राम ने मर्यादाओं की देहरी कभी नहीं लांघी, इसलिए राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये. उन्होंने शिष्य, पति, भाई, बेटे, राजा और योद्धा के रूप में उन्होंने मर्यादाओं को पूरा पालन किया. उन्होंने शास्त्रोक्त और लोक दोनों मर्यादाओं का पालन किया. लेकिन, जब भी उन्हें शास्त्रोक्त और लोक मर्यादाओं में किसी एक का चयन करना पड़ा, तो उन्होंने शास्त्र के ऊपर लोक (आम जन) मर्यादा को ही महत्व दिया. राम ने लोक मर्यादा को शास्त्रों से अधिक जन हितकारी माना. राम ने एक राजा के रूप में साबित किया कि शासक या राजा को हमेशा संदेह रहित रहना चाहिए. चाहे उसके निजी हित कितने ही प्रभावित क्यों न होते हों. एक शासक के लिए निजी हित इतने महत्वपूर्ण नहीं होते, जितना कि जनभावनाओं का मान रखना होता है.
इसका सबसे महान उदाहरण सीता के परित्याग की घटना है, जिसमें उन्होंने अपने निजी हित को छोड़ते हुए लोक मर्यादा की रक्षा की. गहराई से वाल्मीकि रामायण और अन्य शास्त्रों का अध्ययन करें, तो पता चलता है कि राजा राम कितने संवेदनशील थे. उन्हें एक धोबी परिवार की निजी और नितांत बातचीत की सूचना अपने राजमहल में मिलती है. इसमें एक धोबी अपनी पत्नी से कह रहा था कि मैं कोई राम नहीं कि …..पत्नी का रख लूं. उनके लिए यह बात किसी आपदा से कम नहीं थी. वह खाना-पीना और हंसना बंद कर देते हैं. उनके चेहरे की कांति खो जाती है. सीता पर उन्हें कोई संदेह नही था. लेकिन, प्रजा के बीच उठ रहे संदेहों को वह कैसे मिटाएं, यह उनके लिए बड़ी चिंता थी. गुप्तचरों से महारानी सीता ने पति और राजा राम के मन की चिंता को जान लिया. एक दिन महारानी सीता ने वन घूमने की इच्छा प्रकट की. राम को नहीं बताया कि वह छोड़ कर जा रही हैं. राम ने कहा- सीता के साथ लक्ष्मण को भेजना उचित होगा. महर्षि वाल्मीकि आश्रम के पास सीता लक्ष्मण से लौटने को कहती हैं. वाल्मीकि के आश्रम से बाहर वह उदास रहती हैं. वाल्मीकि पिता का स्नेह देकर आश्रम में ले जाते हैं. इसके बाद लक्ष्मण लौट आते हैं. वाल्मीकि जानते हैं कि वह गर्भवती हैं. लव-कुश का जन्म होता है. वही वाल्मीकि, जिन्होंने वनवास के दौरान अगस्त ऋषि की भांति वनवासी राम को अपने अस्त्र नहीं दिये, उन्होंने राम के पुत्रों के दिव्यास्त्र सौंप दिये. यह विवरण शास्त्रों पर आधारित है. इस पूरे प्रसंग में राजा राम ने कई मर्यादाओं का पालन किया. पत्नी की सुरक्षा की मर्यादा का पालन किया. पत्नी सीता को उन्होंने खुद कभी आम जन के मन में उठ रहे विचारों या संदेह की जानकारी नहीं दी. पति धर्म का पालन किया. आम जन की मर्यादा की भी पूरी रक्षा की. जनता की शंकाओं का समाधान किया, क्योंकि उनका मानना था कि शासक या राजा को संदेहरहित होना चाहिए. शासकों को राम की इस मर्यादा से सीखना चाहिए. मेरा मानना है कि राम ने ‘स्टेट क्राफ्ट’ की नीति अपनायी. स्टेट क्राफ्ट का अर्थ राज्य-कला या शासन-कला है, जो किसी देश या राज्य को चलाने के कौशल और अभ्यास को संदर्भित करता है. इसके जरिये अघोषित महानतम लक्ष्य प्राप्त किये. इस दिशा में अभी और अध्ययन की जरूरत है.
