Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज का नाम सुनते ही मन में शांति और भक्ति की भावना जाग जाती है. उनकी मधुर वाणी, सरल भाषा और गहरे विचार हर किसी के दिल को छू जाते हैं. ऐसे में जब एक व्यक्ति ने प्रेमानंद जी महाराज से कहा कि वह हमेशा अकेलापन महसूस करता है, तो महाराज जी ने अकेलेपन को भजन का फल बताया और इसके गहरे आध्यात्मिक महत्व को समझाया. तो आइए जानते हैं कि प्रेमानंद जी महाराज अकेलेपन को भजन का फल क्यों मानते हैं और इसका महत्व क्या है.
अकेलापन क्या सच में भजन का फल है?
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं की अकेलापन तो बहुत बढ़िया है. दूसरा कोई है ही नहीं. एक ही परम पुरुष – परमात्मा.
यह भजन का फल होता है कि आपका मन अकेलापन अनुभव करता है. इसे और आगे बढ़ना चाहिए. यही वैराग्य की ओर गति होती है.
वैराग्य और अनुराग का संबंध
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार जब वैराग्यवान भजन करता है, तब अनुराग प्रकट होता है. पहले तो ये भजन राग का नाश करेगा, मन भय भी पैदा करेगा, इतना भयभीत कर देगा कि भगवान के मार्ग पर नहीं चलना चाहिए और बहुत डर पैदा करेगा.
सत्संग से डर का नाश
सत्संग के द्वारा इस भय का नाश होता रहता है. प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं की अगर साधु-संग मिल गए तो इस भय और विषाद से ऊपर उठ जाओगे.
अनुराग की अवस्था और अपनापन
प्रेमानंद जी ने बताया की जहां राग नष्ट हुआ और अनुराग प्रकट हुआ, वहां अकेलापन खत्म हो जाएगा. क्योंकि फिर आराध्य देव के परिकर में अपनापन होने लगता है.
अंत में भक्ति का आनंद
प्रेमानंद जी महाराज आगे बताते हुए कहते हैं की फिर यह शिकायत खत्म हो जाती है. फिर तो व्यक्ति अपने लाडले, अत्यंत प्यारे आराध्य देव के साथ प्रतिपल भाव से रहता है और उन्हीं के आनंद में डूबा रहता है.
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