नया विचार डिजिटल, वशिष्ठ नारायण सिंह : लेखक सह बिहार के पूर्व सांसद और जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह ने आपातकाल के वक्त महसूस किये कुछ अनुभवों को साझा करते हुए कहा, अनाइठ गांव में जब पुलिस मुझे अपनी गाड़ी की तरफ ले जाने लगी, तो हमारी चप्पल गिर गयी और कुर्ता का बटन खुल गया. इसके बाद पब्लिक की तरफ से पत्थरबाजी होने लगी. इस पर पुलिस पदाधिकारियों ने मुझसे आग्रह किया कि मंच पर चलकर लोगों से आग्रह कीजिए कि पत्थरबाजी नहीं करें. हमने मंच पर जाकर माइक से लोगों से अपील की. इसके बाद वहां से भीड़ चली गयी.
“यह हथकड़ी अब जेल के अंदर ही खुलेगी”
मुझे आरा पुलिस लाइन ले जाया गया. दूसरे दिन सुबह पटना से आदेश गया, तो एक मजिस्ट्रेट पांच-छह पुलिस के साथ आए. हम चलने को तैयार हुए तो मेरे हाथों में हथकड़ी लगा दी गयी. गाड़ी में हमने मजिस्ट्रेट से पूछा कि हम तो क्रिमिनल नहीं हैं, फिर हथकड़ी क्यों लगाये हैं? मजिस्ट्रेट ने कहा कि आप कुछ पढ़े-लिखे हैं कि नहीं, बकवास नहीं कीजिए. हम आदेश का पालन कर रहे हैं. मजिस्ट्रेट हमें लेकर पटना पहुंचे और बांकीपुर जेल से कुछ दूर पहले गाड़ी रुकवा दी. इसके बाद हथकड़ी खोलने का आदेश दिया. हमने तेज आवाज में कहा कि यह हथकड़ी अब जेल के अंदर ही खुलेगी.
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मजिस्ट्रेट को मांगनी पड़ी माफी
बांकीपुर जेल के भीतर जो गिरफ्तार सत्याग्रही थे, उनमें से 3040 की संख्या में गेट पर इकट्ठा हो गये. उनलोगों ने यह सब देखकर मजिस्ट्रेट को बहुत डांटा. हमने मजिस्ट्रेट से कहा कि देखिए आप पांच राइफल के साथ मुझे यहां ले आये हैं. ये राइफल अब किस काम का? आप अब यह राइफल उठा भी सकते हैं क्या? इस पर मजिस्ट्रेट ने कहा कि हमसे गलती हो गयी. हमने कहा कि तीन बार मैं कहता हूं कि अबसे ऐसी कार्रवाई नहीं करेंगे और आप इसे दोहराएं, हमने तीन बार मजिस्ट्रेट से कहा और मजिस्ट्रेट ने उसे दोहराया. वहां करीब 3 महीना रहने के बाद हमको रिलीज कर दिया गया.
रातभर बैठे रहे कोतवाली थाने की बेंच पर
साल 1975 की बात है. एक बार एक गुप्त मीटिंग पाटलिपुत्र में शाम सात बजे बुलायी गयी. मुझे यह एड्रेस दिया गया था कि ऊंचा घर है और लाइट जलता दिखे, तो वहां आ जाइयेगा. इसकी सूचना पुलिस को भी मिल गयी थी. जब मैं वहां पहुंचा, तो तत्कालीन पटना एसपी आचार्य जी के नेतृत्व में पुलिस ने मुझे पीछे से आकर पकड़ लिया. हमको कोतवाली थाने में रात में ले गये और सेल में बंद कर दिया. वहां एक शराबी पहले से बंद था. उसी समय वहां के इंस्पेक्टर आये, वे मेरे साथी परमहंस के रिश्तेदार थे. उन्होंने हमको सेल से निकालकर कोतवाली थाने में ही बेंच पर बैठा दिया. हम रात भर कोतवाली थाना की बेंच पर बैठे रहे. दूसरे दिन मुझे गया सेंट्रल जेल ले जाया गया. वहां बड़ी संख्या में सत्याग्रही बंद थे. जनसंघ के उस समय के राज्य अध्यक्ष डॉ बसंत नारायण सिंह भी वहीं थे. तीन महीना वहां रहने के बाद वहां से मेरा डाल्टेनगंज ट्रांसफर कर दिया गया. डाल्टेनगंज जेल में तेरह महीना रहा.
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