Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्णिया सीट पर मुकाबला इस बार बेहद दिलचस्प होने जा रहा है. कांग्रेस ने अपनी दूसरी सूची में जितेंद्र यादव को टिकट देकर नेतृत्वक समीकरणों में हलचल मचा दी है. कभी जदयू में प्रदेश महासचिव रहे और पप्पू यादव से निकटता के आरोपों में निष्कासित किए गए जितेंद्र यादव अब कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. उनकी पत्नी विभा कुमारी पूर्णिया नगर निगम की मेयर हैं. वहीं, बीजेपी ने एक बार फिर से अपने सिटिंग विधायक विजय कुमार खेमका पर भरोसा जताया है. ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय से ज्यादा व्यक्तिगत साख और पुराने समीकरणों पर टिकता दिख रहा है.
जदयू से निष्कासन के बाद कांग्रेस में नई पारी
जितेंद्र यादव का पूर्णिया में अच्छा जनाधार माना जाता है. कांग्रेस में शामिल होने से पहले वे जदयू में प्रदेश महासचिव थे और संतोष कुशवाहा के करीबी माने जाते थे. 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान उन पर पार्टी विरोधी गतिविधियों और एनडीए प्रत्याशी के खिलाफ भितरघात के आरोप लगे. कहा गया कि उन्होंने पप्पू यादव को फायदा पहुंचाया, जिसके बाद पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया.
इसके कुछ महीने बाद, जुलाई 2025 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में पार्टी में शामिल होने के बाद से ही उनका नाम टिकट की दौड़ में था. अंततः कांग्रेस ने पूर्णिया से उन्हें उम्मीदवार बनाकर साफ संदेश दे दिया कि वह सीमांचल में अपना आधार बढ़ाने के लिए नए चेहरों पर दांव स्पोर्ट्सने को तैयार है.
पूर्णिया सीट पर BJP का मजबूत गढ़, अब दिलचस्प मुकाबला
पूर्णिया विधानसभा सीट पर बीजेपी का पिछले डेढ़ दशक से दबदबा रहा है. 2010 में राज किशोर केसरी की जीत के बाद से यह सीट बीजेपी के खाते में ही रही है. 2011 उपचुनाव में केसरी की हत्या के बाद किरण देवी ने पार्टी को जीत दिलाई. 2015 और 2020 में विजय कुमार खेमका ने लगातार दो बार कांग्रेस की इंदु सिन्हा को 32,000 से अधिक वोटों के अंतर से हराया.
इस बार भी बीजेपी ने खेमका पर भरोसा जताया है. वहीं, कांग्रेस ने इंदु सिन्हा को हटाकर जितेंद्र यादव को टिकट दिया है, जिससे समीकरण बदलते दिख रहे हैं. यादव समाज में उनकी पकड़ और नगर निगम में पत्नी के मेयर होने के कारण स्थानीय स्तर पर उनका प्रभाव भी माना जाता है.
पप्पू यादव फैक्टर से बढ़ी दिलचस्पी
पूर्णिया सांसद पप्पू यादव इस सीट पर पूर्व मुखिया सुरेश यादव के बेटे दिवाकर यादव को टिकट दिलाने की कोशिश में थे. लेकिन पार्टी हाईकमान ने अंततः जितेंद्र यादव को उम्मीदवार बना दिया। यादव के पुराने रिश्तों और पप्पू यादव से जुड़ी नेतृत्वक पृष्ठभूमि को देखते हुए यह मुकाबला और पेचीदा हो गया है.
इस सीट पर इस बार मुकाबला सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी के बीच नहीं, बल्कि स्थानीय समीकरणों, पुराने रिश्तों और नेतृत्व के भरोसे का भी होगा। नेतृत्वक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस ने यहां जितेंद्र यादव पर दांव लगाकर परंपरागत उम्मीदवारों से हटकर एक ‘मैसेजिंग कैंडिडेट’ को मैदान में उतारा है, जो सीमांचल में पार्टी की नई रणनीति का हिस्सा हो सकता है.
किसकी पड़ेगी बाजी भारी?
पूर्णिया की सियासत इस वक्त त्रिकोणीय छवि लेती दिख रही है — एक ओर बीजेपी का मजबूत किला, दूसरी ओर कांग्रेस का नया उम्मीदवार, और तीसरी ओर पप्पू यादव का संभावित अप्रत्यक्ष असर. इलाके की जातीय गणित और स्थानीय मुद्दों के आधार पर यह सीट चुनावी विश्लेषकों के राडार पर है.
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