मर्यादाओं में बंधे रहे राम
तुलसी लिखित रामचरित मानस की संपुट के रूप में प्रयुक्त की जानी वाली चौपाई ‘‘मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी’’ उनकी मर्यादा का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है. इस चौपाई के पहले वाक्य का अर्थ बेहद सामान्य है. दूसरे वाक्य के ‘द्रवहु’ का अर्थ ‘कृपा करो’ या ‘पिघल या द्रवित या करुणा जाओ’ है और ‘अजिर बिहारी’ का अर्थ ‘आंगन में विहार करने वाले’ है. वह बालपन से ही मर्यादाओं में बंधे रहे. योगेश्वर कृष्ण की तरह देहरी यानी मर्यादा लांघने का प्रयास नहीं किया.
युद्ध में रहे मर्यादित
मां जानकी को रावण से मुक्त कराने जब राम सेतु पार कर लंका पहुंचे, तो उन्होंने रावण को युद्ध से बचने के लिए एक मौका और दिया. जाहिर है कि युद्ध उनके लिए मजबूरी थी. वह अपने और दुश्मन दोनों के हितों का ख्याल रख रहे थे. उनकी रावण से लड़ाई लोक मर्यादा के लिए थी. युद्ध के मुहाने पर बैठ कर युद्ध टालने की बात कोई राम ही कर सकता है.
जब कैकई ने कहा -मेरा राम स्वप्न में कोई अपराध नहीं कर सकता? —–राम वनवास क्यों जा रहे हैं? नहीं पूछा. राम के मन में मां कैकई के बारे में कोई मन में मैल नहीं था. उनके वन गमन के बाद जब केकई से उनके राजमहल और रिश्तों की नारियों ने पूछा कि राम वन क्यों गये हैं? क्या अपराध किया था? तब मां कैकई ने कहा कि था कि ‘‘मेरा राम सपने में भी अपराध नहीं कर सकते हैं.’’ मैंने उनके पिता से दो वर मांगे थे.
मंदोदरी ने भी की राम की मर्यादा की कुछ यूं चर्चा की : रावण की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी मंदोदरी विजेता राम से मिलने के बाद लौट कर अपने महल आती हैं, तब उनसे उनके परिजनों ने पूछा कि राम का व्यवहार कैसा था या वह कैसे दिखते हैं? मंदोदरी ने कुछ यूं कहा-‘‘राम ने मेरे सामने सिर ही नहीं उठाया. वह मेरी परछायी ही देख रहे थे, उस पर राम की निगाहें मेरे पैराें पर ही थी.’’ अपने पति के विजेता दुश्मन की मर्यादा की तारीफ बताती है कि राम इतने महान क्यों थे. उन्हें अपनी विजय का दंभ नहीं था. ऐसे थे हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम राम.
इस तरह राम ने अपने पिता,भाई और अन्य परिजन और अपनी प्रजा की मर्यादाओं और लोकलाज की हमेशा रक्षा की. इसके तमाम उदाहरण तमाम ग्रंथों में भरे पड़े हैं. राम राज्य में विषमता नहीं थी. तुलसी दास लिखते हैं कि ‘‘बैर न कर काहू सन कोई, राम प्रताप विषमता खोई’’, जिसका अर्थ है कि राम के राज्य में कोई किसी से शत्रुता नहीं करता था और उनके प्रताप के कारण सभी की आंतरिक विषमता या भेदभाव समाप्त हो गयी थी.
(लेखक श्रीराम की आत्मकथा आदि पुस्तकों के लेखक व पूर्व डीजीपी हैं)
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