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Bihar Election 2025: AIMIM की नई चाल, सीमांचल से उत्तर-दक्षिण बिहार तक 25 प्रत्याशी, दो हिंदू नेताओं को टिकट देकर ओवैसी ने सबको चौंकाया

Bihar Election 2025: महागठबंधन से अलग राह पकड़ने के बाद AIMIM ने बिहार चुनाव में अपनी ताकत दिखाने की ठानी है. पार्टी ने अपनी पहली सूची में 25 उम्मीदवारों का ऐलान किया है. सीमांचल के पारंपरिक गढ़ से लेकर उत्तर और दक्षिण बिहार के इलाकों में उम्मीदवार उतारकर ओवैसी ने यह संकेत दिया है कि इस बार उनकी नजर सिर्फ कुछ सीटों पर नहीं, बल्कि पूरे बिहार के नेतृत्वक नक्शे पर है.

सबसे बड़ी चर्चा उन दो हिंदू उम्मीदवारों की है, जिन्हें पार्टी ने मुस्लिम बहुल इलाकों से टिकट देकर मैदान में उतारा है . ढाका से राणा रंजीत सिंह और सिकंदरा से मनोज कुमार दास.

हिंदू प्रत्याशी देकर ओवैसी ने तोड़ा रूढ़ धारणाओं का दायरा

एआईएमआईएम को अब तक “मुस्लिम बहुल” इलाकों तक सीमित पार्टी माना जाता रहा है. लेकिन इस बार ओवैसी ने सीमांचल के अलावा उत्तर और दक्षिण बिहार के कई हिस्सों में भी अपने प्रत्याशी उतारे हैं. सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोर रहे हैं ढाका विधानसभा सीट (पूर्वी चंपारण) से उम्मीदवार राणा रंजीत सिंह. यह सीट मुस्लिम बहुल क्षेत्र मानी जाती है, फिर भी पार्टी ने यहां एक कट्टर हिंदू छवि वाले नेता को मैदान में उतारा है.

राणा रंजीत सिंह पूर्व सांसद सीताराम सिंह के बेटे और बीजेपी के पूर्व मंत्री रणधीर सिंह के भाई हैं. वे पिछले कुछ वर्षों से स्थानीय नेतृत्व में सक्रिय हैं. नामांकन के दिन उनका लुक चर्चा का विषय रहा — माथे पर तिलक, हाथ में कलावा और सिर पर मुस्लिम टोपी. उन्होंने नामांकन से पहले जय श्रीराम, जय बजरंगबली और “आई लव मोहम्मद” के नारे लगाए, जिसने उन्हें एक साथ दोनों समुदायों में पहचान दिला दी. ओवैसी की पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि राणा सिंह का टिकट “समावेशी नेतृत्व” के संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए.

दूसरा हिंदू चेहरा — सिकंदरा से मनोज कुमार दास

एआईएमआईएम ने अपनी सूची में दूसरा हिंदू उम्मीदवार जमुई जिले की सिकंदरा विधानसभा सीट से मनोज कुमार दास को घोषित किया है. मनोज दास लंबे समय से सामाजिक गतिविधियों से जुड़े हैं और कई इलाकों में शिक्षा और युवाओं के मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं. वे गैर-मुस्लिम बहुल सीट पर पार्टी की पकड़ बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा बताए जा रहे हैं.

मनोज कुमार दास का नाम सामने आने के बाद स्थानीय जनता में हलचल बढ़ गई है. ओवैसी की पार्टी को इस कदम से एक ऐसे वोट वर्ग तक पहुंच बनाने की उम्मीद है जो अब तक उनसे दूरी बनाए हुए था. पार्टी सूत्र मानते हैं कि “मजहब से ऊपर उठकर उम्मीदवार चुनने” की नीति भविष्य में पार्टी को मुख्यधारा की नेतृत्व में नई पहचान दिला सकती है.

जोकीहाट, अमौर, किशनगंज जैसे परंपरागत गढ़ों के साथ पार्टी ने गोपालगंज, सीवान, नवादा और मधुबनी जैसे जिलों में भी उम्मीदवार उतारे हैं. इससे साफ है कि ओवैसी अब बिहार में अपनी पार्टी को एक व्यापक नेतृत्वक विकल्प के रूप में पेश करना चाहते हैं.

सियासी संदेश — प्रतिनिधित्व सबका

एआईएमआईएम के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, पार्टी का मकसद सभी समुदायों को प्रतिनिधित्व देना है. इसका संकेत ओवैसी के बयान से भी मिलता है, जिसमें उन्होंने कहा कि “हम नेतृत्व में किसी धर्म की दीवार नहीं मानते, जो जनता के लिए काम करेगा, वही हमारा उम्मीदवार होगा.”

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विनोद झा
संपादक नया विचार

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