रांची.
झारखंड वन अधिकार अधिनियम (फॉरेस्ट राइट एक्ट या एफआरए) के तहत किये गये आवेदनों या दावों को मंजूरी देने वाले देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है. अधिनियम के तहत किये गये दावों में से मंजूर किये गये आवेदनों का सबसे अधिक अनुपात हासिल करने वाले देश के राज्यों में झारखंड शामिल है. एफआरए दावों के निपटारे के मामले में झारखंड देश में चौथे स्थान पर है. राज्य में किये गये आवेदनों के 55.95 प्रतिशत मामलों में वन पट्टा वितरित कर दिया गया है. सबसे अधिक 65 प्रतिशत दावों काे मंजूरी देकर सूची में सबसे ऊपर ओडिशा है. जबकि, केरल में 64.69 प्रतिशत और त्रिपुरा में किये गये दावों के 63.79 प्रतिशत मामलों में वन पट्टा प्रदान किया गया है.
दावों को खारिज करने के मामले में झारखंड का पांचवां स्थान
वहीं, वन अधिकार अधिनियम के दावों को खारिज करने में भी झारखंड देश में टॉप पांच राज्यों में शामिल है. दावों को खारिज करने के मामले में झारखंड का स्थान देश में पांचवां है. राज्य में अधिनियम के तहत किये गये दावों में से अब तक कुल 28,107 दावों को खारिज किया जा चुका है. देश में एफआरए के सबसे अधिक लगभग चार लाख दावा छत्तीसगढ़ में खारिज किये गये हैं. वहीं, मध्य प्रदेश में 3.22 लाख, महाराष्ट्र में 1.72 लाख और ओडिशा में 1.44 लाख दावे खारिज किये गये हैं. मालूम हो कि एफआरए-2006 के तहत पीढ़ियों से वन भूमि पर रह रहे और उसकी रक्षा कर रहे आदिवासियों व वन आश्रित समुदायों को संबंधित भूमि पर अधिकार प्रदान किया गया है. कानून के तहत व्यक्तिगत या सामुदायिक अधिकारों के लिए दावा किया जा सकता है. राज्यों को दावों की सत्यता की जांच कर वन भूमि का पट्टा संबंधित व्यक्ति को देने का अधिकार दिया गया है.
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