित रूप से भी सूचित किया. फर्जीवाड़ा तब उजागर हुआ जब कुछ लाइसेंसधारी नवीनकरण के लिए आये और उनके लाइसेंस निगम के रजिस्टर में नहीं मिले. उन्होंने 13 जनवरी 2021 को संचिका में टिप्पणी की और मामला तत्कालीन प्रभारी नगर आयुक्त तक गया. इसके बाद जांच टीम भी बनी. उन्होंने दावा किया कि रिपोर्ट उन्हें कभी नहीं दी गयी. फिर भी बिना जांच के 9 जनवरी 2022 को रविवार के दिन उन्हें निलंबित कर दिया गया. मिश्रा ने बताया कि निलंबन से पहले उन्होंने 12,04,100 और निलंबन के बाद 19,200 रुपये निगम कोष में जमा किया. लेखा परीक्षा रिपोर्ट के आधार पर 1,47,000 की मांग हुई, जिसका उन्होंने साक्ष्यों के साथ जवाब दिया. उनका कुल जमा 12,23,300 रहा, लेकिन निलंबन समाप्ति आदेश में सिर्फ 19,200 का जिक्र है मिश्रा ने बताया है कि विकास पांडेय, रामानंद घोष और रमन कुमार अपने लाइसेंस के नवीनीकरण के लिए पहुंचे, तब यह साफ हो गया कि उनके लाइसेंस न रजिस्टर में थे और न ही उनकी फीस जमा थी. पत्र में यह भी कहा है कि 13 जनवरी 2021 को उन्होंने संचिका में टिप्पणी के साथ मामला अधीक्षक के पास भेजा, जिसने अपनी टिप्पणी भी अंकित की. यह मामला 13 मार्च 2021 को फिर से उठा. प्रभारी नगर आयुक्त ने तीन बार यानी 27 जनवरी, 1 अप्रैल और 25 जनवरी को जांच टीमों का गठन किया, पर मिश्रा को कभी रिपोर्ट नहीं मिली. जिलाधिकारी के निर्देश पर अपर समाहर्ता कार्यालय में भी जांच हुई,
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