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Bihar News: दिव्यांगता कोई अभिशाप नहीं है, ज्योति सिन्हा बोली- राहें बदल सकती हैं, जब इरादे मजबूत हों

Bihar News: मुजफ्फरपुर जिले के कटरा प्रखंड के चंगेल गांव की रहने वाली ज्योति सिन्हा ने साबित कर दिखाया है कि मुश्किलें केवल संजीवनी होती हैं, जो हमें हमारी असली ताकत पहचानने का अवसर देती हैं. शारीरिक रूप से विकलांग होने के बावजूद, ज्योति ने न केवल अपनी पढ़ाई में सफलता पायी, बल्कि उन्होंने मधुबनी पेंटिंग में राज्य व राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल किए हैं. ज्योति की जीवन यात्रा हमें यह प्रेरणा देती है कि जब तक हम खुद से हार नहीं मानते, तब तक कोई भी चुनौती हमें अपनी मंजिल से दूर नहीं कर सकती.

Q. दसवीं बोर्ड परीक्षा के वक्त तक आप आम बच्चों की तरह थीं, फिर ऐसा क्या हुआ ? अपने बारे में कुछ बताएं.

Ans – मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बावजूद, मैंने 2002 में मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों से पास की. लेकिन कुछ दिनों बाद मेरे कमर से नीचे का हिस्सा संवेदनहीन हो गया. शुरू में, मैं सामान्य जीवन जी रही थी, पर धीरे-धीरे मुझे खुद के शरीर पर नियंत्रण खोने का एहसास हुआ. अपने घरवालों के प्रयासों से मैंने बनारस व दिल्ली के कई बड़े डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन किसी ने भी सही इलाज नहीं सुझाया. इस दौरान मुझे ‘मसकुलर डिस्ट्रोफी’ नामक बीमारी का पता चला, और डॉक्टर्स ने कहा कि इसका कोई इलाज नहीं है. दो साल बाद मेरे जुड़वां भाई भी इस बीमारी से प्रभावित हो गये. यह मेरी जिंदगी का एक बड़ा मोड़ था, जहां मुझे अपनी जिंदगी को नये तरीके से समझने की जरूरत पड़ी.

Q. मधुबनी पेंटिंग से आपका जुड़ाव कब और कैसे हुआ?

Ans – जब मैं अपनी शारीरिक तकलीफों और उदासी से जूझ रही थी, तब एक दिन मेरे हाथ कृष्ण कुमार कश्यप जी की पुस्तक ‘मिथिला चित्रकला भाग-एक, दो’ लगी. इस पुस्तक ने मेरी सोच को बदल दी. मैंने यह निश्चय किया कि मैं मधुबनी पेंटिंग में अपना भविष्य बनाऊंगी. शुरुआत में, मैंने खुद से आड़ी-तिरछी लकीरें खींचने की कोशिश की, लेकिन मुझे यह ठीक नहीं लगा. तब मैंने कश्यप जी से संपर्क किया, जो दरभंगा से अपने खर्च पर हर हफ्ते मेरे गांव आते थे और मुझे सिखाते थे. उनके मार्गदर्शन में, मैंने कड़ी मेहनत और अभ्यास के साथ पेंटिंग में निपुणता हासिल की. मुझे राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिले, जो इस कला में मेरी सफलता की पहचान बने.

Q. 2002 के बाद लंबे अंतराल पर आपने पढ़ाई शुरू की और अभी एमए कर रही हैं, इसके बारे में बताएं?

Ans – मेरे जीवन में एक और महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मुझे एक और गुरु मिले, प्रो उमेश कुमार उत्पल, जिन्होंने मुझे उच्च शिक्षा की ओर प्रेरित किया. उन्होंने मुझे दरभंगा के महथा आदर्श महाविद्यालय में नामांकन करवाया और घर से ही पढ़ाई की व्यवस्था की. मैं 2016 में इंटर की परीक्षा दी. परिणाम में द्वितीय श्रेणी से पास हुई और उसके बाद स्नातक और एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की. अब मैं हिंदी में पीएचडी कर रही हूं. इस यात्रा में मुझे अपने गुरु, स्व कृष्ण कुमार कश्यप जी और अशोक कुमार सिन्हा का पूरा समर्थन मिला.

Q. आपके जीवन के इस सफर में सबसे बड़ी प्रेरणा क्या रही?

Ans – मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे माता-पिता, गुरु और मेरे भाई हैं. जब मैं सबसे ज्यादा मुश्किल में थी, तब उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया और मुझे कभी हार मानने नहीं दिया. मेरे गुरु, कश्यप जी ने मुझे मधुबनी पेंटिंग सिखाने का मार्ग दिखाया और प्रो उत्पल ने मुझे शिक्षा के प्रति प्रेरित किया. वे सब मुझे अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगातार प्रेरित करते रहे. इस संघर्ष और मेहनत के बावजूद, मैं आज जहां हूं, वहां तक पहुंचने में मेरे परिवार और शिक्षकों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान है.

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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